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किसी समय राजा मानमर्दन के यहां एक चोर ने चोरी की। आरक्षियों ने चोर का पीछा किया। भागते-भागते चोर महाबल के आश्रम में पहुंचा और चुराया हुआ धन महाबल की बगल में रख कर अन्यत्र भाग गया। आरक्षियों ने महाबल को चोर समझा और उसे गिरफ्तार करके वे राजा के पास ले गए। महाबल ने अपनी सफाई देते हुए अपना पूरा जीवनवृत्त सुना दिया स्पष्ट किया कि वह मृत्युभय से तापस बना है।
राजा मानमर्दन कर्मफल और भाग्य पर विश्वास नहीं करता था। उसने कहा, तुम मेरे पास रहो। मेरे रहते हुए तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। महाबल राजा के साथ रहने लगा। कुछ ही दिन बाद राजा ने उसका विवाह भी करवा दिया।
किसी दिन महाबल राजा के साथ वन-विहार को जाने लगा तो उसकी पत्नी ने उसे किसी कार्यवश वापिस बुला लिया। इतने में राजा दूर निकल गया। राजा के पास शीघ्र पहुंचने के लिए महाबल ने घोड़े को चाबुक लगाई। दौड़ते हुए घोड़ा वटवृक्ष के नीचे पहुंचकर जोर से उछला। महाबल के गले मे पड़ी हुई सोने की चैन उलटकर वटवृक्ष की शाखा में उलझ गई और महाबल वृक्ष से लटक गया। सोने की चैन ही उसके लिए फांसी का फन्दा बन गई। उसका प्राणान्त हो गया।
राजा मानमर्दन को महाबल की मृत्यु का समाचार मिला। इससे उसका अंहकार गल गया। कर्मफल पर उसका विश्वास अटल बन गया। शनै-शनै उसकी श्रद्धा प्रगाढ़ बनती गई। श्रामणी दीक्षा लेकर उसने उत्कृष्ट चारित्र की आराधना की और मोक्ष पद प्राप्त किया।
-पार्श्वनाथ चरित्र (ङ) महाबल (मलयासुन्दरी) ____एक साहसी और शूरवीर राजकुमार । उसके जीवन में देव, दानव और मानवकृत अकल्प्य और अचिन्त्य कष्ट के क्षण आए, पर उसने अपने साहस, शौर्य और बुद्धिमत्ता के बल से समस्त कष्टों को पार कर अपने नाम की सार्थकता सिद्ध की। महाबल पइठानपुर नरेश महाराज शूरपाल का पुत्र था। उसने चन्द्रावती नगरी के राजा वीरधवल की पुत्री मलयासुन्दरी से विवाह किया। मलयासुन्दरी की विमाता कनकमाला ने मलयासुन्दरी और महाबल के विरुद्ध कई बार षडयंत्र रचे, जिनके परिणामस्वरूप उन दोनों को अनेक कष्ट सहन करने पड़े। परन्तु उन दोनों ने कनकमाला को कभी दोषी नहीं माना। स्वकृतकर्म को ही दोषी मानकर उन्होंने धैर्य धारण किया और उपस्थित कष्टों का साहस से सामना किया।
एक लम्बी कष्ट परीक्षा से गुजर कर महाबल और मलयासुन्दरी के जीवन में सुख का समय आया। महाबल ने सुशासन स्थापित कर प्रजा का हार्दिक प्यार प्राप्त किया। जीवन के अंतिम भाग में महाबल और मलया ने संयम की साधना की और निर्वाण पद प्राप्त किया।
-महाबल मलया चरित्र (च) महाबल (राजा)
___ भगवान ऋषभदेव का जीव अपने पूर्वभव में गंधसमृद्धि नगर का महाबल नामक राजा था। महाबल राजा अपने धर्मात्मा मंत्री स्वयंबुद्ध से संबोधि का सूत्र प्राप्त कर जागृत बना। जब उसे संबोधि का सूत्र प्राप्त हुआ तब उसकी आयु बाईस दिन शेष थी। राजा ने देव, गुरु और धर्म पर अविचल श्रद्धा रखते हुए अनशन सहित देहोत्सर्ग कर ईशानेन्द्र का सामानिक देव पद प्राप्त किया।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र / उसह चरियं (छ) महाबल (राजा)
विजयापुरी नरेश और चौदहवें विहरमान तीर्थंकर श्री भुजंगस्वामी के जनक। (देखिए-भुजंग स्वामी) ... 432
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