Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

View full book text
Previous | Next

Page 725
________________ मालिन के द्वारा अपनी पत्नी के पास पत्र पहुंचाकर सुलस प्रदेश के लिए रवाना हो गया। उसने अथक श्रम, प्रामाणिकता और सत्य के बल पर अपार संपत्ति अर्जित की। उस संपत्ति को लेकर जब वह अपने नगर के लिए रवाना हुआ तो समुद्र में एक चट्टान से टकराकर उसका जहाज खण्डित हो गया। उसका सारा समुद्र में समा गया। काष्ठ फलक के सहारे वह समुद्र के तट पर पहुंचने में सफल अवश्य हो गया । सब कुछ गंवा कर भी सुलस ने अपने साहस को नहीं खोया । दूसरी बार उसने फिर से प्रयत्न किया और पर्याप्त धन अर्जित किया। इस बार उसका समस्त धन दावाग्नि की भेंट चढ़ गया। फिर उसने तीसरी बार धन जोड़ा। नगर के लिए रवाना हुआ तो जंगल में चोर - लुटेरों ने उसे लूट लिया। कहते हैं कि कई बार अपनी अर्जित संपत्ति गंवा कर भी सुलस ने हिम्मत नहीं हारी। वह प्रत्येक बार पहले से अधिक निष्ठा और श्रम से व्यापार करता और पहले से अधिक संपत्ति अर्जित करता । आखिर अंतराय कर्म क्षीण हुए और एक मित्र देव की सहायता से पर्याप्त धन अर्जित करके सुलस कुमार अपने नगर में लौटा। स्वयं नगर-नरेश ने सुलस का स्वागत किया और उसके पिता के देहान्त के पश्चात् रिक्त हुआ नगर सेठ का पद उसे प्रदान कर उसका सम्मान किया । सुलस और सुभद्रा का मिलन हुआ। अश्रु प्रवाह ने समस्त भूलों और कष्टों की कलुषताओं को प्रक्षालित कर डाला। सुलस के जाने के पश्चात् कामपताका भी गणिका - कर्म का परित्याग कर उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी। सुलस के लौटने पर वह भी उसके पास आ गई। सुलस ने उसे पत्नी का पद देकर उसका मान किया। सुलस लम्बे समय तक धर्मध्यान पूर्वक जीवन यापन करता रहा। जीवन के पश्चिम भाग में उसने प्रव्रज्या धारण की और उग्र तपश्चरण तथा सुनिर्मल संयम की साधना से केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षपद पाया। - शान्ति नाथ चरित्र (भावचन्द्र सूरिकृत ) (ख) सुलस राजगृह नगर के निवासी और कुख्यात कसाई कालसौकरिक का पुत्र । पर कसाई - कुल में जन्म लेकर भील मृदुहृदयी युवक था । मगधदेश के महामंत्री अभयकुमार की सुसंगति के पश्चात् तो उसके जीवन में अहिंसा और सत्य की सुगंध उतर आई। अभय के संग वह भगवान महावीर के पास गया और उनका अनन्य उपासक बन गया । पिता की मृत्यु के पश्चात् जब गृहपति पद पर सुलस को अभिषिक्त किया जा रहा था तो परिजनों ने उसके हाथ में तलवार देकर भैंसे की गर्दन काटने के लिए उससे कहा। सुलस ने इस हिंसक परम्परा का विरोध किया और कहा कि तलवार चलाना आवश्यक ही है तो मैं अपने पैर पर चला सकता हूं। जैसे ही उसने अपने पैर पर तलवार चलानी चाही, परिजनों ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी करुणा की प्रशंसा की । कहीं कहीं यह भी उल्लेख है कि सुलस और पुणिया श्रावक एक ही व्यक्ति के नाम हैं। - आवश्यक कथा (क) सुलसा राजगृह नगर निवासी और मगधेश श्रेणिक के प्रीतपात्र रथिक नाग की अर्द्धांगिनी, तीर्थंकर महावीर की अनन्या उपासिका और परम समता साधिका एक दृढ़धर्मिणी सन्नारी । उसे कोई संतान न थी । पति और पत्नी दोनों की प्रबल इच्छा थी कि उन्हें संतान प्राप्त हो पर अशुभ कर्मोदय के कारण वैसा नहीं हो पा रहा था। लौकिक अनुष्ठान सुलसा को पसन्द न थे। उसे तो महावीर और उनका धर्म पसन्द थे जिनकी आराधना वह सोते-जागते किया करती थी । • जैन चरित्र कोश ••• *** 684

Loading...

Page Navigation
1 ... 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768