________________
(ज) महाबल (राजा)
रोहिड़ नगर के राजा । निषधकुमार के पूर्वभव के जनक ।
भद्र स्वामी (विहरमान तीर्थंकर)
अठारहवें विहरमान तीर्थंकर । पुष्करार्द्ध द्वीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र में वपु नाम की एक विजय है जिसके अन्तर्गत विजया नाम की एक समृद्ध नगरी है । उसी नगरी के महाराज देवराय की पट्टमहिषी उभया की रत्नकुक्षी से प्रभु जन्मे । हस्ति के चिन्ह से संयुक्त प्रभु ने यौवन काल में सूर्यकान्ता नामक राजकन्या से पाणिग्रहण किया । तिरासी लाख पूर्व की अवस्था तक प्रभु राजपद पर रहे। उसके बाद वर्षीदान देकर दीक्षित हुए। कैवल्य लाभ प्राप्त कर धर्म तीर्थ की स्थापना की और तीर्थंकर बने । वर्तमान में असंख्य भव्यजन प्रभु के उपदेशों को सुनकर आत्म-साधना में संलग्न हैं । जब प्रभु का आयुष्य चौरासी लाख पूर्व का होगा तो वे सर्व-कर्म मुक्त बन मोक्ष धाम में जा विराजेंगे ।
महाभीम
अवसर्पिणी काल के द्वितीय नारद । (देखिए - नारद )
महामरुता
महाराज श्रेणिक की रानी । शेष परिचय नन्दावत् । (देखिए - नन्दा)
- अन्तगड सूत्र वर्ग 7, अध्ययन 8
महारुद्र
वर्तमान अवसर्पिणी काल के चतुर्थ नारद । ( देखिए-नारद ) महावीर (तीर्थंकर)
जैन धर्म के अन्तिम तीर्थंकर। कुछ जैनेतर विद्वान महावीर को जैन धर्म का प्रवर्तक भी मानते हैं । पर जैन परम्परा के अनुसार जैन धर्म एक शाश्वत धर्म है । उसकी ज्योति मन्द और तीव्र तो होती रहती है पर कभी नष्ट नहीं होती है । प्रत्येक तीर्थंकर तीर्थ की स्थापना करता है, धर्म की नहीं । धर्म तो अनादि अनन्त है। महावीर अन्तिम तीर्थंकर थे । क्षत्रियकुंड नरेश महाराज सिद्धार्थ और उनकी रानी त्रिशला प्रभु के जनक और जननी थे। प्रभु बाल्यावस्था से ही अत्यन्त साहसी, वीर और धीर थे। बचपन में ही उनकी वीरता को देखकर उन्हें वीर और महावीर नाम पुकारा जाने लगा था। उनका जन्मना नाम वर्धमान था ।
नन्दिवर्धन महावीर के अग्रज और सुदर्शना उनकी भगिनी थी । युवावस्था मे यशोदा नामक राजकुमारी से महावीर का विवाह हुआ । उन्हें एक पुत्री हुई, जिसे प्रियदर्शना नाम दिया गया। योग्य वय में प्रियदर्शना का विवाह जमाली नामक क्षत्रिय युवक से सम्पन्न हुआ । महावीर अपने माता-पिता का अत्यधिक सम्मान करते थे और उनसे अगाध स्नेह रखते थे । महावीर जब मातृगर्भ में थे तो उन्होंने इस विचार से हिलना-डुलना बन्द कर दिया था कि उससे माता को वेदना होती है । पर वैसा होने से अमंगल की संभावना से त्रिशला विह्वल हो गई। मां की मनःस्थिति को देख महावीर ने पुनः स्वाभाविक रूप से हिलना डुलना शुरू कर दिया। उससे माता बड़ी प्रसन्न हुई । माता की उसी ममता से प्रेरित बनकर महावीर ने गर्भकाल में ही यह संकल्प कर लिया था कि माता-पिता के जीवन काल में वे दीक्षित नहीं होंगे ।
महावीर ने मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी को दीक्षा धारण की। साढ़े बारह वर्षों तक प्रभु ने ध्यान और तप के माध्यम से आत्मसाधना की । इस साधना काल में प्रभु ने असंख्य कठिन उपसर्गों और परीषहों से लोहा ••• जैन चरित्र कोश
*** 433