Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 753
________________ कई वर्षों तक हंसराज कुन्तीनगर पर शासन करता रहा। कालान्तर में माता-पिता से हंसराज और वच्छराज का मिलन हुआ। असत्य की पराजय हुई। सत्य विजयी हुआ। सुदीर्घ काल तक राजपद पर रहकर हंसराज और वच्छराज ने प्रजा का पुत्रवत् पालन किया। अंतिम वय में संयम साधना की और श्रेष्ठ गति का अधिकार पाया। हंसावली पैठणपुर नरेश नरवाहन की रानी तथा हंसराज और वच्छराज की जननी। (देखिए-हंसराज) हनुमान हनुमान दशरथ-नन्दन श्री राम के अनन्य भक्त और अंजना व पवनंजय के पुत्र थे। हनुमान का जन्म अत्यन्त विकट स्थितियों में जीवन यापन कर रही अंजना की कुक्षी से एक पर्वत गुफा में हुआ था। हनुमान के जन्म लेते ही माता के कष्टों का अंत हो गया। कहते हैं कि अंजना का मामा हनुपुर नरेश प्रतिसूर्य अपने विमान में उधर से गुजर रहा था। सहसा उसका विमान आकाश में अवरुद्ध हो गया। नीचे आकर प्रतिसूर्य ने अंजना को नवजात शिशु के साथ देखा। उसने उन्हें अपने विमान में बैठाया और अपने नगर की ओर चला। कहते हैं कि हनुमान जन्म से ही बहुत चंचल थे। माता की गोद से उछले और विमान से नीचे गिर गए। विमान को नीचे उतारा गया। देखा कि जिस शिला पर हनुमान गिरे थे वह चूर-चूर हो गई थी, पर हनुमान को कहीं खरोंच तक नहीं आई थी। इसी घटना के कारण हनुमान को वज्रांग, बजरंग आदि नामों से भी पुकारा गया। ___ सुग्रीव हनुमान के मित्र थे। वहीं पर हनुमान को श्री राम के प्रथम दर्शन हुए। हनुमान श्री राम से इतने प्रभावित हुए कि उनके अनन्य भक्त बन गए। हनुमान ने ही सीता की खोज की और लंकादहन कर रावण को राम भक्त की शक्ति से परिचित कराया। राम-रावण युद्ध में भी हनुमान ने अपूर्व शौर्य दिखाया। ___ हनुमान एक बार अपने महल की छत पर टहल रहे थे। संध्या का समय था। अस्त होते सूर्य को देखकर वे प्रतिबोध को प्राप्त हुए कि जीवन का सूरज भी एक दिन डूबने वाला है। प्रव्रजित बने। सकल कर्म खपा कर सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हुए। भारत वर्ष में हनुमान लोगों की श्रद्धा का केन्द्र हैं। हरजसराय (कवि) एक भक्त हृदय जैन कवि। कविवर हरजसराय जी का जन्म लगभग दो सौ वर्ष पूर्व कसूर नगर (जिला लाहौर-वर्तमान पाकिस्तान) में एक जैन परिवार में हुआ। वे जाति से ओसवाल और गोत्र से गधैया गोत्रीय थे। कविवर हरजसराय जी का जीवन जैन संस्कारों से संस्कारित था। अरिहंत देव के प्रति अटूट आस्था और दृढ़ अनुराग उनके हृदय में था। भक्ति के अतल सागर में पैठकर उन्होंने पदों की रचना की। यही कारण है कि उनके द्वारा रचित 'साधु गुण माला' 'देवाधिदेव रचना' तथा 'देवरचना' नामक कृतियों के एक-एक पद को पढ़ते हुए पाठक भक्ति और आत्मचिन्तन की गहराइयों में उतर जाता है। कविवर हरजसराय की जहां काव्यमयी प्रतिभा उच्चकोटि की थी वहीं उनका व्यक्तिगत जीवन भी जिनत्व के रंग से पूरी तरह रंगा हुआ था। उनके जीवन का एक प्रसंग विश्रुत है...712 .. ... जैन चरित्र कोश ...

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