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सुषेणा महिमायुक्ता शुभाशुभकरा इति।
एकादश मित नामा दिल्लीपुरी च वर्तते ।। (1/14-15) अर्थात् (1) शक्रपन्था, (2) इन्द्रप्रस्थ, (3) शुभकृत, (4) योगिनीपुर, (5) दिल्ली, (6) दिल्ली, (7) महापुरी, (8) जिहानाबाद (9) सुषेणा, (10) महिमायुक्ता, एवं (11) शुभाशुभकरा ये दिल्ली के नाम कहे जाते हैं।
उक्त नामों में से मध्यकालीन हस्तलिखित अपभ्रंश पाण्डुलिपियों में योगिनीपुर, दिल्ली एवं जिहानाबाद के प्रचुर मात्रा में उल्लेख मिलते हैं। जिहानाबाद के स्थान पर कहीं-कहीं सम्राट् शाहजहाँ के नाम पर शाहजहाँनाबाद नाम भी मिलता है और हमारी दृष्टि से यह नाम भी उचित प्रतीत होता है।
इस प्रकार पासणाहचरिउ में राजा अनंगपाल, राजा हम्मीर-वीर एवं दिल्ली के उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण हैं। इन सन्दर्भो तथा समकालीन साहित्य एवं इतिहास के तुलनात्मक अध्ययन से मध्यकालीन भारतीय इतिहास के कई प्रच्छन्न अथवा जटिल-रहस्यों का उदघाटन सम्भव है। बुध श्रीधर द्वारा वर्णित दिल्ली (दिल्ली) नगर-वर्णन ___ पासणाहचरिउ की आद्य-प्रशस्ति में महाकवि बुध श्रीधर ने दिल्ली का स्वयं अपनी आँखों द्वारा देखा हुआ वर्णन किया है। जैसा कि पर्व में कहा जा चका है कि महाकवि हरयाणा देश का निवासी था और वहाँ उसने अपनी एक अपभ्रंश रचना 'चंदप्पहचरिउ' का प्रणयन कर जब कुछ थकावट का अनुभव किया, तो उसे शान्त करने हेतु वह यमुना पार कर कुछ समय के लिये भ्रमणार्थ दिल्ली आया था। उस समय यह नगर दिल्ली के नाम से जाना जाता था।
दिल्ली के चतुर्दिक बिखरे हुए वैभव को देखकर वह आश्चर्यचकित हो रहा था। सूर्य की गति को अवरुद्ध करने वाले गोपुर-द्वार, गगनचुम्बी बहुमंजिली अट्टालिकाएँ, पाताल को छूने वाली गहरी खाई, भंगुर-तरंगों वाला अनंग-सरोवर, घण्टारवों से गुंजित धर्मायतन, उन्नत प्राकार, पवनवेगी तुरंगों की घुड़दौड़, कातन्त्र-व्याकरण की पंजिका' -टीका के समान सुन्दर-सुन्दर राजमार्ग, सिद्ध-वैयाकरण के समान निर्दोष-वर्णों का उच्चारण करने वाले नागरिक गण आदि को देखकर वह बहुत ही प्रभावित हुआ था। इन सबसे भी अधिक प्रभावित हुआ वह 'गयणमंडलालग्गु सालु' देखकर। दिल्ली के नट्टल साहू द्वारा निर्मित नाभेय (ऋषभ)-जिनालय
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि नट्टल ने दिल्ली में नाभेय जिनालय का निर्माण कराया था और कवि ने उसी सन्दर्भ में गयणमंडलालग्गू साल की चर्चा भी की है। क्या था यह गयणमंडलालग्ग साल ? (अर्थात गगनमण्डल को छूता हुआ साल—स्तम्भ) (Tower) इस साल-स्तम्भ के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं।
मेरी दृष्टि से यह साल एक जैन-मानस्तम्भ होना चाहिए क्योंकि समकालीन तोमरवंशी राजा अनंगपाल (तृतीय) के प्रिय पात्र राज्य को आर्थिक दृष्टि से समृद्ध बनाने वाले सुप्रसिद्ध महासार्थवाह नटल साह ने दिल्ली-पत्तन में एक विशाल उत्तुंग एवं कलापूर्ण नाभेय-मन्दिर (आदिनाथ-मन्दिर) का निर्माण कराया था और जिसकी प्रधान वेदिका के सम्मुख उन्नत कलापूर्ण मानस्तम्भ भी निर्मित कराया होगा। इसी मन्दिर-शिखर पर नट्टल ने विशेष समारोह में पंचरंगी-झण्डा भी फहराया था।
1. शर्ववर्म कृत कातन्त्र-व्याकरण पर अनेक विद्वानों द्वारा लिखित पंजिका टीकाएँ। 2. आचार्य हेमचंद्र कृत सिद्धहैम-व्याकरण। 3. पासणाह. 1/9/1
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