Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 698
________________ (ग) सुदर्शन (अर्जुनमाली) ___ अन्तगडसूत्र के अनुसार सुदर्शन सेठ राजगृह नगर का एक धनी और प्रतिष्ठित श्रेष्ठी था। उसकी सबसे बड़ी पहचान थी कि वह एक दृढ़धर्मी श्रावक था। भगवान महावीर के चरणों पर उसकी अगाध और अपार आस्था थी। उसकी श्रद्धा इतनी प्रकृष्ट थी कि प्राणों के मूल्य पर भी वह अपनी श्रद्धा की रक्षा के लिए प्रस्तुत रहता था। वणिक होते हुए भी वह अति साहसी था। वास्तव में उसकी श्रद्धा और भक्ति ने उसे अभय बना दिया था। एक समय जब पूरा राजगृह नगर अर्जुन माली के रौद्ररूप से आतंकित था और स्वयं महाराज श्रेणिक अपने सैन्यबल से भी अर्जुन का पार नहीं पा सके थे तथा पूरा राजगृह नगर अपनी ही चार दीवारी में बन्दी बनकर रह गया था तब सुदर्शन सेठ ने ही इस भय से नगरी को मुक्त किया था। उन्हीं दिनों नगरी के बाहर भगवान महावीर पधारे। सभी श्रद्धालु भगवान के दर्शनों के लिए जाना चाहते थे, पर अर्जुन के आतंक ने सभी की श्रद्धा-भक्ति को जड़ बना दिया था। पर सुदर्शन की भक्ति जड़ नहीं बनी। उसने भगवान की पर्युपासना के लिए जाने का संकल्प किया। उसके माता-पिता और मित्रों ने अर्जुन के भय की व्याख्या कर उसे उसका संकल्प बदलने के लिए बाध्य किया। परन्तु सुदर्शन ने इस तर्क के साथ कि मृत्यु का क्षण सुनिश्चित है, उसे टाला या निर्मित नहीं किया जा सकता है-सब के प्रश्नों-शंकाओं को निरस्त कर दिया। स्वयं सम्राट् श्रेणिक ने सुदर्शन से उसके संकल्प पर पुनर्विचार करने को कहा, पर विनम्रता से सुदर्शन ने इसे अस्वीकार कर दिया। सुदर्शन नगर-द्वार से निकला ही था कि रौद्र रूप अर्जुन मुद्गर को लहराता हुआ उसके समक्ष आ गया। सुदर्शन ने निर्भय भाव से महावीर को भाववन्दन किया और सागारी अनशन के साथ ध्यानस्थ बन गया। अर्जुन ने सुदर्शन पर प्रहार करने के लिए मुद्गर ऊपर उठाया पर उसके शरीर में रहा हुआ यक्ष सुदर्शन के तेज को सह न सका। अर्जुन का हाथ ऊपर ही स्तंभित बन गया। उसी क्षण यक्ष उसकी देह से निकल अपना मुद्गर साथ लेकर अपने स्थान पर चला गया। लगभग पांच मास से अधिक का भूखा-प्यासा अर्जुन धड़ाम से जमीन पर आ गिरा। उपसर्ग को अतीत जानकर सुदर्शन ने आंखें खोलीं। उसने अर्जुन के सिर पर हाथ रखा और उसे अपने साथ भगवान के चरणों में ले गया। महावीर के उपदेश से प्रतिबुद्ध बनकर अर्जुन ने मुनिव्रत धारण कर लिया। सुदर्शन की श्रद्धा के समक्ष यक्ष पराजित हो गया। मानव से दानव बने अर्जुन के लिए वह आत्मसिद्धि का द्वार बना। इस सबसे चहुं ओर सुदर्शन की जय-जयकार हुई। कालान्तर में सुदर्शन ने भी दीक्षा धारण की और आत्मकल्याण के परमयज्ञ में कर्माहुति दे परम गति पाई। -अन्तगड सूत्र 6/3 (घ) सुदर्शन (गाथापति) ___वाणिज्य ग्रामवासी एक समृद्ध गाथापति। किसी समय वाणिज्य ग्राम के बाहर धुतिपलाश नामक उद्यान में भगवान महावीर पधारे। भगवान का उपदेश सुनकर सुदर्शन विरक्त बनकर प्रव्रजित हो गया और शुद्ध संयम पालकर सिद्ध हुआ। -अन्तगडसूत्र वर्ग 6, अध्ययन 10 (ङ) सुदर्शन (नृप) __सुदर्शन नृप को आम्रफल खाने का बहुत शौक था। उसने अपने बगीचे में सभी ऋतुओं में फल देने वाले आम्रवृक्ष लगवाए थे। वह प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में आम्रफल खाता था। परिणाम यह हुआ कि राजा ... जैन चरित्र कोश ... - 657 ...

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