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सूर्यकान्ता ___विजया नगरी के राजकुमार महाभद्र (विहरमान तीर्थंकर) की परिणीता। (देखिए-महाभद्र स्वामी) सूर्यप्रभा (आर्या)
आर्या सूर्यप्रभा का समस्त वर्णन काली आर्या के समान जानना चाहिए। विशेषता इतनी है कि यह अरक्खुरी नगरी के सूर्याभ गाथापति की पत्नी सूर्यश्री की आत्मजा थी और यहां से कालधर्म को प्राप्त होकर सूर्य नामक ज्योतिष्क इन्द्र की पट्टमहिषी बनी। (देखिए-काली आया) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 7, अ. 1 सूर्ययश
प्रथम चक्रवर्ती भरत का ज्येष्ठ पुत्र, एक दृढ़ प्रतिज्ञ और सूर्य सम तेजस्वी युवक। एक बार उसने प्रभु ऋषभदेव के प्रमुख शिष्य गणधर उसभसेन से जीवन-पर्यंत अष्टमी और चतुर्दशी के दिन प्रतिपूर्ण पौषध करने का नियम अंगीकार किया। उसकी धर्मरुचि अत्यन्त प्रखर थी। भरत द्वारा केवलज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात् वह अयोध्या के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। अपने पूज्य दादा और पिता के समान ही वह भी तेजस्वी सम्राट सिद्ध हुआ। पूरे पृथ्वीमण्डल पर उसका यश फैला हुआ था। ___एक बार सूर्ययश की दृढ़धर्मिता की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए देवराज इन्द्र ने कहा, अयोध्या नरेश सर्ययश अपने धर्म पथ पर समेरु के समान अडोल हैं। देव, दानव, मानव कोई भी उन्हें उनके पथ से-ग्रहण किए गए व्रतों से डिगा नहीं सकता है। देव सभा में रंभा और उर्वशी नामक दो देवियां उपस्थित थीं। उन्हें इन्द्र द्वारा की गई प्रशंसा उचित नहीं लगी। उन्हें अपने रूप और चातुर्य पर अतिशय गर्व था। वे दोनों सूर्ययश को उसके व्रतों से भ्रष्ट करने के लिए पृथ्वी पर आईं। दोनों ने विद्याधर-कन्याओं का वेश बनाया और अयोध्या के राजकीय उद्यान में पहुंचीं। उधर भ्रमण करते हुए राजमंत्री भी उद्यान में पहुंचा। उन दोनों कन्याओं के रूप को देखकर मंत्री दंग रह गया। उसने कन्याओं से उनका परिचय और प्रयोजन पूछा । कन्याओं ने अपना परिचय विद्याधर-कन्याओं के रूप में दिया और अपना प्रयोजन स्पष्ट किया कि वे सुयोग्य मानव-वर की तलाश में वहां आई हैं। मंत्री ने अपने महाराज सूर्ययश का परिचय उन कन्याओं को दिया और कहा कि वे पृथ्वी के भूषण नररत्न हैं। उन जैसा वर उन्हें पूरी पृथ्वी पर खोजे से नहीं मिलेगा। कन्याओं ने कहा, आपके महाराज को हमारी एक शर्त माननी होगी। यदि वे वैसा करने का वचन दें तो वे उनसे विवाह के लिए तैयार हैं। ___ मंत्री सूर्ययश के पास पहुंचा और उसे कन्याओं का परिचय दिया। साथ ही कहा कि ऐसे नारीरत्न पृथ्वी मण्डल पर दुर्लभ हैं। सूर्ययश उद्यान में गया। कन्याओं के रूप और वाग्चातुर्य से प्रभावित बनकर और वचनबद्ध होकर उसने उनसे पाणिग्रहण कर लिया।
__ अष्टमी के दिन पौषधोपवास की घोषण हुई। सूर्ययश पौषध की आराधना के लिए पौषधशाला जाने लगा तो रंभा और उर्वशी ने उसका मार्ग रोक लिया और कहा, वे एक पल के लिए भी उनका विरह सहन नहीं कर सकती हैं, इसलिए अपने वर के रूप में उनसे याचना करती हैं कि वे पौषधोपवास न करें और उन्हीं के पास रहें।
विचित्र मांग सुनकर सूर्ययश चौंक गया। उसने कहा, यह नहीं हो सकता है। पौषधोपवास मेरे जीवन की मर्यादा है, मैं उसका त्याग नहीं कर सकता हूं। रंभा और उर्वशी ने कहा, हमने तो सुना था कि क्षत्रिय अपने वचन के लिए प्राण भी दे देते हैं, पर आप तो अपने वचन को भंग कर रहे हैं। सूर्ययश ने कहा, यदि ... जैन चरित्र कोश ...
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