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न लगने की क्या विशेष बात है। यह तो पुद्गल का स्वभाव है। वह शुभ और अशुभ रूपों में बदलता रहता है । सुनकर राजा मौन हो गया । वह सुबुद्धि की बात की गहराई को नहीं परख पाया ।
फिर किसी दिन राजा और मंत्री घूमने निकले। खाई में संचित अशुचि जल से तीव्र दुर्गन्ध प्रकट हो रही थी। राजा नाक-भौं सिकोड़ने लगा, पर मंत्री ने वैसा नहीं किया। राजा के पूछने पर मंत्री ने पुनः वही बात दोहराई कि यह तो पुद्गल का स्वभाव है, वह शुभ से अशुभ में तथा अशुभ से शुभ में बदलता रहता है। राजा ने कहा, तुम अपने कथन को सत्य सिद्ध करके बताओ । मंत्री ने कहा, समय आने दो महाराज ! मैं अपने कथ्य को सत्य सिद्ध करके बता दूंगा ।
मंत्री ने अपने विश्वस्त अनुचरों से उस खाई का दुर्गन्धित पानी मंगवाया । विविध प्रयत्नों से उस पानी को साफ करवाया। सुगन्धित पदार्थों से उसे सुस्वादिष्ट और सुवासित बनाकर भोजन के समय राजा को पिलाया। वह जल राजा को बहुत मधुर लगा। उसने कहा, इतना बढ़िया जल मुझे पहले क्यों नहीं पिलाया
गया ?
इस पर मंत्री ने जल का पूरा रहस्य उद्घाटित कर दिया। सुनकर राजा दंग रह गया। मंत्री का तत्वदर्शन -शनै राजा का जीवन-दर्शन बन गया। अंतिम अवस्था में सुबुद्धि प्रधन और राजा ने संयम धारण कर परमपद को प्राप्त किया । -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 12
सुभगा (आर्या )
इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आया )
सुभद्र सेठ
कंस का पालक पिता, शौरीपुर का एक प्रतिष्ठित श्रेष्ठी ।
(क) सुभद्रा
राजगृहवासी गोभद्र सेठ की पुत्री और शालिभद्र की बहन सुभद्रा का विवाह धन्य सेठ के साथ हुआ था। जब उसे ज्ञात हुआ कि उसका भाई शालिभद्र प्रतिदिन एक-एक पत्नी को समझाकर बत्तीसवें दिन दीक्षा ले लेगा तो वह बहुत उदास हो गई। जब वह अपनी अन्य सात सपत्नियों के साथ अपने पति को स्नान करा रही थी तो भाई के सम्भावित विरह की कल्पना से उसकी आंखों में आंसू आ गए। पति के पूछने पर उसने उन्हें पूरी बात कह सुनाई जिसे सुनकर धन्य जी ठहाका लगा कर हंसे और बोले कि उसका भाई तो कायर है, संयम ही लेना है तो पत्नियों को समझाने बहाने से बत्तीस दिन रुकने का अर्थ ही क्या है? पति के मुख से भाई के लिए अपमान जनक टिप्पणी सुनकर सुभद्रा को क्रोध आ गया और उसने कह दिया कि कायर उसका भाई नहीं, वे स्वयं हैं जो आठ-आठ पत्नियों के अनुरागी बने हैं। सुभद्रा की बात सुनते ही धन्य जी अर्द्धस्नान के मध्य ही उठ खड़े हुए और बोले, आज से तुम आठों मेरी पत्नियां नहीं, बहनें हो । कहकर वे शालिभद्र के पास पहुंचे और उन्हें साथ लेकर भगवान महावीर के पास जाकर दीक्षित हो गए । सुभद्रा ने भी बाद में दीक्षा लेकर आत्मकल्याण किया । धन्य जी की शेष सात पत्नियां भी दीक्षित
हुईं।
(ख) सुभद्रा
महाराज श्रेणिक की रानी । शेष परिचय नन्दावत् । (देखिए - नन्दा)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 8
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- अन्तगडसूत्र वर्ग 7, अध्ययन 10
- जैन चरित्र कोश •••