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उनके द्वारा प्रवर्तित तीर्थ में असंख्य भव्यात्माओं ने आत्मस्नान कर परम पद पाया। उनके गणधरों की संख्या बत्तीस थी, जिनमें कुंभ प्रमुख थे। आखिर चौरासी हजार वर्ष का कुल आयुष्य पूर्ण कर भगवान अरनाथ एक हजार श्रमणों के साथ मासिक संथारे में सम्मेद शिखर पर सिद्ध हुए। -त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र अरविन्द राजा
पोतनपुर नगर नरेश । एक धर्मनिष्ठ और सदाचारी राजा। एक बार महाराज अरविन्द अपने राजमहल की छत पर खड़े प्राकृतिक सुषमा का आनन्द ले रहे थे। मेघ जल बरसा कर अभी थमे ही थे। आकाश पर इन्द्रधनुष खिला था। इन्द्रधनुष के विविध रंगों पर महाराज का मन मुग्ध था। अकस्मात् तेज वायु बहने लगा। देखते ही देखते इन्द्रधनुष छितर गया। इससे राजा को सम्बोधि का सूत्र प्राप्त हुआ कि मानव जीवन रूपी इन्द्रधनुष भी काल की वायु चलने पर शीघ्र ही बिखर जाता है। राजा प्रबुद्ध हो गया और अपने पुत्र राजकुमार महेन्द्र को राजपद सौंपकर समंतभद्राचार्य के पास प्रव्रजित बनकर तप-जप में लीन हो गया। विशुद्ध संयम की आराधना कर उच्च गति का अधिकारी बना।
-पार्श्वनाथ चरित्र अरिदमन
जीवन में व्रत-नियम के सुफल को प्रदर्शित करने वाली अरिदमन की कथा इस प्रकार है
प्राचीन काल में वसंतपुर नामक नगर के बाह्य भाग में एक धीवर बस्ती थी जहां पर जीवन सिंह नामक धीवर रहता था। समुद्र से मछलियां पकड़कर जीवन सिंह अपने परिवार का उदरपोषण करता था। एक बार वह मछलियां पकड़ने के लिए सागर के किनारे जा रहा था। वहां उसे एक मुनि के दर्शन हुए। मुनि ने जीवन सिंह को धर्मोपदेश दिया और उसे हिंसा-त्याग की प्रेरणा दी। जीवन सिंह ने हिंसा के त्याग को अपने लिए अशक्य बताया। इस पर मुनि ने कहा-तुम पूर्ण रूप से हिंसा का त्याग नहीं कर सकते हो तो आंशिक हिंसा का त्याग कर लो! उसके लिए तुम अपने जाल में आने वाली प्रथम मछली को जीवनदान देने का नियम ले लो!
जीवन सिंह ने आंशिक हिंसा त्याग का नियम ले लिया। वह सागर किनारे पहुंचा और सागर में जाल फैला दिया। संयोग से उसके जाल में एक बड़ा मत्स्य फंस गया। परंतु मुनि द्वारा प्रदत्त नियम के अनुसार उसे उस मत्स्य को जीवनदान देना पड़ा। पहचान के लिए उसने उस मत्स्य की पूंछ काट दी और उसे जल में छोड़ दिया। उसके बाद उसने पुनः जाल फैलाया। संयोग से वही मत्स्य उसके जाल में फंसा जिसे वह जीवनदान दे चुका था। फलतः उस मत्स्य को उसे पुनः जल में छोड़ देना पड़ा। जीवन सिंह ने कई बार जाल फैलाया
और प्रत्येक बार वही मत्स्य उसके जाल में फंसता रहा। आखिर संध्या समय वह खाली हाथ ही घर लौटा। पत्नी के पूछने पर उसने नियम की बात बताई और खाली लौट आने की पूरी कहानी सुना दी। ___ जीवन सिंह की पत्नी प्रचंड स्वभाव की स्त्री थी। उसने पति को चेतावनी दी-या तो अपने नियम को छोड़ दो या इस घर को छोड़ दो। जीवन सिंह ने नियमत्याग पर गृहत्याग को प्रमुखता दी और वह गृहत्याग कर निकल गया। रात्रि में वह एक वृक्ष के नीचे सो गया। रात्रि में सहसा वृक्ष की शाखा टूट कर उस पर गिर पड़ी और उसका देहावसान हो गया। ___नियम के फलस्वरूप जीवन सिंह मृत्यु के पश्चात् उसी नगर के एक समृद्ध श्रेष्ठी के पुत्र रूप में जन्मा। वहां उसका नाम अरिदमन रखा गया। अशुभ कर्मों का भार भी उसके साथ था। परिणामस्वरूप बाल्यकाल में ही उसके माता-पिता का निधन हो गया। लक्ष्मी भी उस घर से रूठ गई। अल्पायु अरिदमन को एक ... 36 ...
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