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अत्यन्त निराश हुए। उन्होंने बजरंग जी यति से अनुज्ञा और आशीर्वाद प्राप्त कर क्रियोद्धार का संकल्प किया। यति-प्रव्रज्या को छोड़कर उन्होंने पंच महाव्रत रूप दीक्षा धारण की और लोंकाशाह की धर्मक्रान्ति को उन्होंने अपने आचारनिष्ठ जीवन से सुदृढ़ता प्रदान की। ___आचार्य लवजी ऋषि एक उच्च कोटि के क्षमाशील और क्रियापात्र मुनि थे। धर्म प्रचार में भी वे कुशल थे। उनके उपदेशों का जैन समाज पर अपूर्व प्रभाव पड़ा। इससे यतियों के प्रति लोगों की आस्था शिथिल पड़ने लगी। यतियों ने वीर जी बोरा को इसके विरोध में शिकायत की। वीर जी बोरा के निवेदन पर खम्भात के नवाब ने लवजी ऋषि को कारागृह में डाल दिया। परन्तु नवाब एक निर्दोष और तेजस्वी मुनि को अधिक समय तक बन्दीगृह में नहीं रख सका। उसने क्षमा प्रार्थना के साथ लवजी ऋषि को ससम्मान मुक्त कर दिया।
लवजी ऋषि के एक शिष्य भानु ऋषि को विद्वेष के कारण विरोधियों ने विष दे दिया जिससे उनका देहान्त हो गया। उन कठिन क्षणों में भी लवजी ऋषि ने अपूर्व सहनशीलता का परिचय दिया।
बाद में लवजी ऋषि को भी आहार में विष दे दिया गया। अपूर्व शान्ति और समाधि में रहते हुए अनशन पूर्वक लवजी ऋषि ने देह त्याग किया।
सोमजी ऋषि आचार्य लवजी ऋषि के एक तेजस्वी शिष्य थे।
वर्तमान ऋषि सम्प्रदाय और खम्भात सम्प्रदाय आचार्य लवजी ऋषि की सम्प्रदाएं हैं। लीलापत
अयोध्या नगरी के कोटीश्वर श्रेष्ठी सुनन्दन का पुत्र । लीलापत सुशिक्षित, गुणवान और धुन का धनी युवक था। युवावस्था में एक रूप-गुण सम्पन्न श्रेष्ठि-कन्या से उसका विवाह हुआ। ___एक रात्रि में लीलापत ने एक स्वप्न देखा। स्वप्न में उसने झणकारा नामक रूपसी बाला को देखा जिसने उससे कहा कि वह उसी की प्रतीक्षा कर रही है। साथ ही स्वप्न में उसने यह भी जान लिया कि झणकारा रामावती नगरी के रामेश्वर हलवाई की इकलौती पत्री है। लीलापत की निद्रा भंग हई तो उसका चैन खो गया। उसने मन ही मन दृढ निश्चय कर लिया कि वह रामावती नगरी जाएगा और झणकारा से विवाह करेगा। उसने अपना स्वप्न अपने माता-पिता और पत्नी को बताया। सभी ने उसे स्वप्न को स्वप्न मानकर भूल जाने के लिए कहा, पर वह वैसा न कर सका। आखिर उसके निश्चय के समक्ष परिवार के सभी सदस्य परास्त हो गए और उसे जाने की अनुमति दे दी। ____ लीलापत चल दिया। कई दिनों तक यत्र-तत्र भटकता रहा, पर उसे रामावती नगरी की कोई खोज-खबर कहीं से प्राप्त न हुई। थककर उसने यक्षाराधना का निश्चय किया। आराधना से सुप्रसन्न यक्ष ने उसे रामावती नगरी के एक उद्यान में पहुंचा दिया। यह उद्यान रामेश्वर हलवाई का ही था। उद्यान रक्षक ने लीलापत को रामेश्वर हलवाई के बारे में कई बातें बताईं। उसने बताया कि रामेश्वर हलवाई नगर का सबसे समृद्ध व्यक्ति है। उसकी दुकान की मिठाई प्रति सेर सौ स्वर्ण अशर्फियों में बिकती है। उसकी झणकारा नामक पुत्री देवांगनाओं से भी अधिक सुन्दर है। परन्तु पुत्री के विवाह के लिए रामेश्वर हलवाई ने एक विचित्र शर्त रखी है जिसका पूरा होना प्रायः असंभव सा लगता है। लीलापत ने शर्त के बारे में पूछा तो उद्यानरक्षक ने बताया, रामेश्वर हलवाई ने यह शर्त रखी है कि जो व्यक्ति उसके उद्यान के जलकुण्डों को स्वर्णमय और बावड़ियों को रजतमय बनाएगा उसी के साथ वह अपनी पुत्री का विवाह करेगा। .. जैन चरित्र कोश ...
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