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श्रेष्ठी जिनदास के चार पुत्र थे और एक पुत्री। विनयवती सबसे छोटे पुत्र धनपति की पत्नी थी। पुत्री का विवाह कौशाम्बी नगरी में किया गया था। सेठ का पूरा परिवार जिनोपासक था। एक बार धनपति व्यापार के लिए विदेश गया। उस समय विनयवती सगर्भा थी। श्वसुर की आज्ञा प्राप्त करके वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए अपने पीहर गई। संयोग से दुर्दैववश रानी के हार की चोरी का आरोप विनयवती पर लग गया। राजा ने विनयवती को मृत्युदण्ड दिया। पर वधिक विनयवती का वध न कर पाए। करुणार्द्र होकर उन्होने विनयवती को देशान्तर चले जाने को कहा और लौटकर राजा को संतुष्ट कर दिया कि विनयवती का वध कर दिया गया है। ___ जंगल में भटकते हुए विनयवती को एक साधु का आश्रय प्राप्त हुआ। वहां पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। नवजात शिशु जब मुस्कराया तो उसके मुख से लाल झरने लगे। पुत्र की इस पुण्यवानी को देखकर विनयवती के हर्ष का आर-पार न रहा। एक दिन जब ऋषि अन्यत्र गए हुए थे तो विनयवती पुत्र को आश्रम में सुलाकर निकटस्थ जलाशय पर स्नान करने गई। एक चोर जो नवजात शिशु के मुख से प्रकट होने वाले लालों का रहस्य जान चुका था, शिशु को चुरा कर भाग गया। पुत्र की चोरी ने विनयवती को अधीर बना दिया और वह वन-कान्तर में पुत्र-पुत्र पुकारती हुई भटकने लगी। उन्मत्त की सी दशा में वह कौशाम्बी नगरी पहुंची और वहां एक सेठानी के घर सेवा वृत्ति पा गई। सेठानी कर्कशा और कठोर हृदय की नारी थी, वह विनयवती से क्षमता से अधिक काम लेती थी। विनयवती ने वहां रहते हुए बारह वर्ष बिता दिए। वस्तुतः वह सेठानी विनयवती की ननद थी, पर दुर्दैववश दोनों परस्पर एक दूसरी को पहचानती न थीं। विदेश से लौटते हुए धनपति बहन का मेहमान बना और बहन के घर पत्नी को दासीवृत्ति करते देख बहुत खिन्न हुआ। वह पत्नी को अपने साथ ले गया और सुखपूर्वक चम्पापुरी में रहने लगा। उधर राजा को भी उसका हार प्राप्त हो गया और उसे अपने निर्णय पर घोर पश्चात्ताप हुआ। विनयवती को जीवित देखकर राजा को संतोष हुआ।
उधर विनयवती के पुत्र को चुराकर चोर अपने नगर विजयनगर पहुंचा। उसकी चोरी का रहस्य नगर नरेश धनंजय ने जान लिया और नवजात शिशु को अपने संरक्षण में ले लिया। राजा ने उसे अपना पुत्र मानकर उसका पालन-पोषण किया और उसका नाम लालसेन रखा। राजा के सात अन्य पुत्र भी थे। सातों विवाहित थे। सातों राजकुमार और उनकी रानियां लालसेन पर प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते थे।
एक बार भाभी का एक मधुर उपालंभ लालसेन को लग गया और वह नरद्वेषिणी पद्मखण्डपुर की राजकुमारी पद्मिनी से विवाह करने चल दिया। अपने संकल्प में उसे सफलता प्राप्त हुई। उसने पद्मिनी का नरद्वेष दूर कर दिया और उससे विवाह किया। इकलौती पुत्री का विवाह करके पद्मखण्ड नरेश विरक्त हो गए। उन्होंने जामाता लालसेन को राजपद अर्पित कर संयम का पथ चुन लिया। ___आखिर में लालसेन को अपने जनक-जननी के बारे में यथार्थ ज्ञात हुआ। वह अपनी माता विनयवती
और पिता धनपति को अपने पास ले आया। विनयवती के जीवन के समस्त अभाव धुल गए। अनेक वर्ष राजमाता के पद पर रहने के पश्चात् उसने अपने पति के साथ दीक्षा धारण कर परमपद प्राप्त किया। जीवन के सांध्य पक्ष में लालसेन ने भी प्रव्रज्या धारण की और मोक्ष प्राप्त किया। विनयसुंदरी
श्रीपुर नगर के महामंत्री मतिसागर की पतिपरायणा पत्नी। (देखिए-मतिसागर) ... 554 .00
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