Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 697
________________ सुजात कुमार भगवान से प्राप्त श्रावक धर्म का पालन उत्कृष्ट भावों से करता रहा। एक बार वह पौषधशाला में पौषध की आराधना कर रहा था। विभिन्न धर्मतत्वों पर पर्यटन करता हुआ उसका चिन्तन अपने आराध्य धर्मदेव भगवान महावीर पर केन्द्रित हो गया। उसने विचार किया - वे ग्राम, नगर और जनपद धन्य हैं, जहां तीर्थंकर महावीर विचरण करते हैं । वे मनुष्य धन्य हैं जो भगवान महावीर के दर्शन करते हैं और उनकी अमृतवाणी का श्रवण करते हैं। कितना शुभ हो कि भगवान महावीर वीरपुर पधारें! भगवान यदि यहां पधारें तो मैं समस्त सांसारिक ममत्वों का परित्याग कर उनका शिष्य बन जाऊंगा । इस प्रकार सुजात कुमार आध्यात्मिक चिन्तन द्वारा अपने आराध्य देव को आमंत्रित करता है । सुजात कुमार के आमंत्रण में बन्धे हुए भगवान महावीर वीरपुर पधारे। प्रभु पदार्पण का सुसंवाद जब सुजात कुमार ने सुना तो उसके हर्ष का पारावार न रहा । वह प्रभु के चरणों में पहुंचा । उपदेश सुना। उसके हृदय में वैराग्य का प्रवाह उमड़ आया। माता-पिता और परिजनों की आज्ञा प्राप्त कर वह भगवान के चरणों प्रव्रजित हो गया । सुजात कुमार ने कई वर्षों तक शुद्ध संयम का पालन किया। आयुष्य पूर्ण कर वह सौधर्म कल्प में देवता बना। वहां से वह पुनः मनुष्य भव धारण करेगा । मनुष्य और देव गति के कुछ भव करने के पश्चात् सुजात कुमार महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध पद को उपलब्ध होगा । - विपाक सूत्र 2/3 सुजात स्वामी (विहरमान तीर्थंकर) पंचम विहरमान तीर्थंकर जो धातकी खण्ड के पूर्व महाविदेह क्षेत्र की पुष्कलावती विजय में धर्मोद्योत कर रहे हैं। देवसेन और देवसेना प्रभु के माता-पिता के नाम हैं । तिरासी लाख पूर्व तक प्रभु गृहवास में रहे। तदनन्तर दीक्षित हो तीर्थंकर पद पर आरूढ़ हुए । प्रभु का कुल आयुष्य चौरासी लाख पूर्व का है। सुजाता महाराज श्रेणिक की एक रानी। शेष परिचय नन्दावत् । (देखिए - नन्दा) सुतारा जैन वाङ्मय के अनुसार महाराज उशीनर की कन्या, और वैदिक मान्यतानुसार महाराज शिवि की पुत्री, इसीलिए उसका एक नाम शैव्या भी लोक में प्रचलित है । वह अयोध्याधिपति महाराज हरिश्चन्द्र की रानी और रोहिताश्व की जननी थी। भारत वर्ष में महासती तारा का नाम सर्वाधिक वन्दनीय महासतियों में परिगणित है । (देखिए -हरिश्चन्द्र ) सुतारा देवी द्वितीय विहरमान तीर्थंकर युगमन्धर की जननी । (देखिए - युगमन्धर स्वामी) (क) सुदर्शन हस्तिनापुर नरेश और अठारहवें अरिहंत प्रभु अरनाथ के जनक । (ख) सुदर्शन - अन्तगड सूत्र वर्ग 7, अध्ययन 11 अठारहवें अरिहंत अरनाथ जनक। *** 656 -त्रिषष्टी शलाका पुरुष चरित्र *** जैन चरित्र कोश •••

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