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तब सोमा ने हार को हाथ में लेकर कहा-महाराज! कथा का पक्ष अभी अधूरा है। यह पक्ष तब पूर्ण होगा जब इस हार को आप मेरे हाथ से ग्रहण करेंगे। राजा झेंप गया। उसने कहा-पुत्री! इसे जमीन पर रख दो!
सोमा ने हार को जमीन पर रखा तो वह पुनः सर्प बनकर जमीन पर रेंगने लगा। इस घटना से सोमा और जैन धर्म की चतुर्दिक् में जय-जयकार हुई। पति और श्वसुर ने सोमा से क्षमा मांगी और उन्होंने भी जैन धर्म अंगीकार कर लिया। (ङ) सोमा (परिव्राजिका)
चोराक सन्निवेश-वासिनी एक परिव्राजिका। जयंती नामक एक अन्य परिव्राजिका उसकी सहचरी थी। वे दोनों पहले प्रभु-पार्श्व की परम्परा में दीक्षित हुई थीं पर साधना की कठिनता से चलित बनकर वे संयम से च्युत हो गईं और परिव्राजिकाएं बन गईं। चोराक सन्निवेश के अधिकारियों ने जब भगवान महावीर को चोर समझकर गिरफ्तार कर लिया तो इन्हीं परिव्राजिकाओं ने अधिकारियों को महावीर का परिचय दिया जिस पर अधिकारियों ने अपनी भूल का परिहार करते हुए महावीर को मुक्त किया। सोमाई महत्तरा
अंचलगच्छ की प्रथम साध्वी-प्रमुखा। अंचलगच्छ के संस्थापक आर्यरक्षित सूरि विहार यात्रा में 'बेपाण' नगर में पधारे। वहां एक कोटीश्वर श्रेष्ठी रहते थे जिनका नाम कोडी था। सोमाई कोडी की पुत्री थी। सोमाई का पालन-पोषण अतिशय समृद्धि में हुआ था। वह एक करोड़ मूल्य के सोने के स्वर्णाभूषण धारण करती थी। परन्तु आर्यरक्षित सूरि के उपदेश से उसने शरीर और स्वर्ण की नश्वरता को पहचाना तथा दीक्षा अंगीकार कर ली। आचार्य श्री ने उसका नाम 'समयश्री' रखा। ___ कालक्रम से समयश्री को 'महत्तरा पद' पर प्रतिष्ठित किया गया और वे सोमाई महत्तरा नाम से विख्यात हुई। समयश्री एक शासन प्रभाविका आर्या थीं। उनकी प्रेरणा से एक हजार एक सौ तीस कन्याओं और महिलाओं ने श्रमणी दीक्षा ग्रहण की थी।
-अंचलगच्छ का दिग्दर्शन (क) सोमिल (ब्राह्मण)
वासुदेव श्री कृष्ण महाराज की राजधानी द्वारिका नगरी में रहने वाला चार वेदों का पण्डित एक ब्राह्मण। उसने मुनि गजसुकुमार के सिर पर अंगारे रखे थे। (देखिए-गजसुकुमार) -अन्तगड, वर्ग 3, अध्ययन 8 (ख) सोमिल (ब्राह्मण)
प्रभु पार्श्वकालीन वाराणसी नगरी का एक ब्राह्मण । वह वेदों और वेदांगों का ज्ञाता तथा वैदिक संस्कृति का संवाहक और समर्थ विद्वान था। एक बार प्रभु पार्श्वनाथ वाराणसी नगरी में पधारे। सोमिल ने विचार किया, मैं प्रभु से विभिन्न प्रश्न पूछंगा, यदि मेरे प्रश्नों के समुचित उत्तर प्रभु ने दिए तो मैं उनका अनुगामी बन जाऊंगा और यदि वे मेरे प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सके तो मेरी विजय होगी और ब्राह्मण धर्म के यश में वृद्धि होगी। __ऐसा सोचकर सोमिल ब्राह्मण प्रभु पार्श्व के पास पहुंचा। उसने प्रभु से अनेक प्रश्न पूछे। ऐसे प्रश्न भी पूछे जिनके कई उत्तर हो सकते थे। प्रभु ने सोमिल के प्रश्नों के सटीक उत्तर दिए। सोमिल के हृदय में प्रभु के प्रति आस्था का जन्म हुआ। उसने ब्राह्मण धर्म को छोड़कर श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। ... 702 .m
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