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वैश्यायन तपस्वी
महावीरकालीन एक तेजोलब्धि सम्पन्न तापस। (देखिए-गोशालक) वैश्रमण भद्र अणगार
प्राचीनकालीन एक तपस्वी अणगार। (देखिए-सुवासव कुमार) -विपाक सूत्र द्वि श्रु., अ. 4 व्यक्त स्वामी (गणधर)
भगवान महावीर के चतुर्थ गणधर। ये कोल्लाक ग्रामवासी भारद्वाज गोत्रीय धनमित्र ब्राह्मण की धर्मपत्नी वारुणी के अंगजात थे। वेद-वेदांगों के गंभीर ज्ञाता थे। इनके गुरुकुल में पांच सौ ब्राह्मण विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे। इन्द्रभूति की भांति ये भी अपापावासी सोमिल ब्राह्मण के आमंत्रण पर उनके विशाल यज्ञ में सम्मिलित हुए थे। जिस दिन उक्त यज्ञ की पूर्णाहुति होने वाली थी उसी दिन श्रमण धर्म के उन्नायक चरम तीर्थंकर भगवान महावीर अपापा नगरी के महासेन उद्यान में पधारे। श्रमण धर्म के नवीन सूर्य को उदयावस्था में ही ब्राह्मण विद्वानों ने निस्तेज करने का प्रण किया और इस क्रम में इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति भगवान को शास्त्रार्थ में पराजित करने उनके पास पहुंचे। पर स्वयं पराजित होकर उनके शिष्य बन गए।
उसी क्रम में व्यक्त ब्राह्मण भगवान के पास पहुंचे। भगवान ने पंचभूतों के अस्तित्व-नास्तित्व सम्बन्धी उनकी शंका निरस्त कर उन्हें भी झुका दिया। वे अपने 500 शिष्यों सहित दीक्षित हो गए। इक्यावन वर्ष की अवस्था में उन्होंने दीक्षा ली, तिरेसठवें वर्ष में उन्हें केवलज्ञान हुआ और 80 वर्ष की अवस्था में वे मोक्ष चले गए।
- जैन चरित्र कोश
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