Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 670
________________ ही हैं, उन्हें ही मैं जानती हूँ, तुम्हें नहीं, इसलिए पानी नहीं पिलाऊंगी। कहकर सरस्वती पानी का घड़ा लेकर अपने घर आ गई और भीतर से द्वार बन्द कर लिया। चारों युवक जिज्ञासा में बंधकर सरस्वती के पीछे-पीछे उसके घर पहुंचे और द्वार पर बैठ गए। एक पड़ोसी धन श्रेष्ठी से ईर्ष्या करता था। धन को अपमानित करने का उसने इसे सुअवसर माना। उसने राजा के पास जाकर सरस्वती की शिकायत की कि वह दुराचारिणी है, उसके द्वार पर चार-चार युवक बैठे हैं। राजा ने श्रेष्ठी धन को बुलाया और उसकी पुत्री के आचार के बारे में पूछा। श्रेष्ठी धन भयभीत हो गया और कोई उत्तर नहीं दे पाया। आखिर राजा ने सरस्वती के पास आदेश भेजा कि वह दरबार में उपस्थित हो। सरस्वती ने राजा से कहलवाया कि उसके लिए पालकी भेजी जाए तभी वह दरबार में आएगी। राजा ने सरस्वती के लिए पालकी भेजी। सरस्वती पालकी में बैठ कर राजदरबार में पहुंची। राजा ने सरस्वती से पूछा, तुम्हारे द्वार पर जो चार युवक बैठे हैं, वे कौन हैं और तुमसे क्या चाहते हैं? सरस्वती ने कहा, महाराज! यह आप उन युवकों से ही पूछिए! मैं उन्हें नहीं जानती। राजा ने चारों युवकों को बुलाया और उनसे उनका परिचय तथा सरस्वती के द्वार पर बैठने का कारण पूछा। युवकों ने सच-सच बता दिया कि वे प्यासे थे और उन्होंने सरस्वती को अपने-अपने नाम बताकर पानी पिलाने को कहा। पर उसने जो उत्तर दिये उन्हीं का रहस्य जानने के लिए वे उसके द्वार पर आ बैठे। राजा ने सरस्वती से उसके कहे को स्पष्ट करने का आदेश दिया। सरस्वती ने आशंका जाहिर की, महाराज ! मेरा स्पष्टीकरण सुनकर आप क्रोधित हो जाएंगे, इसलिए मैं उत्तर नहीं दूंगी। राजा ने सरस्वती को अभय देते हुए स्पष्टीकरण करने को कहा। सरस्वती ने स्पष्ट किया, पहले व्यक्ति ने अपना नाम प्रहरी बताया, पर प्रहरी तो दो ही हैं, सूर्य और चन्द्र जो प्रतिक्षण घूमते रहते हैं। दूसरे ने अपने को रसिक बताया। पर रसिक दो ही हैं, अन्न और जल न हों तो सब रस और रसिक मिट जाएं। तीसरे ने अपने को गरीब बताया। परन्तु मैंने कहा कि गरीब तो दो ही हैं, एक लडकी का पिता और दूसरी बकरी। चौथे ने अपने को गधा कहा। पर मैंने कहा, गधे तो दो ही हैं, एक यहां का राजा और दूसरा मेरा पिता। अंतिम समाधान से राजा चौंक गया। उसने कहा. सरस्वती! प्रथम तीन समाधान तो यक्ति-यक्त हैं पर अंतिम समाधान का आधार क्या है उसे स्पष्ट करो। सरस्वती ने कहा, महाराज ! मैंने अपने पिता को गधा इसलिए कहा कि आपके बुलाने पर वह भयभीत बन गया और मौन हो गया, जबकि उसका सहज दायित्व बनता था कि वह अपने स्तर पर ही उक्त आरोप की तह में जाकर उसका समाधान करता। दूसरे, आपको गधा मैंने इसलिए कहा कि आपने एक पड़ोसी की बात पर आंखें मूंद कर विश्वास कर लिया। जबकि राजा का दायित्व तो यह होता है कि समुचित प्रमाण के आधार पर ही वह आरोप निर्धारित करता है। आपने पड़ोसी के द्वेषपूर्ण वचनों पर विश्वास किया और आरोप तय कर दिया। इसमें मुझे आपकी बुद्धिहीनता दिखाई दी और बुद्धिहीन ही तो गधा होता है। सरस्वती के समाधान से राजा को अपनी भूल परिज्ञात हो गई। उसने सरस्वती को अपनी पुत्री का मान दिया और अपने अविवेक के लिए उससे क्षमा मांगकर उसे ससम्मान विदा किया। (ग) सरस्वती ___ग्यारहवें विहरमान तीर्थंकर श्री वज्रधर स्वामी की जननी। (दखिए-वज्रधर स्वामी) (घ) सरस्वती एक जैन श्रमणी। सरस्वती धारावास नगर के राजा वज्रसिंह की पुत्री थी। उसका एक सहोदर था ... जैन चरित्र कोश ... - 629 ...

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