________________
का हृदय आहत हो गया। आत्महत्या के निश्चय से वे घर से निकल गए। पुण्ययोग से उन्हें आचार्य भूधर दर्शन हुए। भूधर जी के समक्ष उन्होंने अपनी मनःस्थिति प्रकट की । भूधर जी ने रघुनाथ जी को धर्म का मर्म समझाया। रघुनाथ जी का मन वैराग्य से पूर्ण बन गया । उन्होंने प्रव्रज्या धारण कर ली। वी.नि. 2257 (वि. 1787) में वे दीक्षित हुए।
मुनि रघुनाथ ने जैन आगमों का गहन पारायण किया। तप और क्रिया में वे अग्रणी बने । उनकी गणना प्रभावशाली मुनियों में होने लगी और वे अपने मुनि संघ के आचार्य नियुक्त हुए ।
पाली (राजस्थान) में 17 दिन के संलेखना - अनशन के साथ देह त्याग कर वे स्वर्गवासी हुए। वि.नि. 2316 (वि. 1846) माघ शुक्ला एकादशी को उनका स्वर्गवास हुआ।
रजनी (आर्या )
इनका विस्तृत परिचय काली आर्या के समान है। विशेष इतना है कि इनके पिता का नाम रजनी गाथापति और माता का नाम रजनी श्री था । (देखिए - काली आर्या )
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., प्र. वर्ग, अध्ययन 3
रति
एक विद्याधर कन्या जिसका विवाह वासुदेव श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार के साथ हुआ था । रतिप्रिया (आर्या )
इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आय)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 20
(क) रतिसार
महिष्मती नगरी के राजा सुभूम का पुत्र । उसकी माता का नाम सुभामा था। राजकुमार रतिसार रूप में जहां कामदेव का अवतार प्रतीत होता था वहीं गुणों में भी वह अनन्य गुणवान युवक था । वह स्वयं गुणवान था और गुणियों का आदर- मान करने में उसे विशेष आनन्द प्राप्त होता था । पूर्वजन्म के पुण्य दैव उसके साथ रहते थे। एक बार श्रावस्ती नगरी का सुबन्धु नामक एक व्यक्ति एक अद्भुत श्लोक बेचने के लिए महिष्मती नगरी आया। सुबन्धु ने श्लोक की कीमत एक लाख स्वर्णमुद्राएं तय की थीं। पर एक श्लोक
बदले इतनी बड़ी धनराशि भला कौन देता? राजकुमार अश्व पर सवार होकर नगर भ्रमण कर रहे थे । उन्होंने सुबन्धु को श्लोक बेचते देखा और एक लाख स्वर्णमुद्राएं उसे देकर श्लोक खरीद लिया । श्लोक को पढ़कर राजकुमार गद्गद हो गया। श्लोक का भावार्थ था - जब-जब मनुष्य का वैभव बढ़ता है तो पूर्व पुण्य कर्म बह जाते हैं क्योंकि उन्हीं के परिणामस्वरूप वैभव की प्राप्ति होती है। इसलिए वैभव पर अभिमान नहीं करना चाहिए। और जब- जब विपत्तियां आती हैं तो दुखी नहीं बनना चाहिए क्योंकि विपत्तियां ही पूर्व संचित दुष्कृत की निर्जरा करती हैं । '
महाराज सुभूम से कोषाध्यक्ष ने राजकुमार की शिकायत की कि वे धन का दुरुपयोग कर रहे हैं। - वस्तुस्थिति से अवगत बनकर राजा को बहुत क्रोध आया और उसने पुत्र को देश निकाला दे दिया । कठोर
(1) कार्यः सम्पदि नानन्दः पूर्वः पुण्यभिदे हि सा । नैवापदि विषादस्तु सा हि प्राक् पापपिष्टये ।।
*** 476
*** जैन चरित्र कोश •••