Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 744
________________ कई वर्षों तक सोमिल श्रावक धर्म का पालन करता रहा। कालांतर में असाधु-दर्शन से वह मिथ्याट बन गया। उसने 'दिशाप्रोक्षक' प्रव्रज्या धारण कर ली और गंगा नदी के किनारे रहकर वह तपस्या करने लगा। एक बार अनित्यता का चिन्तन करते हुए उसने महाप्रस्थान का निश्चय किया। उसने काष्ठमुद्रा से अपना मुंह बांध कर उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान कर दिया। उसका संकल्प था कि चलते-चलते वह जहां भी किसी गड्ढे आदि में गिर गया तो वहां से निकलने का प्रयास नहीं करेगा। उस स्थान पर पड़ा रहकर देहोत्सर्ग कर देगा। उसके प्रस्थान की प्रथम रात्रि में एक देव उसके पास आया और बोला, सोमिल ! तुम्हारी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है। देव ने दो-तीन बार ऐसा कहा। पर सोमिल ने देव की उपेक्षा कर दी और वह चलता रहा। निरन्तर चार रात्रियों तक देव उपस्थित होता रहा और सोमिल को उसकी दुष्प्रव्रज्या के प्रति सचेत करता रहा। परन्तु सोमिल देव के कथन को असुना करता रहा। पांचवीं रात्रि में भी देव आया और उसने अपनी बात दो-तीन बार दोहराई। इस बार सोमिल ठहर गया और उसने पूछा, मेरी प्रव्रज्या दुष्प्रव्रज्या है तो सम्यक्-प्रव्रज्या क्या है? देव ने कहा, तुमने प्रभु पार्श्वनाथ से श्रावक धर्म अंगीकार किया था, वही सम्यक् धर्म है और वही सम्यक् प्रव्रज्या है। उसका त्याग कर तुमने अच्छा नहीं किया। सोमिल ने पूछा, आप ही बताइए कि इस समय मेरे लिए क्या उचित है? देव ने कहा, तुम्हारे लिए यही उचित है कि तुम पुनः श्रावक धर्म को धारण करो और सम्यक् रूप से उसकी आराधना करो। __सोमिल ने देव की बात स्वीकार कर ली और उसने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया। वह उपवास, बेले, तेले और मासखमण तप करते हुए विचरने लगा। अंत में मासार्ध की संलेखना के साथ उसने देहोत्सर्ग किया। पूर्व विराधना की शुद्धि उसने नहीं की। परिणामतः वह शुक्र महाग्रह देव बना। यही देव भगवान महावीर के दर्शनार्थ एक बार आया और इसने नाना नाट्य विधियां प्रदर्शित की। गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान ने फरमाया कि देवभव पूर्ण कर के सोमिल का जीव महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य भव धारण करेगा और निर्ग्रन्थ धर्म का सम्यक् आराधन कर के सिद्धत्व प्राप्त करेगा। (ग) सोमिल (ब्राह्मण) महावीर युग का अपापावासी एक संपत्तिशाली और यज्ञों का विश्वासी ब्राह्मण। इन्द्रभूति आदि ब्राह्मण विद्वान उसके यज्ञ के प्रमुख याज्ञिक थे। भगवान महावीर ने जब तीर्थ की स्थापना की तो उसका प्रमुख यज्ञ चल रहा था। सभी मान्य ब्राह्मण विद्वानों के महावीर के पास चले जाने के कारण उसका यज्ञ अपूर्ण ही रह गया था। सोमिल (मुनि) प्राचीन कालीन एक जैन मुनि जो निमित्त शास्त्र के पारगामी विद्वान थे। (देखिए-रुद्रसूरि) सौदामिनी (आर्या) सौदामिनी आर्या की सम्पूर्ण कथा इला आर्या के समान है। (देखिए-इला आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., तृ.वर्ग, अध्ययन 3 ... जैन चरित्र कोश .. -- 703 ...

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