Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 749
________________ (क) स्वयंभूदेव गंगातट नामक नगर में रहने वाला एक किसान। खेती-बाड़ी उसका व्यवसाय था, पर अपनी आय से वह सन्तुष्ट नहीं था। उसने अधिक आय के लिए व्यापार करने का संकल्प किया। छकड़ों में किरयाणा भरकर उसने देशाटन किया। उसने कई नगरों में व्यापार किया, उसे लाभ भी हुआ, पर उसका मन सन्तुष्ट नहीं हुआ। उसी क्रम में वह लक्ष्मीशीर्ष नगर में पहुंचा। वहां कई समृद्ध श्रेष्ठी रहते थे। उसने उन श्रेष्ठियों से अधिक धन कमाने का उपाय पूछा। श्रेष्ठियों ने उसे बताया कि वह चिलात देश में व्यवसाय करे तो उसे पर्याप्त समृद्धि प्राप्त हो सकती है। अधिक धन कमाने की कामना के वशवर्ती बना स्वयंभू किसान छकड़ों में विभिन्न पदार्थ भर कर चिलात देश के लिए रवाना हुआ। अनेक लोगों को उसने अपने साथ भी लिया। कठिन और क्लिष्ट यात्रा करते हुए उसका काफिला चिलात नगर के निकट पहुंचा। जंगली दस्युओं की दृष्टि उसके काफिले पर पड़ गई। दस्युओं ने उसका माल लूट लिया और उसके साथियों को मार दिया। किसी तरह छिपकर चिलात नगर पहुंचने में सफल हो गया। यह एक अनार्य लोगों का नगर था। अनार्य बालकों ने अजनबी स्वयंभू को देखा तो उसे रस्सों से बांध दिया और उसे अमानवीय यातनाएं दीं। कई महीनों तक वह अनार्य बालकों का खिलौना बना रहा। वह मृत्यु की कामना करता था पर मृत्यु भी उसे प्राप्त नहीं होती थी। आखिर उसके अशुभ कर्म कम हुए तो वह अनार्य बालकों के बन्धन से किसी तरह मुक्त हो गया और भाग छूटा। कई दिनों तक चलने पर वह आर्य भूमि में पहुंचा। सुसंयोग से उसे एक मुनि के दर्शन हुए। मुनि के उपदेश से उसे आत्मबोध प्राप्त हुआ। आखिर उसने मुनिधर्म की आराधना की और आत्मधन पाकर ही उसे सन्तुष्टि प्राप्त हुई। संयम का सम्यक् पालन कर वह सद्गति में गया। (ख) स्वयंभूदेव (कवि) __ जैन कवियों की शुभ्र-धवल परम्परा में एक नाम महाकवि स्वयंभूदेव का भी है। स्वयंभूदेव ईसा की आठवीं शती के एक जैन श्रावक थे। वे साहित्य की विविध विधाओं और अंगों के पण्डित थे। अपभ्रंश भाषा का उनका ज्ञान अगाध था। स्वयंभूदेव संभवतः दाक्षिणात्य थे। उनके पिता का नाम मारुतदेव था जो अपने समय के यशस्वी कवि थे। उनकी माता का नाम पद्मिनी था जो एक विदुषी महिला थी। स्वयंभूदेव ने संभवतः कई विवाह किए थे। उनकी तीन पत्नियों के नाम क्रमशः निम्न प्रकार से थे-(1) अइच्चंबा (2) सामिअंब्बा और सुअव्वा। ये तीनों ही पत्नियां सुशिक्षित थीं और पति के लेखन में सहयोग करती थीं। त्रिभुवनस्वयंभू स्वयंभूदेव का उनकी तृतीय पत्नी से उत्पन्न प्रतिभाशाली और कवित्व मेधा सम्पन्न पुत्र था जिसे कई विरुद भी प्राप्त थे। ___ स्वयंभूदेव अपभ्रंश काव्य के मेधावी कवि थे। उनकी तीन रचनाएं उपलब्ध हैं-(1) पउमचरिउ (2) रिट्ठणेमिचरिउ और (3) स्वयंभूछन्द। स्वरूपश्री ____ हस्तिनापुर के नगर सेठ धनसार की पत्नी। (देखिए-भविष्यदत्त) स्वस्तिका वीतशोका नगरी के राजकुमार अजितवीर्य (विहरमान तीर्थंकर) की परिणीता। (देखिए-अजितवीर्य स्वामी) ...708 ... -... जैन चरित्र कोश ...

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