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विद्याओं का ज्ञाता था। उसने प्रातःकाल ब्रह्मा जी का रूप धारण किया और नगरी के पूर्वीद्वार पर आकाश में कमलासन पर विराजित हो गया। नगरजन ब्रह्माजी को अवतरित देखकर श्रद्धाभिभूत बन गए। लोगों के झुण्ड के झुण्ड ब्रह्माजी के दर्शनों के लिए पूर्वी द्वार पर जाने लगे। नगर के सभी लोग गए, पर रेवती नहीं गई। दूसरे, तीसरे और चौथे दिन विद्याधर ने विष्णु, शिव और बुद्ध के रूप धारण कर नगरी के शेष द्वारों पर आसन जमाया। पूरा नगर उनके दर्शनों के लिए गया पर रेवती नहीं गई। पांचवें दिन विद्याधर ने पच्चीसवें तीर्थंकर का रूप धरा। सभी लोग दर्शनार्थ गए पर रेवती तब भी नहीं गई। विद्याधर को विश्वास हो गया कि रेवती की श्रद्धा सुदृढ़ है, वह किसी भी भ्रम अथवा पाखण्ड से भ्रमित बनने वाली नहीं है।
विद्याधर ने रेवती की एक अन्य प्रकार से भी परीक्षा ली। उसने एक रुग्ण मुनि का रूप बनाया और एक स्थान पर लेट गया। फिर एक कृत्रिम व्यक्ति का रूप धारण कर रेवती के पास सूचना पहुंचाई कि अमुक स्थान पर एक श्रमण रुग्ण हैं और उन्हें सेवाचर्या की आवश्यकता है। रेवती तत्क्षण मुनि के पास पहुंची। अपने सेवकों के सहयोग से वह रुग्ण मुनि को अपने पौषधगृह में ले गई और उनकी आहार-औषधादि से अग्लान सेवा भक्ति की। रेवती की श्रद्धा को विचलित करने के लिए मुनि रूपी विद्याधर ने पूरे घर का अन्न उदरस्थ कर लिया। उसके बाद उसने दुर्गन्धमयी शौच से पूरे पौषधगृह को भर दिया। रेवती के मस्तक पर घृणा की एक भी रेखा नहीं उभरी और उसने अपने ही हाथों से अशुचि को साफ किया।
यह देखकर विद्याधर दंग रह गया। अपने वास्तविक रूप में उपस्थित होकर उसने रेवती की धर्म श्रद्धा और श्रमण सेवा भाव की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसने रेवती को आचार्य श्री का धर्मसंदेश दिया और अपने स्थान पर चला गया। (ख) रेवती
महाशतक श्रमणोपासक की पत्नी। (देखिए-महाशतक) (ग) रेवती
श्रीकृष्ण के अग्रज बलभद्र जी की रानी और निषध कुमार की माता। (घ) रेवती
भगवान महावीर की अनन्य उपासिका, मीढ़ा ग्रामवासी एक धनाढ्य सेठ की पत्नी।गोशालक ने भगवान पर तेजोलेश्या छोड़ी। तेजोलेश्या भगवान के शरीर में तो प्रवेश न कर सकी पर उन की देह को परितापित अवश्य कर गई। उसके प्रभाव से भगवान को दो महीने तक दस्त लगते रहे। भगवान की देह कृश हो गई। इससे श्रीसंघ में चिन्ता व्याप्त हो गई। श्रीसंघ की चिन्ता को मिटाने के लिए भगवान ने सिंह अणगार को रेवती के घर भिक्षा लेने भेजा और निर्देश दिया कि रेवती ने कूष्माण्ड पाक और बिजोरा पाक-ऐसे दो पाक तैयार किए हैं। प्रथम पाक उसने मेरे निमित्त से तथा दूसरा पाक अपने अश्व के लिए तैयार किया है। वह दूसरे पाक में से कुछ भाग ले आए।
सिंह अणगार रेवती के घर पहुंचे। श्रद्धाभिभूत बनी रेवती ने मुनि को कूष्माण्ड पाक बहराना चाहा पर मुनि ने उसे सदोष बताते हुए ग्रहण नहीं किया। उन्होंने बिजोरापाक की याचना की। रेवती ने श्रद्धा के उत्तुंग शिखर पर आरोहण करते हुए वह पाक मुनि को बहाराया। उस क्षण उसके भाव इतने ऊंचे थे कि उसने तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन कर लिया।
बिजोरापाक को ग्रहण करके भगवान स्वस्थ हो गए। श्रीसंघ में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। रेवती ... 500 .0
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