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कुलदेवी ने अपने अवधिज्ञान में वस्तुस्थिति का अध्ययन किया और मंत्री से कहा कि फलां दिन प्रभात के समय जो युवक नगर के दक्षिण द्वार पर आए उसी से अपनी समस्या का समाधान कीजिए। कहकर कुलदेवी अन्तर्धान हो गई ।
सुनिश्चित समय की प्रतीक्षा में मंत्री ने अपने विश्वस्त अनुचर नगर के दक्षिण द्वार पर नियुक्त कर दिए। कुलदेवी ने अन्धड़ में उड़ाकर मंगलकलश को चम्पानगरी के दक्षिण द्वार पर ला छोड़ा। मंत्री के अनुचरों ने मंगलकलश को मंत्री के पास पहुंचाया। मंत्री ने अपनी पूरी योजना मंगलकलश को कही कि उसके पुत्र के स्थान पर उसे विवाह मण्डप में बैठना होगा। मंगलकलश ने उस कार्य को अनैतिक और अमानवीय बताकर वैसा करने से इन्कार कर दिया। मंत्री ने तलवार खींचकर मंगलकलश को धमकी दी कि यदि वह उसके आदेश का पालन नहीं करेगा तो उसे मार दिया जाएगा। विधि का लेख मानकर मंगलकलश ने मंत्री का प्रस्ताव इस शर्त के साथ स्वीकार कर लिया कि राजा की ओर से प्रीतिदान में मिलने वाले समस्त धन-माल पर उसका अधिकार होगा।
आखिर मंगलकलश के साथ राजकुमारी त्रैलोक्यसुन्दरी का विवाह हो गया। मंत्री के घर में राजकुमारी ने कदम रखा। मंगलकलश और राजकुमारी ने साथ बैठकर भोजन किया। पानी पीने के प्रसंग पर मंगलकलश ने कहा, उज्जयिनी के जलाशय का पानी अद्भुत है। मंत्री ने उसी क्षण संकेत से मंगलकलश को अपने पास बुलाया और प्रीतिदान के धन-माल के साथ विदा कर दिया ।
रात्रि में दुल्हे के वेश में कुष्ठरोगी मंत्रिपुत्र ने राजकुमारी के कक्ष में प्रवेश किया। उसे देखते ही राजकुमारी समझ गई कि उसके साथ षडयन्त्र हुआ है। उसने तलवार खींचकर मंत्रिपुत्र को भगा दिया और सुबह का सूर्योदय होते ही राजमहल में पहुंच गई। उधर सूर्योदय से पूर्व ही मंत्री रोते हुए राजा के पास पहुंचा और कुशल अभिनय करते हुए राजा को यह समझाने में सफल हो गया कि राजकुमारी का स्पर्श करते ही उसका पुत्र कोढ़ी हो गया है। राजा ने भी अपनी पुत्री को दुर्भागा माना और उसका मुख तक देखना बन्द कर दिया । राजकुमारी पुनः पुनः 'उज्जयिनी के जलाशय के अद्भुत जल' वाक्य पर चिन्तन करती । आखिर उसने यही चिन्तन निष्कर्ष निकाला कि जिस पुरुष के साथ उसका विवाह हुआ है वह पुरुष उज्जयिनी का निवासी होना चाहिए ।
राजकुमारी ने जैसे-तैसे पिता से उज्जयिनी जाने की अनुमति प्राप्त कर ली । उज्जयिनी जाकर उसने अपनी कुशलता से मंगलकलश को खोज निकाला । सत्य से परिचित बनकर राजा सुरसुन्दर ने मंत्री को सपरिवार देश निकाला दे दिया और मंगलकलश को सर्वथा योग्य जानकर राजसिंहासन सोंप दिया। मंगलकलश दीर्घकाल तक प्रजा का पुत्रवत् पालन किया और अंतिम वय में साधना में जीवन समर्पित कर सद्गति प्राप्त की । - शांतिनाथ चरित्र, प्रस्ताव 2
मंगलावती
अष्टम विहरमान अरिहंत प्रभु अनन्तवीर्य स्वामी की जननी । (देखिए - अनन्तवीर्य स्वामी) मंगू (आचार्य)
श्रमण परम्परा के एक महान प्रभावक आचार्य । नन्दी सूत्र स्थविरावली में आचार्य मंगू की सुन्दर शब्दों में प्रशस्ति हुई है, तथा चूर्णिकार ने भी आचार्य श्री के महान गुणों की भावपूर्ण स्तुति की है। वे विशाल श्रुतराशि के धारक थे, प्रवचन प्रभावक, आचार कुशल, वादीमान-मर्दक और जिनशासन की कीर्ति को विस्तृत जैन चरित्र कोश •••
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