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नरेश जितशत्रु था। इन छहों राजाओं तक भी मल्लि के रूप गुणों की चर्चा पहुंची। छहों ने अपने-अपने दूत मल्लि से विवाह के प्रस्ताव के साथ महाराज कुंभ के पास भेजे। महाराज कुंभ ने दूतों को फटकार कर भगा दिया तो छहों राजाओं ने अपनी-अपनी सेनाओं के साथ मिथिला को घेर लिया। इससे कुंभ चिंतित हो गए। मल्लि ने इस विपदा से निपटने के लिए पिता से अनुमति मांगी और सुविचारित योजनानुसार छहों राजाओं को आमंत्रित कर लिया। मल्ली एक दीर्घदर्शी राजकुमारी थी। संभावित परिस्थितियों से निपटने के लिए उसने एक भवन बनवाया था। इसके चारों ओर छह जालियां थीं। मध्य में एक विशाल चबूतरा बनवाया था। उस पर उसने अपनी एक आदमकद स्वर्ण प्रतिमा रखवाई थी। यह प्रतिमा भीतर से खोखली रखी गई थी और ऊपर ढक्कन रखा गया था। मल्लि प्रतिदिन भोजन का एक कौर उस प्रतिमा में डाल देती थी। प्रतिमा के भीतर संचित भोजन सड़ने लगा था। राजकुमारी मल्ली ने उन छहों राजाओं को उस भवन में ठहराया। जाली से छहों राजाओं ने मल्लि की प्रतिमा को देखा। मंत्रमुग्ध बनकर वे उसे एकटक देखते रह गए। तभी राजकुमारी ने पीछे से आकर प्रतिमा का ढक्कन उघाड़ दिया। तीव्र दुर्गन्ध से छहों राजाओं की दशा दयनीय हो गई। नाक-भौं सिकोडकर इधर-उधर देखने लगे। तब राजकमारी मल्ली ने उन्हें सीख देते हुए कहा, जिस प्रतिमा में प्रतिदिन एक कौर अन्न डालने से उसमें असह्य दुर्गन्ध उप्पन्न हो गई है, फिर जिस शरीर में प्रतिदिन पर्याप्त अन्न डाला जाता है उस शरीर की कैसी अन्तर्दशा है उसे सहज ही समझा जा सकता है। मल्ली ने छहों राजाओं को उनके पूर्वजन्म की स्मृतियां दिलाई। छहों को जातिस्मरण ज्ञान हो गया और छहों ने जान लिया कि वे पूर्वजन्म के मित्र हैं। मल्ली ने अपने स्त्री होने का कारण भी मित्रों के समक्ष प्रगट किया। छहों मित्र राजा प्रतिबुद्ध हो गए और उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि वे भविष्य में भी वही करेंगे जो मल्लि करेंगी। ____ मल्लि दीक्षित हुई तो वे छहों राजा भी दीक्षित हुए। कैवल्य प्राप्त कर प्रभु मल्लि ने तीर्थ रचना की। विश्व के लिए वे कल्याण का द्वार बनीं। अंत में मोक्षधाम में जा विराजीं। प्रतिबुद्धि आदि छहों मित्र मुनि भी मोक्ष को उपलब्ध हो गए।
- ज्ञाताधर्मकथा महर्द्धिक नट
प्राचीन काल का एक नट। (देखिए-आषाढ़ मुनि) महाकच्छा (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (देखिए-कमला आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 27 महाकाल
वर्तमान अवसर्पिणी काल के षष्ठम नारद। (देखिए-नारद) महाकाली ___ महाराज श्रेणिक की रानी और राजकुमार महाकाल की माता। युद्ध में अपने पुत्र महाकाल की मृत्यु के दुःसंवाद से विरक्त बन महाकाली साध्वी बन गई। उसने विशेष रूप से लघुसिंह निष्क्रीडित तप की आराधना की। इस तप की चार परिपाटियां होती हैं। जिसमें दो वर्ष और अट्ठाईस दिन का समय लगता है। (शेष परिचय काली वत्)
-अन्तगडसूत्र वर्ग 8, अध्ययन 3 ... 424
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