Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 669
________________ राजा एक बार प्रदेश गया। मार्ग में एक एकाक्ष और एक बूचे ने राजा को ठग लिया। राजा ने दस हजार स्वर्णमुद्राएं देकर जान बचाई। 'धन के बदले जान बची' इसे भी राजा ने धन के बल के रूप में ही देखा। राजा सोवनपुरी नगरी में पहुंचा। वहां की राजकुमारी चौबोली की यह घोषणा थी कि जो पुरुष उसे शतरंज में पराजित करेगा उससे वह विवाह करेगी, पर पराजित होने वाले को कारागार में आयु बितानी पड़ेगी। राजा धनमोद ने चौबोली से शतरंज खेली और पराजित बनकर उसे कारागार का बन्दी बनना पड़ा। कई वर्षों तक धनमोद नहीं लौटा तो रानी सरस्वती को चिन्ता हुई। पति को खोजने के लिए पुरुषवेश धारण कर वह उसी दिशा में चल दी जिस दिशा में राजा गया था। संयोग से काना और बूचा ठग उसे भी मिले। रानी ने अपने बुद्धिबल से उनको परास्त किया और राजा से ऐंठा हुआ धन उनसे उगलवा लिया और साथ ही उनसे शपथ पत्र भी लिखवा लिया कि वे भविष्य में किसी को नहीं ठगेंगे। वहां से पुरुषवेशी सरस्वती सोवनपुरी पहुंची। अनुमान से उसने जान लिया कि उसके पति चौबोली के कारागार में ही होने चाहिएं। उसने चौबोली से शतरंज खेलना तय किया। प्रथम दिन उसने चौबोली के उस चातुर्य को पकड़ा जिसके बल पर वह अजेय बनी हुई थी। दूसरे दिन वह अपने साथ एक बिल्ली ले गई जिसने चौबोली के चालाक चूहे का आहार कर लिया। चूहा ही चौबोली के पासों को यथावश्यक क्रम में उलट-पुलट करता था। चूहे की अनुपस्थिति में चौबोली पराजित हो गई। उसे पुरुषवेशी सरस्वती से विवाह करना पड़ा। पुरुषवेशी सरस्वती के कहने पर सभी बन्दी राजाओं और राजकुमारों को मुक्त कर दिया गया। मुक्त होने वालों में राजा धनमोद भी था। सरस्वती ने धनमोद और चौबोली को एक साथ बैठाकर अपने स्वरूप का परिचय दिया और चौबोली का विवाह अपने पति धनमोद से करके उसे अपनी छोटी बहन बना लिया। साथ ही सरस्वती ने ठगों द्वारा लिखा गया शपथ पत्र राजा को दिखाया और उनसे प्राप्त दस सहस्र स्वर्ण मुद्राएं राजा को दी। राजा सरस्वती के बुद्धिबल पर गद्गद बन गया। उसने स्वीकार कर लिया कि धनबल पर बुद्धिबल ही भारी ___ राजा धनमोद अपनी दोनों रानियों के साथ अपने नगर में लौट आया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा। दो बुद्धि निधान पलियों को पाकर वह धन्य था। एक बार सरस्वती ने राजा से कहा-महाराज! श्रेष्ठ बुद्धि वही है जो व्यक्ति को धर्म के पथ पर ले जाए। मेरी इच्छा है कि मैं शेष जीवन साधना को समर्पित करूं। राजा और चौबोली को सरस्वती की बात युक्तियुक्त लगी। तीनों ने साधना-पथ पर कदम बढ़ाए। आयुष्य पूर्ण कर तीनों देव बने और कालक्रम से मोक्ष प्राप्त करेंगे। (ख) सरस्वती ___एक अत्यन्त बुद्धिमती श्रेष्ठि कन्या। उसके पिता का नाम धन था जो नगर का धनी और मानी सेठ था। सरस्वती की माता का नाम प्रेमवती था। माता के निधन के पश्चात् गृहदायित्व सरस्वती के कन्धों पर आ गया। वह विद्याध्ययन पूर्ण कर चुकी थी और यौवन में प्रवेश ले चुकी थी। एक बार जब वह पानी लेने के लिए कुएं पर गई तो चार प्यासे युवक पानी पीने उसके पास आए। लोगों के कटाक्षों से बचने के लिए सरस्वती ने युवकों को अदेखा कर दिया। पर युवक पानी पीना चाहते थे। प्रथम युवक ने अपना परिचय दिया, मुझे प्रहरी कहते हैं। सरस्वती ने कहा, प्रहरी तो दो हैं, उन्हें ही मैं जानती हूँ, तुम्हें नहीं, इसलिए पानी नहीं पिला सकती हूँ। इसी तरह दूसरे, तीसरे और चौथे युवक ने क्रमशः अपना परिचय रसिक, गरीब और गधे के रूप में दिया। सरस्वती ने प्रत्येक को पूर्व के जवाब की तरह ही कहा, रसिक, गरीब और गधे तो दो ...628 .. - जैन चरित्र कोश ...

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