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पात्र खीर से भर दिया था। मुनि का पात्र ही नहीं भरा था मेरा पुण्य का पात्र भी भर चुका था। माता ने शेष खीर मेरे पात्र में उंडेली तो मैंने भरपेट आहार किया । गरिष्ठ आहार निमित्त बना और देह त्याग कर मैं पुण्य को भोगने यहां आकर जन्मा हूं। एक मुनि को दिया गया अल्प दान इतना चामत्कारकि हो सकता है तो स्वयं मुनि हो जाना कितना चामत्कारिक होगा ?
शालिभद्र ने सुदृढ़ संकल्प कर लिया मुनि बनने का । वे प्रतिदिन एक-एक पत्नी को समझाने लगे । उधर शालिभद्र की सहजाता सुभद्रा धन्य सेठ (धन जी / धन्ना जी) के साथ विवाहित थी। सुभद्रा के उपालंभ पर धन्य सेठ शालिभद्र के पास पहुंचे और उन्होंने उसे समझाया कि बत्तीस दिन का समय पत्नियों को समझाने में व्यर्थ करना नासमझी है। सिंह पुरुष तो संकल्प को तत्क्षण पूर्ण करते हैं ।
शालिभद्र और धन्य जी भगवान महावीर के पास जाकर दीक्षित हो गए। उग्र तप से धन्य जी ने निर्वाण प्राप्त किया और शालिभद्र जी ने सर्वार्थसिद्ध विमान । महाविदेह में जन्म लेकर शालिभद्र भी मोक्ष प्राप्त करेंगे। (देखिए धन्य जी) - स्थानांग वृत्ति शालिशुक मौर्य
एक मौर्यवंशी राजा। वह अशोक महान का प्रपौत्र और सम्राट् सम्प्रति का पुत्र था। ई.पू. 190 के आस-पास वह सिंहासनासीन हुआ ।
शालिक अपने पिता और पितामह की तरह ही जैन धर्मानुरागी था । अपने पिता सम्प्रति 1 भांति ही उसने भी जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के अनेक उपक्रम किए और जैनधर्म को राज्याश्रय प्रदान किया । शालिक का शासन काल अल्प वर्षों का ही रहा। अपने अल्प शासनकाल में उसने जिन प्रभावना के अच्छे प्रयास किए।
शिखावती
कुंडिनपुर के महाराज भीम की रानी और रुक्मिणी की माता ।
(क) शिव
अश्वपुर नगर के राजा और पुरुषसिंह वासुदेव के जनक । (देखिए-पुरुषसिंह वासुदेव) (ख) शिव कुमार
महाविदेह की वीतशोका नगरी का राजकुमार । युवावस्था में उसका कई राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। राजकुमार शिवकुमार सुखभोग पूर्वक जीवन यापन कर रहा था। एकदा उसकी नगरी में अवधिज्ञानी मुनि सागरदत्त पधारे। शिवकुमार मुनिदर्शन कर सागरदत्त मुनि के प्रति आत्यन्तिक रूप से आकर्षित हुआ। सागरदत्त मुनि के प्रति उसके हृदय में तीव्र अनुराग भाव उत्पन्न हुआ। उसने मुनि से अपने हृदय में उनके प्रति उभरे अज्ञात स्नेह का कारण पूछा। मुनि सागरदत्त ने फरमाया, पूर्वजन्म में तुम मेरे अनुज थे। तुम्हारा नाम भवदेव और मेरा नाम भवदत्त था । मैंने पहले प्रव्रज्या धारण की। बाद में मेरे प्रति स्नेह और आदर सूत्र में बंधकर तुमने भी दीक्षा धारण की। पूर्व जन्म का भ्रातृत्व वर्तमान के अनुराग का आधार है।
अपने पूर्व जन्म का विवरण सुनकर शिवकुमार विरक्त हो गया। उसने राजमहल लौटकर माता-पिता को अपने पूर्वभव का इतिवृत्त सुनाया और प्रव्रज्या धारण करने की अनुज्ञा मांगी। परन्तु उसके पुनः पुनः के आग्रह पर भी पुत्र-मोह-मुग्ध माता-पिता ने उसे प्रव्रज्या की अनुमति नहीं दी। इस पर भी शिवकुमार का • जैन चरित्र कोश •••
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