Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 723
________________ करने के लिए मनाने में सफल हो गई । सुरसुंदरी को विश्वास था कि इस अवधि में उसका पति उसे प्राप्त हो ही जाएगा। उधर बारह वर्ष व्यतीत होने में एक वर्ष से भी कम समय शेष था। राज जामाता के रूप में सुरसुन्दर की ख्याति पूरे नगर में थी ही। सुरसुन्दर ने अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए उस दुकानदार से वे दोनों रत्न भी प्राप्त कर लिए जो उसने उसके श्वसुर और पति व ज्येष्ठों से लूटे थे। बारह वर्ष की अवधि बीतते ही परिवार के सभी सदस्य एक ही स्थान पर एकत्रित हो गए। सुरसुंदरी के बुद्धिकौशल को सभी ने प्रशंसित किया। सुरसुंदरी ने अपने पति को राजकुमारी रत्नसुंदरी पत्नी रूप में भेंट की । परिवार का अपुण्य समाप्त हो चुका था। पुण्य कर्म प्रबल बन चुके थे। पूरा परिवार अपने नगर लौटा और ससम्मान अपना विलुप्त हुआ गौरव पुनः पा गया। जीवन के उत्तरार्ध भाग में सुरसुंदरी ने साधना पथ पर कदम बढ़ाए और सद्गति प्राप्त की । (ग) सुरसुंदरी हरिसेन की अर्द्धांगिनी । (देखिए - भीमसेन) (घ) सुरसुंदरी आहड़ नगर की राजकुमारी (देखिए - धनसागर ) (ङ) सुरसुंदरी (देखिए - श्रीपाल ) सुदेव ( श्रावक ) वाराणसी नगरी निवासी भगवान महावीर का एक अनन्य उपासक और गण्यमान्य धनाधीश श्रेष्ठी । सुरादेव अठारह कोटि स्वर्णमुद्राओं तथा दस-दस हजार गायों के छह गोकुलों का स्वामी था । अर्द्धांगिनी धन्या सहित उसने भगवान महावीर से श्रावक-धर्म अंगीकार किया था। किसी समय रात्रिकाल में जब वह धर्म जागरण कर रहा था तो एक देव ने उसे धर्मच्युत करने के लिए उसकी कड़ी परीक्षा ली। उसके समक्ष उसके तीनों पुत्रों की हत्या की माया फैलायी । पुत्रों के रक्त के शूले पकाकर उसके शरीर पर मले । पर वह अडोल रहा । हताश देव ने उसे चेतावनी दी कि यदि वह अपनी समाधि भंग नहीं करेगा तो वह उसके शरीर में एक साथ सोलह महारोग उत्पन्न कर देगा। इस चेतावनी से सुरादेव चलित हो गया । चिल्लाकर उसने आंखें खोलीं। देव अदृश्य हो चुका था । कोलाहल सुनकर उसकी पत्नी दौड़ कर आई। उसने सुरादेव को बताया कि उसके सभी पुत्र स्वस्थ हैं। यह किसी देव की माया थी जो अब समाप्त हो चुकी है। सुरादेव कई वर्षों तक चारित्र धर्म का पालन किया । जीवन के सांध्य पक्ष में मासिक संलेखना के साथ देहोत्सर्ग कर वह प्रथम देवलोक में देव बना। वहां से महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध होगा । (क) सुरूपा (आर्या ) आर्या सुरूपा का समग्र जीवन वृत्त रूपा आर्या के समान है । ( देखिए-रूपा आर्या -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., चतुर्थ वर्ग, अध्ययन 2 (ख) सुरूपा (आर्या ) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए - कमला आर्या) *** 682 -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 7 • जैन चरित्र कोश •••

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