Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 767
________________ होलिका सात भाइयों की इकलौती बहन थी, इसी कारण उसे अत्यधिक लाड़-प्यार प्राप्त हुआ। वह बुद्धिमती भी थी। यौवन द्वार पर पहुंचते-पहुंचते वह स्त्री की चौंसठ कलाओं में पारंगत हो गई। पर अधिक लाड़-प्यार और दुःसंगति के कारण वह चारित्र भ्रष्ट हो गई। नगरजन देवप्रिय विप्र पर थू-थू करने लगे। विप्र ने गोपनीय विधि से ग्रामान्तर में होलिका का एक निर्धन विप्र-पुत्र से पाणिग्रहण कर दिया। पर पतिगृह में भी होलिका अपने स्वच्छन्दाचार के कारण अपमानित हुई। पति ने उसे तिरस्कृत करके निकाल दिया। वह पुनः पितृगृह में आ गई। पर उसका स्वच्छन्दाचार जारी रहा। विवश पिता ने उसे अपने घर से निकाल दिया। होलिका अपने मित्रदल के साथ नगर के बाह्य भाग में रहकर दुराचार फैलाने लगी। नगर में उसका भारी अपवाद फैल गया। आखिर राजा के आदेश पर होलिका के घर को जला दिया गया। होलिका अपनी मित्र मण्डली सहित जल मरी। मरते हुए उसके मन में अपने दुराचार के प्रति ग्लानि का भाव उभरा । मरकर वह व्यंतरी बनी। उसने अवधिज्ञान में अपने मरण का कारण देखा तो वह वसंतपुर नगर पर रोषारुण बन गई। उसने देव-बल से नगर में महामारी फैला दी। नगरजन त्राहि-त्राहि करने लगे। — उसी अवधि में मुनि अरहतार्य वसन्तपुर नगर में पधारे। उन्होंने वैर परम्परा और उसके दुष्परिणाम पर अपने प्रवचन में प्रकाश डाला। व्यंतरी होलिका को उससे सद्बुद्धि प्राप्त हो गई। उसने प्रायश्चित्त का एक विचित्र उपाय निकाला। उसने आकाशवाणी की-सकल प्रजा फाल्गुण मास में होलिका का प्रतीक निर्मित कर उसका दहन करे और उसके दहन पर उत्सव मनाए। प्रजा ने आकाशवाणी को स्वीकार कर लिया। नगरजन स्वस्थ हो गए। प्रतिवर्ष फाल्गुण मास में होलिका दहन किया जाने लगा जो धीरे-धीरे एक परम्परा बन गया। आज भी होलिका दहन को भारत में एक त्यौहार की भांति मनाया जाता है, जो दुराचार के दहन का प्रतीक है। होलिका का प्रायश्चित्त आज तक जारी है। होलिका का जीव व्यंतर भव से मुक्त होकर मानव-भव धारण करके अपनी मंजिल प्राप्त करेगा। ही (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 23 ... 726 . ... जैन चरित्र कोश...

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