Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 710
________________ (ग) सुभद्रा __ ऋषभ कालीन, विद्याधर विनमि की पुत्री जो भरत चक्रवर्ती की स्त्री रत्न थी। (घ) सुभद्रा विजयमित्र सेठ की पत्नी। (देखिए-उज्झित कुमार) (ङ) सुभद्रा राजगृही के निकटस्थ श्रवण ग्राम के मंखली नामक चित्र-फलक दिखाकर उदरपोषण करने वाले गृहस्थ की भार्या और गोशालक की माता। (दखिए-गोशालक) (च) सुभद्रा अमरपुर नगर के धनाढ्य सेठ की पुत्री, सुलस कुमार की पतिव्रता पत्नी और एक धर्मानुरागिणी युवती। (दखिए-सुलस कुमार) (छ) सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन जिसका विवाह पाण्डुपुत्र अर्जुन के साथ हुआ था। अभिमन्यु सुभद्रा का ही अंगजात था। सुभद्रा एक धर्मनिष्ठ और पतिपरायणा नारी थी। -जैन महाभारत (ज) सुभद्रा (महासती) सोलह महासतियों में से एक जिसका चरित्र जैन पौराणिक साहित्य के पृष्ठों पर स्वर्णिम अक्षरों में उटुंकित हुआ है। सुभद्रा वसन्तपुर नगर के जैन धर्मावलम्बी श्रेष्ठी जिनदास की पुत्री थी। उसकी माता का नाम तत्त्वमालिनी था। जिनदास वसन्तपुर नरेश महाराज जितशत्रु के मन्त्री थे। पर मन्त्री होना उनकी वास्तविक पहचान न थी। उनकी वास्तविक पहचान थी दृढ़धर्मी जैन श्रावक होना। उन्होंने यह प्रण किया था कि वे अपनी पुत्री का विवाह जैन परिवार में ही करेंगे। __सुभद्रा बचपन से ही धार्मिक संस्कारों से सम्पन्न कन्या थी। जब वह युवा हुई तो उसका रूप और सौन्दर्य चहुं ओर चर्चित बन गया। उससे विवाह करने के लिए अनेक श्रीसम्पन्न युवक ललचाए। असंख्य वैवाहिक प्रस्ताव जिनदास के द्वार पर आए। पर जिनदास अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग थे। सुभद्रा के रूप पर सम्मोहित चम्पानगरी का युवक बुद्धदास किसी भी भांति सुभद्रा से विवाह करना चाहता था। उसने जिनदास की शर्त पूरी करने के लिए कपट पूर्वक जैन धर्म अपना लिया। वह बढ़-चढ़कर जैन श्रमणों की सेवा करने लगा और सबसे आगे रहकर सामायिक-पौषधादि की आराधना करने लगा। वह जिनदास को अपने कपट जाल में फंसाने में सफल हो गया। बुद्धदास को सच्चा श्रमणोपासक मानते हुए जिनदास ने अपनी पुत्री सुभद्रा का विवाह उसके साथ सम्पन्न कर दिया। सुभद्रा बहु बनकर बुद्धदास के घर में आई तो प्रथम दिन ही वह सत्य जान गई कि उसके साथ धोखा हआ है। पर वह तो भारतीय सन्नारी थी जो जीवन में एक ही बार और एक ही पुरुष को अपने जीवन साथी के रूप में चुनती है। उसने भी बुद्धदास को अपने पतिरूप में चुन लिया था। उसका चिन्तन था-धर्म तो व्यक्तिगत चुनाव है। उसके पति अन्य धर्म की आराधना कर सकते हैं और वह अपने स्वीकृत धर्म की आराधना कर सकती है। परन्तु बुद्धदास तथा उसके परिवार का यह आग्रह था कि सुभद्रा भी उसी धर्म को माने जिस धर्म को वे मानते हैं और जिनधर्म का परित्याग कर दे। उन्होंने सुभद्रा पर इसके लिए दबाव भी बनाया पर सुभद्रा ने जिनधर्म को छोड़ने से विनम्रता पूर्वक इन्कार ... जैन चरित्र कोश ... - 669 ...

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