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शीर, सांधा, गांठा गुप्त होय; भांगतां सरखा भाग थता होय, छेदाया छतां फरीने ऊगी शके ते साधारण वनस्पति काय नुलक्षण जाणवु.
____जीवो करतां कर्मो अनंत
कर्माणि तेभ्यों यदनन्तकानि समग्रलोकाम्बरसंस्थितानि । घन किमङ्ग येकतरप्रदेशेऽ यनन्तसङ्घयानि शुभाशुमानि ॥४॥ गाथार्थ:- जीवो करतां कर्मो अनंतां छे. ते कमों समग्र लोकाकाश मां रहेलां छे. अधिक शुं ? जीवना कोई एक आत्म प्रदेश मां पण शुभ अने अशुभ एवां अनंत कर्मो रहेलां छे. विवेचनः- जगत मां जीवो अनंत छे. दरेक जीव ने असंख्यात आत्म प्रदेशो होय छे. फक्त गाय ना अांचल माफक जे आठ रुचक प्रदेशो मध्ये भागे आवेला छे. ते स्थिर होवा थी कर्म रहित छे. ते सिवाय ना दरेक प्रात्म प्रदेशे अनंत अनंत कर्मो रहेलां छे तेथी जीव करतां कर्मो अनंतां छे. ए कर्मों चौद रान रूप समग्र लोकमां संपूर्ण व्यापी में रहेलां छे. मूलम्
अनन्तसङ्ख्या:किल कर्मवर्गणा,जीव प्रदेशे पारिकल्प्य एकके शुभाशुमाः केवल दृष्टि दृष्टा मुक्ता प्रमूभ्यः खलु ते हि सिद्धाः५