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उन्होंने लब्धिबल से एक बाल मुनि का रूप बनाया और एक और मोदक प्राप्त कर लिया। पर उन्हें पुनः विचार जगा कि यह मोदक तो ज्ञानगुरु के लिए है। उन्होंने पुनः एक वृद्ध मुनि का रूप बनाया तथा एक और मोदक प्राप्त कर लिया। अब आषाढ़ सन्तुष्ट थे। भिक्षा लेकर वे चले गए।
मुनि आषाढ़ के इस पूरे चरित्र को झरोखे से महर्द्धिक नामक नट देख रहा था। उसे विचार आया कि काश! उसके पास भी वैसी लब्धि होती तो उसका नाट्य सजीव बन जाता और वह प्रभूत धन संचित कर लेता। विचार श्रृंखला में चले। एक विचार आया कि इस मुनि को ही अपनी नट मण्डली में शामिल कर लिया जाए तो हमारी मण्डली जगजयी नटमण्डली बन जाएगी। उसने तत्क्षण अपनी पुत्रियों को बुलाया
और कहा, उक्त मुनि स्वाद के वश प्रतीत होता है। उसे उत्कृष्ट आहार दिया जाए और उसे वश करने का पूर्ण प्रयत्न किया जाए। नट कन्याओं ने अपना जाल फैला दिया। आषाढ़ भिक्षा के लिए आते तो वे उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन प्रभूत मात्रा में प्रदान करतीं और हाव-भाव से उन्हें चलित करने का प्रयत्न करतीं। साताकारी आहार के मोह में बंधे आषाढ़ नटगृह में प्रतिदिन आने लगे। शनैः शनैः आहार के साथ-साथ वे नट-कन्याओं के प्रेम-पाश में भी बन्ध गए। चतुर बालाओं ने मुनि की मनःस्थिति को पढ़ते हुए उनसे वैवाहिक प्रस्ताव किया और कहा कि उनके बिना वे प्राण त्याग देंगी। आषाढ़ बोले, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है। पर एतदर्थ गुर्वाज्ञा आवश्यक है। आषाढ़ गुरु के पास पहुंचे और गृहस्थ होने का अपना संकल्प गुरु को सुना दिया। गुरु ने आषाढ़ को समझाने के बहुत प्रयत्न किए, पर उसके न समझने पर उन्होंने कहा, वत्स! भले ' ही जाओ, पर गुरु की एक सीख को सदैव स्मरण रखना, मद्य-मांस से सदैव दूर रहना, न स्वयं इनका उपयोग करना तथा इन्हें उपयोग करने वालों से भी दूर रहना! ___गुरु-सीख को हृदय पर अंकित करके आषाढ़ नट-कन्याओं के पास पहुंचे। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा से उन्हें परिचित कराया, कि यदि उस घर से मांस-मदिरा दूर रहेगी तो वे उनके साथ रहने को प्रस्तुत हैं। नट कन्याओं ने प्रतिज्ञा की कि वे मांस-मदिरा से दूर रहेंगी। इस प्रकार आषाढ़ गृहस्थ होकर नट-कन्याओं के साथ रहने लगे। शीघ्र ही वे इतने विचक्षण नट बन गए कि उनके जैसा नाट्य-कला-प्रवीण अन्य कोई न था। आषाढ़ की इस कला के बल पर महर्द्धिक नट ने प्रभूत समृद्धि संचित कर ली।
एक बार आषाढ़ को किसी कार्यवश ग्रामान्तर जाना पड़ा। छह मास तक उनके लौटने की आशा न थी।नट कन्याएं आषाढ की अनुपस्थिति में स्वतंत्र बन गईं। मांस-मदिरा के उनके संस्कार जाग उठे। उन्होंने जी भरकर मांस-मदिरा का सेवन करना प्रारंभ कर दिया। पर निश्चित अवधि से पूर्व ही आषाढ़ लौट आए। पलियों को मद्य-मांस से छकी देखा तो उनके प्रेम-पाश तड़-तड़ टूट गए। उन्होंने पत्नियों को धिक्कारा और पुनः अपने गुरु की शरण में जाने को तत्पर हो गए। नट कन्याओं ने लाख अनुनय-विनय की, पर आषाढ़ निष्प्रभावी बने रहे। आखिर नट कन्याओं ने कहा, तुम्हें जाना ही है तो हमारे लिए इतने धन की व्यवस्था करके जाओ जिससे हमारा जीवन सुख से बीत सके। आषाढ़ बोले कि वे उनके लिए एक नाटक खेल सकते हैं और यह नाटक उनके जीवन का अप्रतिम परन्तु अन्तिम नाटक होगा।
राजा को एतदर्थ आषाढ़ ने सूचना दी और कहा कि वे अपने जीवन का अन्तिम नाटक खेलना चाहते हैं। यह नाटक भरत चक्रवर्ती के जीवन पर आधृत होगा। राजा ने इस नाटक का प्रायोजन अपने हाथों में ले लिया। एतदर्थ बहुप्रचार भी किया गया। निर्धारित समय पर राजा सहित सहस्रों लोग इस नाटक को देखने के लिए उमड़ पड़े।
नाटक प्रारंभ हुआ। भरत का अभिनय स्वयं आषाढ़ ने किया। जीवंत अभिनय से दर्शक मुग्ध और ... 58 ...
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