Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 741
________________ उसकी पत्नी भोगों में उसकी अनुगामिनी नहीं बन पाई। इस पर रुद्रदेव खिन्नता से भर गया। वह पुनर्विवाह करके अपनी भोगेच्छा पूर्ण करने की कल्पना करने लगा। पर सोमा के रहते वैसा कर पाना संभव नहीं था। सो उसने सोमा को अपने मार्ग से हटाने का निश्चय कर लिया, और अनुकूल अवसर साधकर उसकी हत्या कर डाली। समता भाव से प्राणोत्सर्ग करके सोमा स्वर्ग में गई। सोमा की मृत्यु के बाद रुद्रदेव ने एक अन्य स्त्री से विवाह किया। भोगों में अहर्निश संलग्न रहकर रुद्रदेव ने प्राण त्यागे और मरकर नरक में गया। आगे के कई भवों में सोमा और रुद्रदेव विभिन्न सम्बन्धों को धारण कर परस्पर साथ रहे। पर पूर्व ईर्ष्या के कारण रुद्रदेव का जीव सोमा के जीव के अहित की कामना से ही भरा रहा। सोमा का जीव अपने आत्मिक गुणों का निरन्तर विकास करता रहा। परिणामतः स्त्री वेद का छेदन कर सोमा के जीव ने पुरुषवेद प्राप्त किया और कुछ ही भवों के पश्चात् सिद्धत्व प्राप्त कर लिया। रुद्रदेव का जीव निरन्तर हास को प्राप्त होता रहा जिसके फलस्वरूप वह अपरिमित संसारी बन गया। -धर्मतत्व प्रकरण टीका, गाथा 14 (ख) सोमा (देखिए-गजसुकुमार) (ग) सोमा आर्य रक्षित की माता । ब्राह्मण कुल की होते हुए भी सोमा का जैन धर्म के प्रति अनन्य अनुराग था। जब उसका पुत्र रक्षित पाटलिपुत्र से वेद-वेदांगों का अध्ययन करके लौटा तो ब्राह्मण कुल और उसके परिवार में उत्सव मनाया गया। उस उत्सव के समय सोमा सामायिक की आराधना में तल्लीन थी। रक्षित ने माता से पूछा, मां! सभी लोग मेरे आने पर आनन्द मग्न हैं, उन जैसी प्रसन्नता आपके आनन पर नहीं है। ऐसा क्यों? सोमा ने कहा, पुत्र! कौन माता होगी जो अपने विद्यानिष्णात पुत्र के घर लौटने पर प्रसन्न नहीं होगी! मैं भी प्रसन्न हूं! पर मुझे जो विचार है वह यह है कि तुम ने जो विद्या ग्रहण की है उससे प्रतिष्ठा और आजीविका तो सहज सुलभ हो जाएगी पर उससे आत्मकल्याण की प्राप्ति नहीं होगी ! मातृभक्त रक्षित ने उत्सुकता से पूछा, माता! आत्मकल्याणकारी कौनसी विद्या है? वह विद्या मैं किनसे ग्रहण करूं? ____सोमा ने कहा, दृष्टिवाद ही आत्मकल्याणकारी विद्या है, उसकी प्राप्ति तुम्हें तोषलिपुत्र जैनाचार्य के सान्निध्य से प्राप्त होगी। माता को प्रणाम कर रक्षित दृष्टिवाद विद्या को सीखने के लिए चल दिए। उसके लिए वे दीक्षित हुए। तोषलिपुत्र और आर्य वज्रस्वामी से उन्होंने दृष्टिवाद का अध्ययन किया। उनका भाई फल्गुरक्षित उन्हें लौटा लाने के लिए गया तो वह भी प्रव्रजित हो गया। कालान्तर में अपने दोनों पुत्रों को मुनि रूप में देखकर सोमा के हर्ष का पारावार न रहा। वह स्वयं भी जिनशासन में प्रव्रजित हो गई। एक आदर्श मां और साध्वी के रूप में सोमा अमर हो गई। -जैन धर्म का मौलिक इतिहास (घ) सोमा _ महासती सोमा का जीवन वृत्त पौराणिक जैन साहित्य के पृष्ठों पर भावपूर्ण शब्दों में अंकित हुआ है। सोमा का जन्म ब्राह्मणकुल में हुआ था। परन्तु बाल्यकाल में ही उसके माता-पिता का निधन हो जाने के कारण उसका पालन-पोषण जिनदत्त नामक एक जैन श्रेष्ठी के घर में हुआ। श्रेष्ठी ने सोमा को अपनी पुत्री तुल्य माना। श्रेष्ठी की एक अपनी पुत्री भी थी जो सोमा की ही आयु की थी। दोनों में श्रेष्ठी का समान वात्सल्य भाव था। ...700 ... ... जैन चरित्र कोश ....

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