Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
४१. सेसाणमणिओगद्दाराणमणुभागविहत्तिभंगो | णवरि संकमालावो कायव्त्रो । एवं तेवीसमणिओगद्दार । णि समत्ताणि ।
६४२ भुगगारे ति तत्थ इमाणि तेरस अणिओगद्दाराणि - समुत्तिणा जाव अप्पा बहुए ति । समुत्तिणाणुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओषेण अत्थि ० - अप्प० -अत्रट्ठि०० अत्त० संकामया । एवं मणुसतिए । सेसमग्णासु विहत्तिभंगो ।
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६४३. सामित्ताणु ० दुविहो णिद्देसो- ओषेण आदेसेण य । ओघो विहत्तिभंगो । वरि अवत्त ० संक० कस्स १ अण्गद० जो इगित्रीससंतकम्मि ओवसामगो सव्त्रोवसामणादो परिवदमानगो देवो वा पढमसमयसंकामगो । एवं मणुसतिए । णवरि देवो तिण भाणियो । समम्गणासु विहत्तिभंगो ।
४४. कालो विहतिभंगो । णवरि अवत्त० जह० उक्क० एयसमओ |
४५. अंतराग० दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघो विहत्तिभंगो । वरि अवत्त० जह० अंतोमु०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० सादिरेयाणि । मणुसतिए विशेषार्थ – मोहनीयका जघन्य अनुभागसंक्रम क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिकके होता है, इस लिए तथा अजवन्य अनुभागसंक्रमके मनुष्यों में भी यह इसी प्रकार बन
से तथा मनुष्यत्रिमें इसके अन्तरकालका निषेध किया है। जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालका खुलासा अनुत्कृष्टके समान है। जाता है । मात्र जघन्य अन्तर एक समय नहीं बनता, क्योंकि स्वस्थानकी अपेक्षा उपशान्तमोहका मुहूर्त है। शेष कथन स्पष्ट ही हैं ।
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६४१. शेष अनुयोगद्वारोंका भङ्ग अनुभागविभक्तिके समान है। इतनी विशेषता है कि सत्कर्मके स्थान में संक्रमका श्रालाप करना चाहिए।
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इस प्रकार तेईस अनुयोगद्वार समाप्त हुए ।
६४२. भुजगार संक्रमका प्रकरण है । उसमें सनुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्वतक तेरह अनुयोगद्वार होते हैं । समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोष और श्रादेश । श्रघ भुजगारसंक्रामक, अल्पतरसंक्रामक, अवस्थितसंक्रामक और अवक्तव्यसंक्रामक जीव हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्रिमें जानना चाहिए। शेष मार्गणाओं में अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है ।
४३. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोष और आदेश । श्रोघसे अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यसंक्रमका स्वामी कौन है ? इक्कीस प्रकृतियोंका सत्कर्मवाला जो अन्यतर उपशामक जीव सर्वोपशमनासे गिर कर देव हो गया या प्रथम समय में संक्रामक हो गया वह अवक्तव्यसंक्रमका स्वामी है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य संक्रमका स्वामित्व कहते समय सर्वोपशमनासे गिरते हुए मर कर देव हो गया यह भङ्ग नहीं कहना चाहिए। शेष मार्गणाओं में अनुभाग विभक्तके समान भङ्ग है ।
४४. कालका भङ्ग अनुभागविभक्तके समान है। इतनी विशेषता है कि वक्तव्यसंक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
६४५. अन्तरानुगभकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रघ और आदेश । श्रघसे अनुभागविभक्ति के समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि वक्तव्य संक्रमका जघन्य अन्तरन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तैतीस सागर है । मनुष्यत्रिकमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है ।