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धर्मराज (राजा)
गौड़ देश का राजा। आचार्य बप्पभट्टि के प्रभाव से उसने जैन धर्म अंगीकार किया था। (देखिए-बप्पभट्टि आचार्य) (क) धर्मरुचि अणगार
एक महातपस्वी मुनि, जिनका चरित्र-चित्रण जैन परम्परा में हजारों वर्षों से हजारों साधकों, लेखकों, कवियों और श्रद्धालुओं ने किया है। वे एक ऐसे अणगार थे जो अपनी मिसाल स्वयं थे। किसी समय चम्पानगरी में रहने वाली नागश्री ब्राह्मणी ने मुनि धर्मरुचि अणगार को विष-शाक बहरा दिया। मुनि मासोपवासी थे। भिक्षा लेकर धर्मरुचि अपने गुरु आचार्य धर्मघोष के पास आए। उन्हें भिक्षा दिखाई। शाक की गन्ध से ही गुरु समझ गए कि वह विष-शाक है, उसे खाने का स्पष्ट अर्थ है-प्राण-हानि। अतः गुरु ने धर्मरुचि अणगार से कहा कि वह उस शाक को किसी ऐसे स्थान पर परठ दे, जहां हिंसा संभावित न हो।
धर्मरुचि अणगार शाक पात्र को लेकर जंगल में गए। निरवद्य भूमि को देखा और पश्चात-परिणाम की जांच के लिए शाक की एक बूंद जमीन पर डाली। शाक की तीव्र गंध से अनेक चींटियां आकर्षित बनकर उस बिन्दु पर आईं और उसे खाते ही मर गईं। यह देखकर मुनि का करुणापूर्ण चित्त हिल उठा। बहुत चिन्तन करने पर अन्ततः उन्हें अपना उदर ही एक ऐसा निरवद्य स्थान जंचा, जहां हिंसा संभावित न थी। उन्होंने देव, गुरु और धर्म को स्मरण करते हुए उस पूरे शाक को अपने उदर में डाल लिया, अर्थात् उस शाक का आहार कर लिया। परिणाम स्पष्ट था। शीघ्र ही महामुनि का प्राणान्त हो गया। देह का विसर्जन कर महामुनि धर्मरुचि अणगार सर्वार्थसिद्ध विमान में देव रूप में जन्मे। वहां से एक भव लेकर मोक्ष जाएंगे।
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (ख) धर्मरुचि अणगार प्राचीनकालीन एक तपस्वी अणगार। (देखिए-वरदत्त कुमार)
-विपाकसूत्र द्वि श्रु., अ. 10 धर्मरुचि मुनि
यह एक तपस्वी मुनि थे। तप के प्रभाव से इन्हें तेजोलब्धि प्राप्त हो गई थी। किसी समय नंद नामक नाविक की नौका से मुनि ने गंगानदी पार की। नंद ने किराया मांगा, पर अकिंचन मुनि किराया कहां से देते? ' इससे नंद ने कुपित होकर मुनि को तप्त बालू पर खड़ा कर दिया। नंद के द्वेषीभाव को देखकर मुनि को भी क्रोध आ गया और उन्होंने क्रुद्ध बनकर नंद को देखा तो वह वहीं भस्म हो गया। वहां से मरकर नंद ने गोह, हंस और सिंह के तीन भव किए और धर्मरुचि मुनि को सताया। प्रत्येक भव में वह मुनि की कोप दृष्टि से भस्म बनता गया। पंचम भव में नंद ब्राह्मण-पुत्र बना। वहां भी उसका मुनि से साक्षात्कार हुआ तो उसे पूर्व वैर स्मरण हो आया और उसने पत्थरों से मुनि पर आक्रमण कर दिया। वह पुनः मुनि की कोपदृष्टि की अग्नि-ज्वालाओं में भस्म हो गया। वहां से मरकर वह वाराणसी नगरी में राजपत्र बना। क्रमशः राजा बना। किसी समय गंगा में नौका विहार करते हुए उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने अपने अतीत के छह भव देखे और जाना कि उसके द्वेष स्वभाव के कारण उसे पुनः-पुनः मुनि का कोपभाजन बनना पड़ा। उसने वैर परम्परा की परिसमाप्ति के लिए मुनि को खोजना चाहा। उसने एक श्लोक के तीन पाद रचे, जिसमें उसके पूर्व के पांच भवों का संकेत था। उसने घोषणा कराई कि जो भी व्यक्ति उक्त श्लोक की पूर्ति करेगा, उसे आधा राज्य दिया जाएगा। जन-जन के मुख पर उक्त श्लोक के तीनों पाद गूंजते थे। किसी समय एक ...292 -
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