Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 721
________________ गया। पर विलाप व्यर्थ है, यह बात वह जानती थी। वह शीघ्र ही शान्त हो गई। उसने अपनी स्थिति के लिए अमरकुमार को नहीं, अपने कर्मों को ही दोषी माना। उसे कुछ दिन उसी विजन वन में व्यतीत करने पड़े। वह जानती थी कि अवश्य ही कोई व्यापारिक जहाज यहां पर आएगा। हुआ भी वही। एक जहाज वहां पर आया। कमलदत्त सेठ जहाज का स्वामी था। उसने सरसंदरी को देखा और वह उसके रूप पर मोहित हो गया। प्रगटतः उसने उसे 'भगिनी' कह कर पुकारा और विश्वास दिया कि वह उसे वेनातट पहंचा देगा जहां उसका पति व्यापार के लिए गया है। विश्वस्त बनकर सुरसुंदरी जहाज पर सवार हो गई। जहाज आगे बढ़ा। एक-दो दिन बीतने पर कमलदत्त ने सुरसुंदरी के समक्ष अपने कलुषित भाव प्रगट किए। अप्रत्याशित प्रस्ताव पर सुरसुंदरी ने कमलदत्त को फटकार पिलाई। कमलदत्त ने बल प्रयोग की धमकी दी तो अपने शील के रक्षण के लिए सुरसुंदरी ने समुद्र में छलांग लगा दी। तत्क्षण कमलदत्त का पाप फला और उसका जहाज टूटकर समुद्र में समा गया। जहाज के एक तख्ते के सहारे सुरसुंदरी समुद्र में तैरने लगी। उधर से एक अन्य जहाज गुजरा। जहाज के स्वामी सेठ ने सुरसुंदरी की प्राण रक्षा की। उस सेठ ने भी सुरसुंदरी से काम-प्रस्ताव रखा। सुरसुंदरी ने कहा, पर पुरुष के चिन्तन मात्र की अपेक्षा वह मर जाना पसन्द करती है। दाल न गलते देख सेठ ने सोवनकुल नगर में जाकर एक वेश्या के हाथ सुरसुंदरी को बेच दिया। किसी न किसी तरह वेश्या के चंगुल से सुरसुंदरी भागी तो नगर के राजा के चंगुल में फंस गई। राजा की रानी के सहयोग से सुरसुंदरी ने अपने शील को रक्षित किया। वहां से भाग कर वह जंगल में पहुंची। एक चोर पल्लीपति के जाल में उलझ गई। पुनः-पुनः उसके शील पर भिन्न-भिन्न रूपों में पुरुष रूपी राहू उसे ग्रस लेने को उद्यत हुआ, पर अपनी युक्तियों और साहस से उसने अपने शील को अखण्ड रखा। आखिर चन्द्रगति नामक एक विद्याधर के घर उसको शरण मिली। विद्याधर ने न केवल सुरसुंदरी को भगिनी का मान दिया बल्कि उसे कई विद्याएं भी प्रदान की। ___एक ज्ञानी संत ने एक दिन सुरसुंदरी को बताया कि उसे उसका पति वेनातट नगर में मिलेगा। भाई की अनुमति प्राप्त कर सुरसुंदरी वेनातट नगर पहुंची। विद्याधर प्रदत्त विद्या से उसने पुरुषवेश धारण किया और एक मालिन के घर वह अतिथि बनी। उसने मालिन को सात कौड़ियां प्रदान की और उनके बदले में कुछ फूल प्राप्त किए। फूलों से उसने एक पंखा बनाया और मालिन से कहा कि वह इस पंखे को एक लाख स्वर्णमुद्राओं में बेचे। मालिन के पूछने पर उसने पंखे की विशेषता बताई कि उसकी हवा से असाध्य रोग तत्क्षण मिट जाएगा। आखिर नगर-नरेश जो कुष्ठरोग से पीड़ित था उसने पंखा खरीदा और कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त की। राजा ने अपनी घोषणा के अनुसार पुरुषवेशी सुरसुंदरी को आधा राज्य प्रदान किया और उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह भी कर दिया। इस प्रकार सुरसुंदरी ने सात कौड़ियों से राज्य प्राप्त किया। ___ सुरसुंदरी पुरुषवेश में थी, पर थी तो वह नारी ही। राजकुमारी से उसका विवाह हुआ तो उसने राजकुमारी से कहा कि उसका मित्र उससे बिछड गया है और जब तक वह अपने मित्र को प्राप्त नहीं कर लेगा तब तक अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करेगा। राजकुमारी ने पुरुषवेशी सुरसुंदरी के मित्र-प्रेम की प्रशंसा की और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए उसके साथ रहने लगी। ___व्यापार के लिए अमरकुमार वेनातट नगर पहुंचा। सुरसुंदरी ने बन्दरगाह पर अपने अंतरंग व्यक्ति नियुक्त किए हुए थे। आखिर अमर कुमार को कौतुहल आदि से गुजार कर सुरसुंदरी ने उससे भेंट की। अमरकुमार पत्नी को पाकर आनन्दमग्न हो गया। सात कौड़ियों से खरीदे राज्य की कथा सुनकर उसे नारी की नारायणी शक्ति का परिबोध भी प्राप्त हो गया। ... 680 ... जैन चरित्र कोश ...

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