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म
कई गाथा
राजगृह का रहने वाला एक समृद्ध गाथापति । किसी समय भगवान महावीर राजगृह नगरी के बाहर गुणशीलक उद्यान में पधारे। भगवान का उपदेश सुनने के लिए परिषद आई। मंकाई भी भगवान का उपदेश सुनने के लिए गया । उपदेश सुनकर वह विरक्त हो गया। उसने अपने बड़े पुत्र को गृहभार प्रदान कर भगवान के पास दीक्षा धारण कर ली। उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। गुणसंवत्सर तप का आराधन किया। सोलह वर्षों तक उसने विशुद्ध संयम की आराधना की । अन्त में विपुलगिरि पर मासिक संथारे के साथ और अंतिम श्वास में कैवल्य को साधकर मोक्ष प्राप्त किया। - अन्तगड सूत्र वर्ग 6, अ. 1
मंखली
श्रवण ग्राम का रहने वाला मंख जाति का गृहस्थ जो चित्र - फलक दिखाकर भिक्षावृत्ति करता था । वह प्रसिद्ध चरित्र गोशालक का पिता था। (देखिए गोशालक)
मंगलकलश
उज्जयिनी नगरी के श्रेष्ठी धनदत्त की पत्नी सत्यभामा ने प्रौढ़ावस्था में स्वप्न में मंगलकलश को देखकर एक पुत्र को जन्म दिया, इसीलिए पुत्र को भी मंगलकलश नाम ही दिया गया। योग्यवय में मंगलकलश कलाचार्य के पास रहकर विद्याध्ययन करने लगा । वह एक प्रतिभावान छात्र सिद्ध हुआ। युवावस्था की दहलीज पर कदम ररते-ररते वह अनेक कलाओं में निष्णात बन गया ।
उसी काल में चम्पानगरी में राजा सुरसुन्दर राज्य करता था। उसकी पुत्री का नाम त्रैलोक्यसुंदरी था जो अपने नामानुरूप अतीव सुन्दर थी। राजा चाहता था कि उसकी पुत्री का विवाह ऐसे स्थान पर किया जाए जहां रहकर उन्हें पुत्री का विरह न सहना पड़े। राजा ने अपने प्रधानमंत्री सुबुद्धि से इस सम्बन्ध में विचार विनिमय किया। सुबुद्धि जानता था कि त्रैलोक्यसुन्दरी अपने माता-पिता की इकलौती संतान है और उससे विवाह करने वाला युवक ही अंततः चम्पानगरी का राजा भी बनेगा। मंत्री ने अपने पुत्र को त्रैलोक्यसुन्दरी के लिए प्रस्तावित किया। राजा ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। हालांकि पिछले कई मास से मंत्री का पुत्र कुष्ठ रोग से पीड़ित था, पर इस रहस्य को मंत्री के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जानता था। मंत्री ने राजा से उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र के विवाह की स्वीकृति प्राप्त कर ली, पर जो विकट समस्या थी वह यह थी कि अपने कोढ़ी पुत्र को वह विवाह मण्डप में कैसे बिठाए । बहुत मनोमन्थन के पश्चात् उसने अपनी कुलदेवी की आराधना की। आराधना से प्रसन्न कुलदेवी प्रगट हुई। मंत्री ने अपनी समस्या उसके समक्ष रखी और प्रार्थना की कि वह उसके पुत्र को स्वस्थ कर दे। कुलदेवी ने कहा, यह संभव नहीं है । तुम्हारे पुत्र ने निकाचित कर्मों का बन्ध किया है अतः उसे रोग मुक्त नहीं किया जा सकता है। मंत्री ने गिड़गिड़ाते हुए पूछा, माते! वर्तमान जटिल स्थिति में मेरे लिए क्या उचित है, कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए । *** जैन चरित्र कोश •••
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