Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 730
________________ तो वहां ऊंट को बैठे देख आश्चर्यचकित हुआ । आचार्य श्री से उसने क्षमा मांगी और स्वयं को विनय धर्म में स्थापित किया । - उत्त. वृत्ति सुशीला भीमसेन की रानी, एक आदर्श पतिव्रता सन्नारी । (देखिए - भीमसेन) सुषमा राजगृहवासी धन्ना सेठ की इकलौती पुत्री जिसे चिलातीपुत्र अपनी पत्नी बनाना चाहता था । चिलातीपुत्र ने उसका अपहरण भी किया पर पकड़े जाने से भयभीत बनकर उसका सिर काट कर हत्या कर दी । (देखिए-चिलातीपुत्र) -ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र (क) सुसीमा षष्ठम तीर्थंकर प्रभु पद्मप्रभ की माता । (ख) सुसीमा चौदहवें विहरमान तीर्थंकर श्री भुजंग स्वामी की जननी । (देखिए - भुजंग स्वामी) (ग) सुसीमा वासुदेव श्री कृष्ण की रानी । भगवान अरिष्टनेमि के प्रवचन से प्रतिबोधित बनकर उसने आर्हती दीक्षा धारण की और विशुद्ध चारित्र पालकर मोक्ष प्राप्त किया । - अन्तगडसूत्र वर्ग 5, अध्ययन 5 सुस्वरा (आर्या ) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए - कमला आर्या ) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 31 सुस्थित (आचार्य) भगवान महावीर की धर्म संघ परम्परा एक प्रभावी आचार्य । आचार्य सुहस्ती उनके गुरु थे। गुरु के स्वर्गवास के पश्चात् उन्होंने गण का नेतृत्व संभाला और अपने सहोदर तथा गुरु भ्राता सुप्रतिबुद्ध के आत्मीय सहयोग से संघ का कुशलता पूर्वक संचालन किया । आर्य सुस्थित काकन्दी नगरी के राजकुमार थे। उनके सहोदर का नाम सुप्रतिबुद्ध था । इन दोनों भाइयों जैन धर्म के प्रख्यात श्रुतधर आचार्य सुहस्ती से दीक्षा धारण की। आर्य सुस्थित का जन्म वी.नि. 243 में और दीक्षा संस्कार वी.नि. 274 में हुआ। आर्य सुस्थित कठोर संयमी, तपस्वी और स्वाध्याय प्रेमी मुनिराज थे । काकन्दी नगरी में सुप्रतिबुद्ध के साथ मिलकर उन्होंने जिनेश्वर देव का कोटि बार जप किया। इससे संघ में अत्यधिक हर्ष हुआ। उनकी उसी साधना के फलस्वरूप उनके गच्छ का नाम कोटिक गच्छ हुआ । महाराज खारवेल द्वारा आयोजित कुमार गिरि पर्वत पर श्रमण सम्मेलन में आचार्य सुस्थित और आर्य सुप्रतिबुद्ध के उपस्थित होने के भी प्रमाण हैं । आचार्य सुस्थित ने 48 वर्षों तक श्रमण संघ को नेतृत्व प्रदान किया। वी.नि. 339 में उनका स्वर्गवास हुआ। आचार्य सुस्थित के पांच शिष्य थे - (1) इन्द्रदिन्न (2) प्रियग्रन्थ (3) विद्याधर गोपाल (4) ऋषिदत्त (5) अर्हदत्त । - कल्प सूत्र स्थविरावली / हिमवंत स्थविरावली • जैन चरित्र कोश

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