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एक बार उसे वन में ही एक केवली मुनि के दर्शन हुए। उसकी जिज्ञासा पर केवली भगवान ने उसका पूर्वभव सुनाया और स्पष्ट किया कि अस्नान व्रत की निन्दना के फलस्वरूप उसे दुर्गन्ध युक्त शरीर की प्राप्ति हुई है।
इससे उस मुनि का संयम भाव पूर्वापेक्षया प्रखर बन गया। कर्मों के क्षय के लिए वह कायोत्सर्ग में बैठ गया। उसने संकल्प किया जब तक उस द्वारा अर्जित निकाचित कर्म निर्जीर्ण नहीं होगा तब तक वह अविचल समाधिस्थ रहेगा । कठोर कायोत्सर्ग तप से उसका निकाचित कर्म निर्जीर्ण बन गया। उसके शरीर से सुगंध आने लगी। पर उसने कायोत्सर्ग समाप्त नहीं किया । महान कर्मों की निर्जरा कर वह स्वर्ग का अधिकारी बना । भवान्तर में वह सिद्ध होगा ।
— उत्त. वृत्ति
मुद्गरपाणयक्ष
राजगृह निवासी अर्जुन माली का कुल देवता । राजगृह नगर के बाह्यभाग में अर्जुनमाली का पैतृक पुष्पोद्यान था जिसमें मुद्गरपाणि यक्ष का प्राचीन यक्षायतन था । अर्जुनमाली के पूर्वजों से ही मुद्गरपाण यक्ष की मान्यता थी। उस यक्ष की प्रतिमा के हाथ में सहस्रपल लौह मुद्गर होने के कारण उसका उक्त नाम प्रचलित हुआ था। एक दुर्घटना विशेष के फलस्वरूप मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश किया और राजगृह में अर्जुनमाली आतंक का पर्याय बन गया । (देखिए-अर्जुनमाली)
मुनिपति
अंग देश की राजधानी मुनिपतिक नगर का राजा। एक बार राजा अपनी रानी की जंघा पर सिर रखकर लेटा हुआ था। रानी ने पति के सिर में एक श्वेत केश देखा। श्वेत केश को चोर कहकर रानी ने उसे उखाड़ा और राजा को दिखाया । श्वेत केश को वार्धक्य का संदेश मानकर राजा विरक्त हो गया और अपने पुत्र को राजपद देकर स्वयं मुनिधर्म में दीक्षित हो गया। मुनिधर्म का पालन करते हुए एक बार मुनि श्री मुन अवन्तीनगरी में आए। वहां एक उद्यान के एक कोने में ध्यान मुद्रा में अवस्थित हो गए। कंपकंपा देने वाली सर्दी पड़ रही थी। उद्यान के निकट से गुजरते हुए कुछ ग्वालों ने निर्वस्त्र मुनि को ध्यानावस्थित अवस्था में देखा । शीत से मुनि की रक्षा के लिए ग्वालों ने अपने वस्त्र मुनि की देह पर ढांप दिए ।
अवन्तीनगरी में ही बोधिभट्ट नाम का एक तिलों का व्यापारी रहता था । उसकी पत्नी का नाम धनश्री था और वह कुलटा थी । धनश्री ने एक बार अपने पति को भयभीत बनाने के लिए एक उपक्रम किया। उद्यान में आकर उसने शाकिनी का रूप बनाया और खेत पर जाकर उसने अपने पति को डराया । लौटकर वह उद्यान में आई और शाकिनी का विद्रूप वेश उतारकर अपने वस्त्र पहनने लगी। उद्यान के निकट से ही कुछ मशालची गुजर रहे थे। मशालों के प्रकाश में धनश्री ने उद्यान के कोने में ध्यानावस्थित मुनि को देखा। वह सशंकित बन गई कि मुनि ने उसके कुनाटक को देख लिया है। उसने सोचा, मुनि जीवित रहेगा तो उसके नाटक को प्रगट कर देगा। ऐसा सोचकर उसने मुनि की देह पर अग्नि फैंक दी। ग्वालों के वस्त्र मुनि के शरीर पर पड़े थे। वस्त्रों ने शीघ्र ही अग्नि को पकड़ लिया और मुनि का शरीर दग्ध होने लगा। मुनि अचेत होकर भूमि पर गिर पड़े।
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प्रभात में ग्वाले उधर से गुजरे तो उन्होंने मुनि की अवस्था देखी। मुनि को देखकर ग्वाले द्रवित बन गए। वे एक दयालु और सहृदय कुंचिक नामक सेठ को जानते थे । वे सेठ के पास पहुंचे और मुनि के दग्ध होकर अचेत हो जाने की बात उससे कही। सेठ अपने अनुचरों को साथ लेकर उद्यान में गया। सेठ मुनि को ••• जैन चरित्र कोश
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