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79 वर्ष की अवस्था में वी.नि. 2183 (वि. 1713) में गुजरात प्रदेश के ऊना ग्राम में आचार्य विजयदेव का स्वर्गवास हुआ।
___ -विजयदेव सूरि महात्म्य विजय देवी
वत्स देश के तुगिक नगर निवासी ब्राह्मण दत्त की पत्नी और भगवान महावीर के दसवें गणधर मेतार्य की जननी।
-आवश्यक चूर्णि विजय (बलदेव)
द्वितीय बलदेव। अन्तिम समय में श्रामणी दीक्षा लेकर उन्होंने उग्र तपश्चरण से समस्त कर्म खपा सिद्धत्व प्राप्त किया। (देखिए-द्विपृष्ठ वासुदेव) विजयमित्र नरेश
वर्द्धमानपुर नगर का राजा।
एक बार भगवान महावीर वर्द्धमानपुर नगर में पधारे। नगर के बाह्य भाग में स्थित विजयवर्द्धमान नामक उद्यान में प्रभु अपने धर्मसंघ के साथ समवसृत हुए।
भगवान के पदार्पण का सुसंवाद चहुं ओर प्रसृत हुआ। महाराज विजयमित्र को भी तत्सम्बन्धी सूचना प्राप्त हुई। राजा के हर्ष का पारावार न रहा। उसने प्रभु के चरणों में पहुंचकर प्रभु का स्वागत और अभिनन्दन किया। प्रभु ने धर्मदेशना दी। प्रभु के उपदेशों को सुनकर विजयमित्र नरेश उनका परम भक्त बन गया।
-विपाक प्र. श्रु., अ. 10 (पी.एल. वैद्य द्वारा सम्पादित) विजयमित्र सेठ
___ उज्झितकुमार का पिता। (देखिए-उज्झित कुमार) (क) विजय राजा
(देखिए-मृगापुत्र) (ख) विजय राजा
महावीरकालीन पोलासपुर नरेश और अतिमुक्त के जनक। (देखिए-अतिमुक्त कुमार) (ग) विजय राजा
ग्यारहवें चक्रवर्ती जय के जनक। (देखिए-जय चक्रवर्ती) विजय-विजया
विजय और विजया परस्पर विवाह सूत्र में बंधकर भी आजीवन अखण्ड ब्रह्मचर्य की साधना करते रहे। उनकी इस ब्रह्मचर्य साधना ने उन्हें इतनी उच्चता प्रदान कर थी कि एक साथ चौरासी हजार श्रमणों को आहार दान से जितना पुण्य संचित हो सकता है उतना ही पुण्य संचय उस युगल को स्तुति पूर्वक आहार दान से प्राप्त होता था। उस दम्पति का जीवन परिचय इस प्रकार है
कच्छ देश में अर्हद्दास नाम का एक श्रेष्ठी रहता था। उसकी पत्नी का नाम अर्हदासी था। उनके एक पुत्र था जिसका नाम विजय था। यह पूरा परिवार सदाचारी और जैन धर्म का अनन्य अनुरागी था। किसी समय एक मुनि का उपदेश सुनकर विजय ने आजीवन शुक्लपक्ष में ब्रह्मचर्य-पालन का नियम ले लिया। ... 548
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