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पिता सोमचन्द्र को लेकर केवली वल्कलचीरी पोतनपुर आए और वहां विराजित भगवान महावीर के धर्मसंघ में उन्हें दीक्षित होने को प्रेरित किया । सोमचन्द्र वानप्रस्थ संन्यास को त्यागकर श्रमणधर्म में दीक्षित हो गए। कालान्तर में प्रसन्नचन्द्र भी भगवान से प्रव्रजित बनकर सिद्ध हुए । (देखिए-प्रसन्नचन्द्र राजर्षि) वल्मीक
वीतशोका नगरी के महाराज और बारहवें विहरमान तीर्थंकर के जनक । (देखिए - चन्द्रानन स्वामी) वसंतमाधव
कौशाम्बी नरेश यशोधर का पुत्र । एक बार एक देवी ने प्रसन्न होकर उसे यान- निर्माण का मंत्र दिया जिसे पाकर राजकुमार को मानो मन की मुराद मिल गई । यान पर सवार होकर उसने अपने मित्र मन्त्रिपुत्र गुणचन्द्र के साथ विश्वभ्रमण किया । इस भ्रमण में अनेक आरोह-अवरोह आए। दोनों मित्र बिछुड़े भी और मिले भी । वसंतमाधव ने कई राजकन्याओं से विवाह किया, दो राज्यों का उसे स्वामीत्व प्राप्त हुआ । अपने नगर में लौटा तो उसके पिता ने उसे राजपद अर्पित कर दीक्षा धारण की। वंसतमाधव ने लम्बे समय तक राज्य किया और अंतिम वय में दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त किया ।
वसन्तर
वसन्तर एक उदार हृदय राजकुमार था। कहते हैं कि उसके लिए कुछ भी अदेय नहीं था । याचक की मांग और इच्छा पर वह अपने प्राण भी लुटाने को तत्पर रहता था । उसका परिचयसूत्र निम्नोक्त है
वसन्तर शिवा नगरी के राजा संजय और रानी धारिणी का इकलौता पुत्र था । मन्दी नामक राजकुमारी से उसका पाणिग्रहण हुआ । मन्दी एक पतिव्रता सन्नारी थी और पति के पूर्ण अनुकूल रहकर उसकी सेवा करना अपना धर्म समझती थी । कालक्रम से मन्दी ने दो पुत्रों को जन्म दिया ।
वसन्तर का स्वभाव निरन्तर वर्षण था । वह दोनों हाथों से धन, वस्त्र, पात्र याचकों को बांटता रहता था । याचक जो भी मांगता, एक क्षण भी चिन्तन न करते हुए वसन्तर याचक को याचित वस्तु प्रदान कर देता था। वसन्तर के पास एक चतुर्दन्ती श्वेत हस्ति था जो राज्य की खुशहाली का प्रतीक माना जाता था।
लिंगदेश के राजा ने एक ब्राह्मण को वसन्तर के पास भेजा । ब्राह्मण ने वसन्तर से श्वेत हस्ति की मांग की । वसन्तर ने तत्क्षण वह हाथी ब्राह्मण को दान कर दिया । वसन्तर के इस दान से राज्य भर में हलचल मच गई। राजा को भी अपने पुत्र की अति दानशीलता पर पर्याप्त क्रोध आया । दरबारियों ने एक स्वर से प्रस्ताव पारित किया कि वसन्तर को निर्वासन का दण्ड दिया जाए। राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों के प्रस्ताव को मान्य कर वसन्तर को आदेश दिया कि वह बंकचूल पर्वत पर रहकर निर्वासन का दण्ड भोगे । पिता की आज्ञा का पालन कर वसन्तर चल दिया । उसकी पत्नी मन्दी और उसके पुत्रों ने भी उसका अनुगमन किया । राजा ने उनको एक रथ दिया। रथ पर सवार होकर चारों प्राणी बंकचूल पर्वत के लिए चले तो मार्ग में एक दरिद्र याचक ने वसन्तर से उसका रथ मांग लिया । वसन्तर तत्क्षण पत्नी और बच्चों के साथ रथ से नीचे उतर गया। चारों प्राणी पैदल चलकर ही बंकचूल पर्वत पर पहुंचे। वहां पर पर्णकुटी डालकर रहने लगे ।
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कलिंग देश में जक नाम का एक दरिद्र ब्राह्मण था । उसे दास-दासी की आवश्यकता थी पर अर्थाभाव के कारण वह दास-दासी खरीद नहीं सकता था। उसके चिन्तन-पथ पर वसन्तर का चित्र उभर आया । वह बंकचूल पर्वत पर पहुंचा और वसन्तर से उसके पुत्र और पुत्री की याचना की । वसन्तर ने अपने पुत्र-पुत्री का दान ब्राह्मण को दे दिया ।
••• जैन चरित्र कोश
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