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यक्षदत्त
(देखिए - अगड़दत्त)
यक्षदिन्न
गजपुर निवासी श्रमणोपासक जिनभद्र का इकलौता पुत्र जो दुःसंगति में पड़कर अपने कुल के विपरीत आचरण और स्वभाव वाला हो गया था। उसके जीवन में सातों ही कुव्यसन प्रवेश पा गए थे। जिनभद्र जब कालधर्म को प्राप्त होने लगा तो उसने अपने पुत्र को अपने पास बुलाया और कहा, तुमने कभी भी मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, आज अंतिम आज्ञा के रूप में मैं तुम्हें एक मंत्र दे रहा हूं, इस मंत्र को प्रतिदिन पढ़ना ।
पुत्र को नवकार मंत्र प्रदान कर जिनभद्र परलोकवासी बन गया। पिता की मृत्यु के पश्चात् यक्ष दिन्न घर का समस्त धन दुर्व्यसनों को अर्पित कर दिया और विपन्नावस्था में आवारा भटकने लगा। एक कापालिक की दृष्टि उस पर पड़ी। वह यक्षदिन्न को धन का प्रलोभन देकर अपने साथ ले गया। उसे विद्यासिद्ध करनी थी। रात्रि में वह यक्षदिन्न के साथ श्मशान में पहुंचा । यक्षदिन्न को उसने एक शव की छाती पर बैठा दिया और निर्देश दिया कि वह शव को पकड़े रखे । कहकर कापालिक मंत्र पढ़ने लगा। शव में स्पंदन होने लगा तो यक्षदिन्न डर गया। वह पिता - प्रदत्त नवकार मंत्र को पढ़ने लगा। उससे उसका भय कम हो गया और साथ ही कापालिक के मंत्रों का प्रभाव भी कम होने लगा । कापालिक ने उच्च स्वर से मंत्र पढ़ने शुरू किए। सहसा यक्षदिन की पकड़ से छूटकर वह शव आकाश में उछला और कापालिक के सिर पर आ गिरा। इससे कापालिक और वह शव दोनों ही स्वर्णपुरुष बन गए। पलक झपकते ही यक्षदिन्न का दारिद्र्य धुल गया। उसने इसे नवकार मंत्र का ही प्रभाव माना। समस्त दुर्व्यसनों से दूर हटकर उसने नवकार मंत्र के जाप में स्वयं को अर्पित कर दिया। धर्ममय जीवन जीकर उसने सद्गति प्राप्त की ।
- धर्मोपदेशमाला, विवरण कथा - 96
यक्ष श्री
चम्पानगरी के रहने वाले ब्राह्मण सोमभूति की भार्या । (देखिए - नागश्री)
यक्षा
महामंत्री शकडाल की सात पुत्रियों में ज्येष्ठ । उसकी स्मरण शक्ति इतनी पैनी थी कि वह जिस भी श्लोक अथवा गाथा को एक बार सुन लेती थी उसे वह शब्दशः स्मरण हो जाता था । यक्षा साध्वी बनी और विशुद्ध चारित्र की आराधना कर स्वर्गस्थ हुई ।
यक्षिणी
अरिहंत अरिष्टनेमि के धर्मसंघ की आर्यिका प्रमुख ।
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- कल्पसूत्र
जैन चरित्र कोश •••