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हो जाता। आखिर नौ मास के बाद रानी ने प्रसव किया। यह एक विचित्र बालक था। अंगोपांग रहित और इन्द्रियों के स्थान पर मात्र चिन्ह थे। वह एक मांस का लोथड़ा प्रतीत होता था। तीव्र दुर्गन्ध उसके अंगों से फूट रही थी। उसे देखकर वितृष्णा और भय से रानी कांप उठी। उसने उसे बाहर उकुरड़ी पर फिंकवाने के लिए राजा से कहा। राजा ने रानी को समझाया और जैसे-तैसे उसके पालन-पोषण के लिए उसे मनाया। रानी ने उसे अपने महल के भोयरे (तलघर) में रख दिया और निश्चित समय पर उसे वहीं पर भोजन-पान देने लगी। जब रानी उसके सामने भोजन रखती तो वह मांस पिण्ड उछल-उछल कर उस भोजन को उदरस्थ करता। उसे पुनः-पुनः वमन होता और वह पुनः-पुनः उस वमन को खाता। इस प्रकार वह नारकीय अवस्था में अपना जीवन जीने लगा।
एक बार मृगा ग्राम में भगवान महावीर पधारे। परिषद दर्शनों के लिए गई। उनमें एक जन्मान्ध भिखारी भी सम्मिलित था जो किसी सज्जन के साथ आ गया था। वह विद्रप और ग्लान था। उसके शरीर पर असंख्य मक्खियां भिनभिना रही थीं। उसे देखकर गौतम स्वामी का हृदय करुणा युक्त बन गया। परिषद के लौटने पर उक्त जन्मान्ध भिखारी की चर्चा करते हए गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पछा-प्रभ! क्या उस जन्मान्ध भिखारी से अधिक दयनीय दशा भी किसी मानव की हो सकती है? इस पर भगवान ने फरमाया-हां. गौतम! इस जन्मान्ध भिखारी से भी अधिक नरकमय जीवन इस नगर के राजा का पुत्र-मृगापुत्र जी रहा है। वह मनुष्य लोक और मनुष्य देह में होकर भी नारकीय अवस्था में जी रहा है।
गौतम मृगापुत्र को देखने के लिए उत्सुक बन गए। वे भगवान की आज्ञा लेकर रानी मृगावती के
में पहुंचे और उसके पुत्र को देखने की जिज्ञासा व्यक्त की। रानी ने अपने स्वस्थ और सुन्दर अन्य पुत्र गौतम स्वामी को दिखाए। पर गौतम स्वामी ने उसे उसके ज्येष्ठ पुत्र को दिखाने के लिए कहा। रानी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र के बारे में गौतम स्वामी के मुख से सुना तो उसे महान आश्चर्य हुआ, क्योंकि उस रहस्य को राजा और रानी के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं जानता था। रानी के पूछने पर गौतम स्वामी ने भगवान की सर्वज्ञता की बात बताई। इससे रानी सन्तुष्ट हो गई। वह गौतम स्वामी को लेकर तलघर में गई। गौतम स्वामी ने वहां मृगापुत्र को नारकीय जीवन यापन करते देखा। कर्मों की ऐसी विचित्रता देखकर वे दंग रह गए। लौटकर भगवान के पास आए और मृगापुत्र के कर्मों की कथा भगवान से पूछी। भगवान ने गौतम स्वामी को इकाई के भव में संचित किए गए दुःसह कर्मों की व्याख्या की और स्पष्ट किया कि मृगापुत्र उन्हीं कर्मों को भोग रहा है। ____ गौतम स्वामी द्वारा मृगापुत्र के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर भगवान ने फरमाया-छत्तीस वर्ष की आयु में मरकर मृगापुत्र सिंह के रूप में जन्म लेगा। वहां से मरकर प्रथम नरक में जाएगा। वहां से नेवला होगा और मरकर दूसरी नरक में जाएगा। यों विभिन्न जन्म-मरण करता हुआ सातों ही नरकों में भटकेगा। अनन्त काल तक जन्म-मरण के चक्कर में घूमते-भटकते हुए अन्ततः महाविदेह से सिद्ध होगा।
-विपाक सूत्र,प्र.श्रु.,अ.1 (ख) मृगापुत्र ___ उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार मृगापुत्र सुग्रीव नगर के राजा बलभद्र और उनकी रानी मृगावती के पुत्र थे। वे राजकुमार थे इसलिए उनका लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा राजसी विधि से हुई थी। युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ उनका पाणिग्रहण हुआ। पूर्ण वैभव में जीवन यापन करते हुए एक दिन महल ... जैन चरित्र कोश ...
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