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पर लालिमा छा गयी है, वह ऐसी प्रतीत होती है, मानों अन्धकार के गुफा-ललाट पर किसी ने सिंदूर का तिलक ही जड़ दिया हो। यथा :
अत्थइरि सिहरिव रत्तु व पट्टलु तम-विलउ।
संझए अवरदिसि पयंसियहो णं सिंदूर-कउ-तिलउ ।। पास. 3/17/13-14 अन्धकार में गुफा-ललाट पर सिन्दूर के तिलक की कवि-कल्पना सचमुच ही अद्भुत एवं नवीन है।
कवि का रात्रि-वर्णन भी कम चमत्कारपूर्ण नहीं। वह कहता है कि समस्त संसार घोर अन्धकार की गहराई में डूबने लगा है, इस कारण विलासिनियों के कपोल रक्ताभ हो उठे हैं, तथा उनके नीवी-बन्ध शिथिल होने लगे हैं। कवि कहता है
च्छुडु णीवी गण-संझ-विलासिनी।
अरुणत्तण गुण-घुसिण विलासिनी।। 3/18/3 बालक पार्श्व का बाल-लीला-वर्णन
कवि श्रीधर ने शिशु पार्श्व की लीलाओं का भी बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। उनकी बाल एवं किशोर-लीलाएँ, उनके असाधारण-सौन्दर्य एवं अंग प्रत्यंग की भाव-भंगिमाओं के चित्रणों में कवि की कविता मानों सरसता का स्रोत बनकर उमड़ पड़ी है। कवि कहता है' कि- "शिशु पार्श्व कभी तो माता के अमृतमय दुग्ध का पान करते, कभी अँगूठा चूसते, कभी मणि-जटित चमचमाती गेंद खेलते, तो कभी तुतली बोली में कुछ बोलने का प्रयास करते। कभी तो वे स्वयं रेंग-रेंगकर चलते और कभी परिवार के लोगों की अंगुली पकड़कर चलते। जब वे माता-पिता को देखते तो अपने को छिपाने के लिए वे हथेलियों से अपनी ऑखें ही बँक लेते थे।"
चन्द्रमा को देखकर वे हॅस देते थे। उनका जटाजूट धारी शरीर निरन्तर धूलि-धूसरित रहता था। खेलते समय उसकी करधनी की शब्दायमान किंकिणियाँ सभी को मोहती रहती थी। कवि के इस बाल-लीला वर्णन ने हिन्दी के भक्तकवि सरदास को सम्भवतः सर्वाधिक प्रभावित किया है। उनकी कष्ण की बाल-लीलाओं के वर्णनों की सदृशता तो दृष्टिगोचर होती ही हैं, कहीं-कहीं अर्धालियों में भी यत्किचिंत हेर-फेर के साथ उनका उपयोग कर लिया गया प्रतीत होता है। यथा
श्रीधर - अविरल धूल धूसरियगत्त.. । पास. 2/15/5 सूर - धूरि धूसरियगत्त... | 10/100/3 श्रीधर - हो हल्लरु....(ध्वन्यात्मक) पास. 1/15/10 सूर - हलरावै (ध्वन्यात्मक) सूरसागर 10/128/8 श्रीधर - खलियक्खर वयणिहिं वज्जरंतु। पास. 2/14/3 सूर - बोलत श्याम तोतरी बतियाँ। सूरसागर 10/147 श्रीधर - परिवरंगुलि लग्गउ सरंतु। 2/14/4
सूर - हरिकौ लाइ अंगुरी चलन सिखावत । सूरसागर 10/128/8 इस प्रकार दोनों कवियों के वर्णनों की सदृशताओं को देखते हुए यदि संक्षेप में कहना चाहें तो कह सकते हैं कि श्रीधर का संक्षिप्त बाल-वर्णन सूरदास कृत कृष्ण की बाल-लीलाओं के वर्णन के रूप में पर्याप्त परिष्कृत एवं विकसित हुआ है।
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पासणाह. 2/14/1-7 पासणाह. 2/14/12, 2/15/4-5
64 :: पासणाहचरिउ