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4. संगीत एवं वाद्य-सम्बन्धी- विद्याएँ मन्दल, टिविल, ताल, कंसाल, भंभा, झल्लरी, मन्दल, ताल,
कंसाल, भेरी, झल्लरी, काहल, करड, कंबु, डमरु, डक्क, हुडक्क एवं ट्टटरी का ज्ञान ।
उपर्युक्त विद्याओं की सूची में एक भी अलौकिक - विद्या का उल्लेख नहीं । कवि ने पार्श्व के माध्यम से उन्हीं समकालीन लोक-प्रचलित विद्याओं का वर्णन किया है, जो उत्तरदायित्वपूर्ण मध्यकालीन राष्ट्राध्यक्ष को सामाजिकविकास के लिए अत्यावश्यक, उन्नत, प्रभावपूर्ण, तथा सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास के लिए अनिवार्य थी । इसीलिए कवि का नायक-पार्श्व, जैन होकर भी चारों वेदों एवं अष्टादश पुराणों का अध्येता बताया गया है क्योंकि उसके राज्य में विविध धर्मानुयायियों का निवास था । कवि की दृष्टि से धर्म-निरपेक्ष राज्य ही सौहार्द एवं सौमनस्य के लिये कल्याणकारी हो सकता है। संगीत में भी जिन वाद्यों की चर्चा कवि ने की है, वे भी देवकृत अथवा पौराणिक वाद्य नहीं अपितु वे वाद्य हैं, जो हरियाणा में आज भी उन्हीं नामों से जाने जाते हैं तथा भांगड़ा या अन्य नृत्यों में प्रायः उन्हीं का अधिक प्रयोग होता है।
3.
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व्यावहारिक विद्याएँ ( कलाएँ) - अंजन-लेपन, नर-नारी - अंग-मर्दन, सुर-भवन (मन्दिर) आदि में लेपन (चित्रकारी) का ज्ञान, नर-नारी-वशीकरण, पाँच प्रकार के घण्टों का वादन, चित्रोत्पल कर्म, स्वर्ण-कर्म, तरु (काष्ठ)-सूत्र कर्म, कृषि एवं वाणिज्य - विद्याएँ, काल-परिंवंचण (अर्थात् अचूक औषधिशास्त्र का ज्ञान एवं औषधि-निर्माण विद्या), सर्प-विद्या का ज्ञान, नवरसयुक्त भोजन-निर्माण-विधि एवं रतिविस्तार (कामशास्त्र का ज्ञान ) ।
भौगोलिक वर्णन
कवि श्रीधर मात्र भावनाओं के ही चितेरे नहीं, अपितु, उन्होंने जिस भू-खण्ड पर जन्म लिया था, उसके कणकण के अध्ययन का भी प्रयास किया था । यही कारण है कि पासणाहचरिउ में विविध नगर एवं देशवर्णन, नदी, पहाड़, सरोवर, वनस्पतियाँ विविध मनुष्य जातियाँ, उनके विविध व्यापार, भारत-भूमि का तत्कालीन राजनैतिक विभाजन, विविध देशों के प्रमुख उत्पादन तथा उनके आयात-निर्यात सम्बन्धी अनेक भौगोलिक सामग्रियों के चित्रण भी कवि ने किये हैं। उदाहरणार्थ कुछ सामग्री यहाँ प्रस्तुत की जाती है।
1.
कुमार पार्श्व जिस समय काशीराज्य के युवराज पद पर प्रतिष्ठित किए जाते हैं, उस समय जिन-जिन देशों के नरेश उन्हें सम्मान प्रदर्शन हेतु तलवार हाथ में लेकर उनके राजदरबार में पधारे थे, उन उन देशों के वर्गीकृत नाम इस प्रकार है'
पूर्व-भारत
उत्तर भारत
2.
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पश्चिम भारत
दक्षिण भारत
मध्य भारत
युवराज पार्श्व द्वारा आगत रणधुरन्धर विविध नरेशों का सम्मान
युवराज पार्श्व जब यवनराज के साथ युद्ध करने हेतु प्रस्थान करने लगते हैं, तब उनका साथ देने के लिये हुए • निम्न नरेशों के लिये पार्श्व ने उनके अनुकूल निम्न वस्तुएँ भेंट स्वरूप प्रदान कर सम्मानित किया था—
आये
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पासणाह. 2/18
पासणाह, 4/5
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पासणाहचरिउ
वज्रभूमि, अंग, बंग, कलिंग, मगध, चम्पा एवं गउड देश ।
हरयाणा, पार्वतिक (हिमालय प्रदेश के राजा) टक्क, चौहान, जालन्धर, हाण एवं हूण,
बज्जर (बजीरिस्तान)।
गुर्जर, कच्छ एवं सिन्धु ।
कर्नाटक, महाराष्ट्र चोड एवं राष्ट्रकूट ।
मालवा, अवध, चन्दिल्ल, भादानक एवं कलचुरी ।