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किसी समय दोनों भाई व्यापार के लिए प्रदेश गए। मार्ग में वन था। एक देव ने विमल के एकनिष्ठ भाव से श्रावकाचार -पालन की परीक्षा ली । देव के विभिन्न प्रलोभनों के समक्ष भी विमल विचलित नहीं बना। इससे देव अति प्रसन्न हुआ। उसने प्रकट होकर विमल की धर्मनिष्ठा की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उसे एक विषहरणी मणि प्रदान की। विमल को मणि में आकर्षण नहीं था, पर देव द्वारा विवश कर दिए जाने पर उसने वह मणि परोपकारार्थ उपयोग के लिए ग्रहण कर ली ।
विमल ने देव द्वारा ली गई परीक्षा और उस द्वारा भेंट स्वरूप दी गई मणि की बात अनुज सहदेव को बताई। इसे सुनकर सहदेव बहुत प्रसन्न हुआ। उसे भाई के परीक्षा में सफल रहने पर वैसी प्रसन्नता नहीं थी, जैसी प्रसन्नता चामत्कारिक मणि प्राप्ति की थी। यात्रा क्रम में दोनों भाई आगे बढ़े। एक नगर में पहुंचे। वहां के राजा का नाम पुरुषोत्तम था । पुरुषोत्तम का एक ही पुत्र था अरिमल्ल । अरिमल्ल को विगत दिवस किसी भयानक विषधर ने डंस लिया था। उसके उपचार में समस्त मांत्रिक और गारुड़ी असफल हो चुके थे। राजा ने घोषणा की थी कि जो भी व्यक्ति राजकुमार को स्वस्थ करेगा उसे आधा राज्य दिया जाएगा। उक्त घोषणा को सहदेव ने भी सुना । उसे अतीव प्रसन्नता हुई। उसने विमल से कहा, भाई ! स्वर्ण अवसर है । राजकुमार को स्वस्थ करके आधा राज्य प्राप्त कर लो। विमल ने कहा, मुझे राज्य में रुचि नहीं है। सहदेव ने विमल को मूर्ख माना और उसके पल्लू से बंधी मणि खोलकर वह राजा के पास जा पहुंचा। मणि के प्रभाव से उसने राजकुमार को स्वस्थ कर दिया ।
नगरभर में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। राजा ने सहदेव को आधा राज्य दे दिया। सहदेव ने राजपद अपने अग्रज विमल को अर्पित करना चाहा, पर विमल ने उसे अस्वीकार कर दिया। विमल की निस्पृहता पर राजा पुरुषोत्तम बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसे नगर सेठ का पद दे दिया।
सहदेव राज्य का संचालन करने लगा। समस्त अनुकूल साधन प्राप्त हो जाने पर वह भोगोपभोगों में द्ध बन गया। मुनि से ग्रहण किए हुए निमय- व्रत उसने भंग कर दिए। असीमित भोगोपभोग के लिए धन की आवश्यकता रहती ही है सो उसने प्रजा पर विभिन्न प्रकार के कर लगा दिए। उसका नैतिक पतन निरन्तर होता रहा । विमल ने उसे अनेक बार सावधान किया, पर सहदेव ने विमल की बातों को प्रत्येक बार असुना कर दिया। परिणामतः सहदेव आयुष्य पूर्ण कर प्रथम नरक में गया ।
व्रतों का निरतिचार पालन कर विमल देवलोक में गया। अनुक्रम से मोक्ष प्राप्त करेगा ।
- धर्मरत्न प्रकरण टीका, गाथा 13
(ख) विमल (आचार्य)
‘पउमचरिय' नामक बृहद् ग्रन्थ के रचयिता एक विद्वान और प्रभावशाली जैन आचार्य | आचार्य विमल प्रज्ञा के धनी आचार्य थे। अनुमानतः 1500 वर्ष पूर्व उन्होंने 'पउमचरिय' नामक बृहद् प्राकृत भाषा के ग्रन्थ की रचना की । वैदिक परम्परा में जो स्थान वाल्मीकि रामायण को है, जैन परम्परा में वही स्थान 'पउमचरिय' का है
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श्रीराम का एक नाम पद्म भी था । पद्म नाम को आधार बनाकर ही आचार्य विमल ने श्रीराम के चरित्र का चित्रण किया है। इस ग्रन्थ के अनुसार रावण, हनुमान, सुग्रीव आदि सभी पात्र राक्षस या वानर न होकर कुलीन मानव ही थे । इस ग्रन्थ में मानवीय पक्ष को विशेष रूप से उजागर किया गया है।
पउमचरिय ग्रन्थ जैन पुराण साहित्य का सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ है। आचार्य विमल को 'हरिवंशचरिय' * जैन चरित्र कोश •••
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