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शूलपाणि (यक्ष) ___ अस्थिग्राम के पार्श्वभाग में स्थित यक्षायतन का स्वामी यक्ष । पूर्वभव में वह एक बैल था और अपने स्वामी धनदेव को अतिप्रिय था।
किसी समय धनदेव व्यापार के लिए वर्धमान ग्राम के निकट से गुजर रहा था तो उसकी गाड़ियां कीचड़ में धंस गईं। तब उस बैल ने ही एक-एक करके उन समस्त गाड़ियों को कीचड़ से बाहर निकाला। पर वैसा करते हुए उसके कन्धे टूट गए। वह गिर पड़ा। धनदेव ने ग्रामीणों को प्रचुर धन देकर कहा कि वे उसके बैल की सेवा करें, वह लौटते हुए उसे अपने साथ ले जाएगा। पर गांव वालों ने उस बैल को मरने के लिए एकाकी छोड़ दिया और वह धन परस्पर बांट लिया। बैल सभी कुछ देख और समझ रहा था। विवशता और क्रोध में मरकर वह शूलपाणि नामक यक्ष बना। पूर्वजन्म की स्मृतियां जगते ही उसके क्रोध का पार न रहा। उसने ग्रामीणों पर आक्रमण कर दिया और उन्हें मार डाला। एक स्थान पर हड्डियों का विशाल ढेर लग गया। इसी से उस ग्राम का नाम वर्धमान ग्राम से अस्थिग्राम हो गया।
बचे-खुचे ग्रामीणों ने यक्ष की पूजा-प्रतिष्ठा की और उसके लिए यक्षायतन का निर्माण कराया। यक्षायतन में रात में ठहरने वाले मुसाफिरों को यक्ष मार देता था। उधर साधनाकाल का प्रथम वर्षावास बिताने के लिए भगवान महावीर उस यक्षायतन में आए। पुजारी सहित ग्रामीणों ने भिक्षु महावीर को यक्षायतन में न ठहरने के लिए कहा और समग्र इतिहास सहित शूलपाणि की कथा सुनाई। पर अभयमूर्ति महावीर ने यक्षायतन को ही अपनी साधना के अनुकूल पाया और वहीं ठहर गए। रात्रि में यक्ष ने विभिन्न रूप धारण कर महावीर की समाधि को खण्डित करना चाहा, पर सफल न हो सका। आखिर महावीर ने ही उसे अहिंसा ही दीक्षा देकर उसे हिंसक से अहिंसक और दैत्य से देव बना दिया।
-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र शेषवती
वाराणसी नरेश अग्निसिंह की रानी और सप्तम वासुदेव दत्त की माता। (देखिए-दत्त वासुदेव) शैलक (यक्ष)
रत्नद्वीप पर रहने वाला एक यक्ष। (दखिए-जिनपाल) शैलक राजर्षि
अरिहंत अरिष्टनेमि कालीन एक राजर्षि । पूर्व-जीवन में वह शैलकपुर नगर का राजा था। पंथक प्रमुख पांच सौ उसके मंत्री थे। थावर्चापुत्र अणगार के धर्मोपदेश से राजा और उसके पांच सौ मंत्रियों ने श्रावक धर्म अंगीकार किया। कालान्तर में शुक अणगार के सान्निध्य में राजा ने अपने पांच सौ मंत्रियों के साथ दीक्षा धारण कर ली।
किसी समय शैलक राजर्षि जनपद में विचरण करते हुए अपने नगर में आए। वे कुछ अस्वस्थ हो गए। अपने पुत्र मंडूक राजा की प्रार्थना पर अपने ही नगर में रहकर शैलक उपचार कराने लगे। राजाज्ञा से मुनियों के लिए समस्त राजसी सुविधाएं जुटा दी गईं। शनैः-शनैः शैलक राजर्षि तन से तो स्वस्थ हो गए पर मन से अस्वस्थ हो गए। संयमाचार को विस्मृत कर शिथिलाचारी बन गए। शैलक मुनि को शिथिलाचारी जानकर चार सौ निन्यानवे शिष्य अन्यत्र विहार कर गए। पंथक मुनि ही शैलक राजर्षि की सेवा में रहा।
___ एक बार चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करके पंथक मुनि ने शैलक राजर्षि को वन्दन करते हुए क्षमापना की ... जैन चरित्र कोश ...
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