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की और एकान्त में पिंजरे को ले जाकर राजा को मुक्त किया। राजा अपने किए पर पश्चात्ताप में डूबा जा रहा था।
ऐसे श्रीमती ने अपने बुद्धिबल से अपने चारित्र और नारी के गौरव की रक्षा की। (ख) श्रीमती
__ अयोध्या नगरी के कोटीश्वर श्रेष्ठी धवल की पत्नी, एक पतिव्रता और बुद्धिमती सन्नारी। धवल का व्यापार दूर-देशों तक में फैला हुआ था। नगर में उसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। नगर नरेश कीर्तिधवल ने उसे नगर सेठ घोषित किया था। नगर सेठ होने से अमात्य मतिसागर, कोतवाल चन्द्रधवल और राजपुरोहित श्रीधर से उसकी अच्छी मैत्री थी। एक बार जब सेठ विदेश जाने लगा तो उसने सेठानी श्रीमती को समझाया कि उसे किसी प्रकार का कष्ट हो तो राजपुरोहित उसकी सहायता करेंगे। सेठ ने राजपुरोहित, कोतवाल, मंत्री और राजा से आज्ञा ली और विदेश रवाना हो गया। ____एक बार पुरोहित श्रीमती के घर आया। पति का मित्र मानकर सेठानी ने उससे वार्तालाप किया। पुरोहित सेठानी के रूप पर मोहित हो गया। उसने उससे प्रणय-प्रार्थना की। सेठानी ने उसे युक्ति-युक्त वचनों से समझाया, पर न समझने पर उसे रात्रि के प्रथम प्रहर में आमंत्रित कर लिया।
आसन्न आपदा को देखते हुए श्रीमती सहायता के लिए कोतवाल के पास गई और पूरी बात बताकर उससे सहयोग मांगा। कोतवाल ने कहा, मैं पुरोहित को अवश्य ही सबक सिखाऊंगा, पर तुम्हारा रूप अति मधुर है। मेरी प्रणय-प्रार्थना स्वीकार कर लो। सेठानी को बड़ा कष्ट हुआ। कोतवाल को शिक्षित करने के लिए उसने उसे रात्रि के द्वितीय प्रहर में अपने भवन पर आमंत्रित कर लिया। तब वह सहयोग-सहायता के लिए क्रमशः मंत्री और राजा के पास गई। पर उन्होंने भी उससे प्रणय-निवेदन किया। श्रीमती ने उन्हें रात्रि के क्रमशः तृतीय और चतुर्थ प्रहर में आमंत्रित कर लिया। __अपने भवन पर पहुंचकर सेठानी ने निश्चय किया कि ये चारों पुरुष राज्य की धुरी होकर भी चरित्रहीन हैं। इन्हें समुचित शिक्षा देना अनिवार्य है। उसने एक पूरी योजना बना डाली और उसमें अपने एक विश्वस्त अनुचर को भी सहभागी बनाया।
रात्रि के प्रथम प्रहर में पुरोहित आ पहुंचा। सेठानी ने उसे मधुर बातों में भरमाते हुए भोजन करने के लिए मना लिया। उसने भोजनादि का कार्य इस गति से किया कि पुरोहित के भोजन करते-करते रात्रि का प्रथम प्रहर बीत गया। तभी द्वार पर कोतवाल ने दस्तक दी। इससे परोहित घबरा गया। उसने छिपने के लिए सेठानी से कहा। सेठानी ने उसे एक विशाल मंजूषा के एक खण्ड में छिपा दिया। तब वह कोतवाल के
जन-पान में लगी। उसी विधि से मंत्री के आने पर कोतवाल को और राजा के आने पर मंत्री को मंजषा के अलग-अलग खण्डों में छिपा दिया। राजा के आने पर सुशिक्षित अनुचरों ने सेठानी का द्वार खटखटाया और कृत्रिम संदेश दिया कि सेठ जी का निधन हो गया है, द्वार पर परिजन आए हैं। राजा कांपा। सेठानी ने उसे भी मंजूषा के चतुर्थ खण्ड में छिपा दिया।
तब उपस्थित परिजनों की उपस्थिति में श्रीमती ने राजपुरुषों को बुलाया और कहा, मेरे पति का आकस्मिक निधन हो गया है इसलिए मेरे पति के धन पर राजा का अधिकार है। मेरे घर का पूरा धन इस मंजूषा में है। इसे राजमहल ले जाओ और ध्यान रहे कि इस मंजूषा को या तो स्वयं महाराज खोलें या महारानी। अन्य कोई न खोले। ... जैन चरित्र कोश ...
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