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दुःसह कर्मों का बन्ध कर लिया। तेंतीस सौ वर्षों का आयुष्य भोगकर श्रीयक रसोइया मरकर छठे नरक में गया। । ।
भगवान महावीर ने आगे फरमाया-गौतम! इसी शौरिक नगर में मछेरों का एक मोहल्ला है। वहां पर समुद्रदत्त नामक एक मछेरा रहता था। उसकी पत्नी का नाम समुद्रदत्ता था। समुद्रदत्ता मृतवत्सा थी, अर्थात् उसकी संतानें पैदा होते ही मर जाया करती थीं। उसने शौरिक यक्ष की मनौती मांगी। संयोग से उसे एक चिरंजीवी पुत्र की प्राप्ति हुई। उसके पुत्ररूप में जो जीव पैदा हुआ वह श्रीयक का जीव ही था जो छठी नरक से निकल कर उसके गर्भ में आया था। पुत्र का नाम शौरिक यक्ष की मनौती मानने के कारण शौरिकदत्त रखा गया।
समुद्रदत्त मत्स्यों का शिकार और व्यवसाय करता था। उसके पास बहुत धन संचित हो गया था और वह मछेरों का नायक माना जाता था। समुद्रदत्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पद उसके पुत्र शौरिकदत्त को प्राप्त हुआ। शौरिकदत्त ने अपने पैतृक अनार्य व्यवसाय को और अधिक विकसित किया। वह विभिन्न विधियों ने मच्छलियां पकड़ता, उन्हें बेचता और काफी लाभ अर्जित करता। वह स्वयं भी मांसाहार करता तथा छह प्रकार की मदिराओं का सेवन करता। ऐसे उसने दुःसह कर्मों का बन्ध किया।
एक बार मत्स्याहार करते हुए शौरिकदत्त के कण्ठ में मछली का कांटा लग गया। उससे उसे महावेदना उत्पन्न हुई। उसने पानी की तरह धन बहा कर उपचार कराया, पर सब व्यर्थ सिद्ध हुआ। उसका खान-पान अवरुद्ध हो गया। धन के निरन्तर व्यय से वह विपन्न भी बन गया। कुछ ही समय बाद उसके शरीर में अन्य अनेक रोग भी उभर आए।
भगवान ने फरमाया, गौतम! जिस पुरुष को तुमने आज देखा है वह पूर्वजन्म का श्रीयक रसोइया और वर्तमान भव का शौरिकदत्त है। ___ कर्मों के विपाक पर चिन्तन करते हुए गौतम स्वामी ने भगवान से पूछा, भगवन्! शौरिकदत्त का भविष्य कैसा होगा, कृपा उस पर भी प्रकाश डालिए?
भगवान ने फरमाया-गौतम! सत्तर वर्ष की आयु भोग कर शौरिकदत्त मरकर प्रथम नरक में जाएगा। वहां से पृथ्वीकाय आदि स्थावर योनियों और नरकों में असंख्यात काल तक प्रलम्ब कष्ट यात्रा करेगा। फिर हस्तिनापुर नगर में मत्स्य होगा। मेछेरों द्वारा मार दिए जाने पर वह मत्स्य उसी नगर में श्रेष्ठिपुत्र के रूप में जन्म लेगा जहां उसे श्रमण-स्थविरों का सान्निध्य प्राप्त होगा और उसके आत्म-विकास का अभियान प्रारंभ होगा। तदनन्तर महाविदेह क्षेत्र से वह सिद्धत्व प्राप्त करेगा।
शौरिकदत्त के आद्योपान्त जीवन यात्रा के वर्णन को सुनकर गौतमस्वामी समाधीत बन गए और तप व संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। -विपाक सूत्र, प्र. श्रु., अध्ययन 8 श्यामदत्ता
__ अगड़दत्त की पत्नी। (देखिए-अगड़दत्त) श्यामाचार्य ___ भगवान महावीर की धर्म संघ परम्परा के प्रभावक प्रधानाचार्य । उनका श्रुतज्ञान सुविशाल था। सुदीर्घ काल तक उन्होंने आचार्य पद पर रहकर संघ का चहुंमुखी विकास किया। श्यामाचार्य का जन्म वी. नि. 280 में ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनका गोत्र हारित था। वी.नि. 300 में उन्होंने मुनि जीवन में प्रवेश ... 596 ..
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