Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 736
________________ किरण का जैसे-तैसे उदर-पोषण करता था। एक बार उसे आचार्य सुहस्ती का प्रवचन सुनने का पुण्य-प्रसंग प्राप्त हुआ। प्रवचनोपरान्त सभी श्रोताओं ने कुछ न कुछ नियम-व्रत ग्रहण किए। सोमचन्द्र का क्रम आया तो उसने आचार्य श्री से अपनी दशा का वर्णन किया और प्रार्थना की कि उसके लिए जो उचित हो वैसा नियम कस दें। आचार्य श्री ने उसे अहिंसा भगवती की महिमा बताई और कहा कि वह अच्छी तरह देख-परख कर बनाई गई सब्जी ही खाए, बिना उपयोग से बनाई गई सब्जी न खाए। नियम ग्रहण कर वह घर गया और पत्नी से उसने अपने नियम की बात बताई। पत्नी प्रचण्ड स्वभाव की थी। उसने सोमचन्द्र को अनेक जली-कटी सुनाई और निर्णय सुना दिया कि उपयोग साधुओं का विषय है, तुम जैसों का नहीं, यहां उपयोग नहीं चलेगा। परिणामतः सोमचन्द्र को आयंबिल-जीवी होकर जीना पड़ा। रूखा-सूखा खाकर भी उसे पूर्ण संतोष था कि उसका नियम अखण्ड है। उसकी दृढ़धर्मिता से उसके अपुण्य शीघ्र ही जल कर खाक हो गए और पुण्यों का उदय हो आया। एक दिन उसे नगर के बाहर यक्षायतन में रात्रि व्यतीत करनी पड़ी जहां से उसे अपार धन प्राप्त हुआ। धन को देखते ही-अथवा पुण्यों के उदय होते ही पत्नी का प्रचण्ड स्वभाव भी सुमधुर बन गया। वह न केवल पति के नियम-पालन में पूर्ण सहयोगी बनी, बल्कि उसने भी आचार्य श्री से सामायिक, संवर, नियमादि ग्रहण किए। पति-पत्नी धर्म पूर्वक जीवन-यापन कर सद्गति के अधिकारी बने। सोम जी ऋषि ___आचार्य लवजी ऋषि के शिष्य और उनके क्रियोद्धार अभियान को कुशलता पूर्वक आगे बढ़ाने वाले एक तेजस्वी मुनि। वी.नि. 2180 (वि. 1710) में उन्होंने मुनि दीक्षा धारण की और उत्कृष्ट आचार का पालन और प्रचार किया। (देखिए-लवजी ऋषि) (क) सोमदत्त चम्पानगरी का एक धनी ब्राह्मण । (देखिए-नागश्री) (ख) सोमदत्त (सोमदेव) कौशाम्बी नगरी के भगदत्त नामक ब्राह्मण के दो पुत्र थे-सोमदत्त और सोमदेव। सोमदत्त और सोमदेव ने दत्त नामक जैनाचार्य के उपदेश से प्रतिबोध प्राप्त कर दीक्षा ली। शीघ्र ही वे गीतार्थ बन गए। गुरु की आज्ञा प्राप्त कर किसी समय वे दोनों मुनि आचार्य सोमप्रभ के दर्शनों के लिए उज्जयिनी नगरी की दिशा में विहार कर रहे थे। मार्ग में भिक्षा में उन्हें विषमिश्रित अन्न की प्राप्ति हुई। विषाक्त आहार से मुनि-द्वय व्याधि ग्रस्त हो गए। जंगल में एक नदी के किनारे विशाल काष्ठ को प्रासुक जानकर दोनों मुनि अनशन धारण कर उस पर लेट गए। पीछे तेज वर्षा हुई और अकस्मात् नदी में तेज बाढ़ आ गई। मुनियों सहित वह लक्कड़ भी पानी में बह गया। समता साधना में लीन रहते हुए मुनियों ने प्राणोत्सर्ग किया और उच्चगति के अधिकारी बने। भवान्तर में मुनिद्वय सिद्धि प्राप्त करेंगे। -उत्त. वृत्ति (क) सोमदेव जैन धर्म के प्रभावक आचार्य आर्यरक्षित के संसारपक्षीय जनक। आर्य रक्षित के उपदेश से उनका भाई फल्गुरक्षित और माता दीक्षित हो गए। सोमदेव ने आर्य रक्षित के साथ रहना तो स्वीकार किया परन्तु ब्राह्मण धर्म के प्रतीक दण्ड-कमण्डल और धोती का त्याग नहीं किया जिसके कारण आचार्य श्री ने उसे दीक्षित नहीं किया। लोग आचार्य श्री और उनके शिष्यमण्डल को वन्दन करते। सोमदेव को कोई वन्दन नहीं करता। वह ... जैन चरित्र कोश ... -695 ...

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