Book Title: Jain Charitra Kosh
Author(s): Subhadramuni, Amitmuni
Publisher: University Publication

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Page 629
________________ नहीं। कुछ आगे बढ़ने पर एक घायल योद्धा को देखकर रत्नाकर ने उसकी वीरता की प्रशंसा की तो शीलवती ने उसे कायर कहकर श्वसुर की बात को उलट दिया। आगे चलने पर एक मंदिर में रत्नाकर ने रात्रि-विश्राम की बात कही तो शीलवती ने मंदिर को नरक कहकर आगे किसी गांव में रुकने के लिए कहा। आगे एक गांव आया। रत्नाकर ने वहां ठहरने का निश्चय किया, पर शीलवती ने उस गांव को श्मशान कहकर आगे किसी गांव में ठहरने की प्रार्थना की। फिर से एक गांव आया। गांव के बाहर वृक्ष के नीचे रत्नाकर ने रथ रोक दिया। वृक्ष के नीचे रत्नाकर ने बिस्तर लगाया और लेट गया। शीलवती रथ में ही विश्राम करने लगी। इतनी ही देर में वृक्ष पर बैठा हुआ कौवा कांव-कांव करने लगा। कौवे की कांव-कांव का अर्थ समझकर शीलवती बोली, काकराज ! शृगाल की बात सुनी तो आज मुझे देश-निर्वासन मिल रहा है, तुम्हारी बात मानूंगी तो कौन जाने मेरी क्या गति होगी ? ___पुत्रवधू को अकेले बोलते देखकर सेठ असमंजस में पड़ गया। उसे लगा कि उसकी पुत्रवधू न केवल दुःशीला है बल्कि हठी, अभिमानिनी और पागल भी है। फिर भी उसने अपने भावों को दबाया और शीलवती से असंगत वार्ता का कारण पूछा। पूछने पर शीलवती ने कहा कि कौवा वृक्ष की जड़ में चार स्वर्णघट होने का संकेत दे रहा है और भोजन की याचना कर रहा है। सेठ गंभीर हो गया। उसने कौवे को रोटी का टुकड़ा दिया और वृक्ष की जड़ के निकट गहरा गड्ढा खोदा तो उसे चार स्वर्णघट प्राप्त हो गए। इससे सेठ के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। तब उसने शीलवती से पूरी बात कही और बातों के रहस्य जाने। शीलवती ने एक-एक बात का रहस्य अनावृत किया। उसने कहा, शृगाल की बात सुनकर मैंने मुर्दे की जंघा से लाल प्राप्त किए थे। पर मुझे कलंकिनी मानकर आप लोगों ने मेरे परित्याग का निश्चय कर लिया। मार्ग में जिस खेत के स्वामी के भाग्य को आप सराह रहे थे, वस्तुतः उस खेत को उसका स्वामी किसी सेठ को गिरवी रख चुका था जिसके नाम की पट्टी खेत की मेंढ़ पर लगी थी। इसीलिए मैंने कहा था कि किसान तो भूखों मरेगा। जिस योद्धा को आपने वीर कहा, उसे मैंने कायर इसलिए कहा क्योंकि उसकी पीठ पर वार के निशान थे, वीर की तो छाती पर वार के निशान होते हैं। जिस मंदिर में आपने ठहरने का निश्चय किया था उस मंदिर के आस-पास मदिरा की खाली बोतलें पड़ी थीं जो इस बात का प्रतीक थीं कि वह मद्यपों और जुआरियों का अड्डा है। इसीलिए उसे मैंने नरक कहा था। पिछले गांव में हमारा कोई परिचित नहीं था, और अपरिचित गांव श्मशान के समान ही होता है। इसलिए उसको मैंने श्मशान कहा था। इस गांव में मेरे मामा रहते हैं। इसलिए यहां ठहरने में हमें आपत्ति नहीं है। ___ शीलवती की बुद्धिमत्ता पूर्ण बातों को सुनकर रत्नाकर आश्चर्यचकित रह गया। उसने पुत्रवधू से क्षमा मांगी। दो दिन पुत्रवधू के मामा के घर ठहरकर रत्नाकर पुत्रवधू को साथ लेकर अपने घर आ गया और पुत्र को यथार्थ का ज्ञान कराया। अजितसेन ने भी पत्नी से क्षमा मांगी।। कालान्तर में नंदपुर के राजा ने भी शीलवती के शील की परीक्षा ली। शीलवती उस परीक्षा में सफल हुई। राजा को शीलवती के शील और बुद्धि के समक्ष नतमस्तक बनना पड़ा। (ख) शीलवती नन्दनपुर नरेश सिंहदत्त की पुत्री और रसालकुमार की परिणीता, एक शीलवती सन्नारी, जिसने उसी भव में मोझ प्राप्त किया। (देखिए-रसालकुमार) (ग) शीलवती अपने नाम के अनुरूप ही एक परम सुशीला-पतिव्रता सन्नारी। (देखिए-सुमनचन्द्र) ... 588 ... ...जैन चरित्र कोश ...

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