Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 708
________________ अपने पिता को इस बात के लिए मना लिया कि वह वृक्ष के कोटर में छिपकर सुबुद्धि के विरुद्ध फैसला सुनाएगा। दुर्बुद्धि रात्रि में ही अपने पिता को वृक्ष के कोटर में बैठा आया। उधर सुबुद्धि को अपनी सत्यता पर पूर्ण भरोसा था। उसे विश्वास था कि यदि वृक्ष पर देवता का वास भी होगा तो वह भी मिथ्या नहीं बोलेगा। दूसरे दिन राजा सहित सैकड़ों लोग वृक्ष के पास पहुंचे। दुर्बुद्धि ने स्वांगपूर्वक वृक्ष की पूजा अर्चना की और कहा, हे वृक्ष देव ! न्याय करो और बताओ कि धन का अपहरण किसने किया है। वृक्ष से स्वर उभरा सुबुद्धि ने। __राजा सुबुद्धि पर बहुत क्रोधित हुआ। उपस्थित जनसमुदाय भी सुबुद्धि को बुरा-भला कहने लगा। इससे सुबुद्धि ने कहा, महाराज ! मुझे भी अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार दिया जाए। राजा ने उसे अधिकार प्रदान कर दिया। सुबुद्धि ने कहा, मैंने वृक्ष के कोटर में ही धन छिपाया है, अभी वह धन आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं। कहकर सुबुद्धि वृक्ष के पास गया और उसने कोटर में हाथ डालकर वस्तुस्थिति का ज्ञान कर लिया। उसने कोटर में छिपे हुए भद्र सेठ की गर्दन-पकड़कर उसे बाहर खींचा। भद्र सेठ पीड़ा से तिलमिलाता और चिल्लाता हुआ कोटर से बाहर आ गया। सुबुद्धि ने कहा, महाराज! ये है वृक्ष देवता जिसने मेरे विरुद्ध गवाही दी है। दुर्बुद्धि के पगतलों की जमीन खिसक गई। दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका था। राजाज्ञा पर सैनिकों ने दुर्बुद्धि के घर में छिपाया हुआ धन खोज निकाला। राजा ने वह धन सुबुद्धि को प्रदान किया और दुर्बुद्धि को अपमानित और ताड़ित कर अपने राज्य से निकाल दिया। ___ सुबुद्धि ने उस धन को जनकल्याण में लगा दिया और धर्मध्यान पूर्वक जीवन यापन कर सद्गति को प्राप्त हुआ। (ख) सुबुद्धि क्षितिप्रतिष्ठ नगर के मंत्री का पुत्र । सुबुद्धि एक कोमल हृदय कुमार था। लोक सेवा में वह विशेष रुचिशील था। भवान्तर में वह भगवान ऋषभ के पुत्र बाहुबली के रूप में जन्मा और अपूर्व बलशाली बना। (ग) सुबुद्धि अवन्ती नगरी के महाराज जितशत्रु का प्रधान । (देखिए-अतूंकारी भट्टा) (घ) सुबुद्धि ___ऋषभकालीन हस्तिनापुर का एक श्रेष्ठी जिसने यह स्वप्न देखा था कि श्रेयांस कुमार किरणों से रहित होते हुए सूर्य को पुनः किरणों से सहित कर रहा है। दूसरे ही दिन श्रेयांस कुमार ने एक वर्ष से निराहारी भगवान ऋषभदेव को भिक्षा दी और सुबुद्धि श्रेष्ठी का स्वप्न फलित हो गया। (ङ) सुबुद्धि (प्रधान) चम्पानगरी के राजा जितशत्रु का अत्यन्त चतुर, तत्वज्ञ और जिनोपासक मंत्री। उसने अपनी तत्वज्ञ दृष्टि से राजा को भी तत्वज्ञ बना दिया था। मन्त्री की तत्वपरायणता के दो दृष्टान्त सुश्रुत हैं एक बार राजा ने भोज दिया। सुस्वादिष्ट भोजन की सभी मेहमानों ने प्रशंसा की। पर राजा तो सुबुद्धि के मुख से भोजन की प्रशंसा सुनने को उतावला बन रहा था। उसने मंत्री से कहा, तुम भोजन की प्रशंसा नहीं कर रहे हो, क्या तुम्हें भोजन अच्छा नहीं लगा? मंत्री ने कहा, महाराज ! इसमें अच्छा लगने और अच्छा ... जैन चरित्र कोश ... - 667 ...

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