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सोमशर्मा उस पद को रटता रहता। अहर्निश रटता रहता । पर पुनः पुनः उसे विस्मृत हो जाता । विस्मृत हो जाता तो आचार्य श्री से पूछने जाता । पन्द्रह दिन निरन्तर उक्त पद को रट कर भी वह उसे स्मरण नहीं कर पाया। भूल जाने पर आचार्य श्री से पूछने उनके पास पहुंचा। इस बार आचार्य श्री नाराज हो गए, बोले पन्द्रह दिनों में एक पद स्मरण नहीं कर पाए तो ज्ञान की आराधना और तप-संयम की उग्र साधना कैसे कर पाओगे ?
सोमशर्मा खिन्न बन गया । उसे अपने बुद्धि के जड़त्व पर बहुत दुख हुआ। वहां से चलकर वह एक अन्य आचार्य के पास पहुंचा। उसने आचार्य से पण्डित-मरण विधि के बारे में पूछा। आचार्य ने उसकी कामना पूछी। उसने स्पष्ट कर दिया कि वह मरण का वरण करना चाहता है। आचार्य श्री ने अपने ज्ञान में देखा और जाना कि सोमशर्मा का आयुष्य मात्र दो दिनों का ही शेष है। उन्होंने सोमशर्मा को देव-गुरु-धर्म का मर्म समझाया और उसी में चित्त लगाने का निर्देश दिया। सोमशर्मा मुनि ने देव-गुरु-धर्म की शरण में अपने चित्त को एकाग्र बना दिया और मरण प्राप्त कर देवलोक में गया। - बृहत्कथा कोष -भाग 1 ( आ. हरिषेण)
(क) सोमश्री
महाराज श्रेणिक की एक पुत्री जिसका विवाह धन्य जी के साथ हुआ था । ( देखिए-धन्य जी) (ख) सोमश्री
सोमा की माता, सोमिल ब्राह्मण की पत्नी । (देखिए - सोमिल ब्राह्मण) सोमसुन्दर सूरि (आचार्य)
विक्रमी सं. की 15 वीं सदी के एक क्रियोद्धारक आचार्य । वे तपागच्छ परम्परा के मुनि थे। मुनि संघ में व्याप्त शिथिलाचार को देखकर उन्होंने क्रियोद्धार किया और अपना साथ देने वाले मुनिसंघ के लिए उन्होंने कठोर सामाचारी का निर्माण किया। उन्होंनें आगम सम्मत श्रमणाचार का स्वयं भी पालन किया और उसका प्रचार-प्रसार भी किया। शुद्ध धर्म के उनके प्रचार-प्रसार से शिथिलाचारी उनके विरोधी बन गए। उन शिथिलाचारियों ने एक पुरुष को 500 टके (रुपए) देकर उसे सोमसुन्दर सूरि की हत्या के लिए नियुक्त कर दिया ।
एक रात्रि में शिथिलाचारियों द्वारा नियुक्त किया गया वह व्यक्ति आचार्य सोमसुन्दर सूरि का वध करने पहुंचा। उस समय आचार्य निद्रा में थे। उस व्यक्ति ने देखा - आचार्य श्री ने निद्रा में ही करवट बदलने से पूर्व प्रमार्जनी से अपने शरीर और आसन का प्रमार्जन किया, उसके बाद करवट बदली। आचार्य श्री की इस सूक्ष्म और महान करुणा को देखकर हत्यारा दंग रह गया। आचार्य श्री के इस उत्कृष्ट आचार ने उसका हृदय परिवर्तन कर दिया । वह आचार्य श्री के चरणों पर गिर पड़ा और उसने पूरी बात उनके समक्ष खोल दी। आचार्य सोमसुन्दर सूरि ने उस व्यक्ति को सान्त्वना दी और धर्म का मर्म उसे समझाया। आचार्य श्री 'आचार ने एक हत्यारे को सद्धर्म का उपासक बना दिया ।
(क) सोमा
विदेह देश के रुद्रदेव नामक सार्थवाह की पत्नी, एक सरल हृदय और पतिव्रता सन्नारी । बाल्यकाल में ही उसने श्रमण-सद्गुरु से कई नियम - व्रत ग्रहण किए थे। विवाह के पश्चात् भी उसकी व्रतनिष्ठा और धर्मरुचि यथावत् सुचारु बनी रही। रुद्रदेव का स्वभाव सोमा से पूर्णरूप से विपरीत था । वह भोग प्रिय व्यक्ति था । साथ ही वह चाहता था कि उसकी पत्नी भी भोग-प्रिय बने । पर उसकी निरन्तर प्रेरणा पर भी ••• जैन चरित्र कोश •
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