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एक काष्ठखण्ड के सहारे मतिसागर किनारे पर आ लगा। वहां एक सुनसान नगर में किसी दैत्य द्वारा बन्दी बनाई गई राजकुमारी को दैत्य से मुक्त कराके मतिसागर उस नगर में पहुंचा जहां उसकी पत्नी विनयसुन्दरी थी। उधर सेठ भी उस नगर में पहुंच चुका था। वहां पर पहुंचकर मतिसागर ने अपनी दोनों पत्नियों को भी प्राप्त कर लिया। धर्म के बल पर उस का पुण्य दोपहर का सूरज बनकर चमक रहा था। वहां के राजा ने भी उससे अपनी पुत्री का पाणिग्रहण कराया और आधा राज्य उसे दहेज में प्रदान किया।
आखिर चार पत्नियों तथा भारी सैन्यदल के साथ मतिसागर अपने नगर की सीमा पर पहुंचा और राजा जितारि को धर्म की महिमा का परिज्ञान कराने के लिए उसने युद्ध की भेरी बजा दी। राजा जितारि युद्ध के मैदान में आ डटा पर मतिसागर का सामना न कर सका। उसे बन्दी बनाकर मतिसागर के समक्ष लाया गया। मतिसागर को देखते ही जितारि उसे पहचान गया। मतिसागर मंत्री ने युद्ध का नाटक समाप्त कर जितारि को गले से लगा लिया।
राजा जितारि धर्म की महिमा जान चुका था। उसकी धर्मश्रद्धा इतनी प्रबल बनी कि राजपाट त्याग कर वह मुनि बन गया। मंत्री मतिसागर ने भी मुनिव्रत स्वीकार किया। उग्र तपश्चरण से जितारि मुनि और मतिसागर मुनि ने मोक्ष प्राप्त किया।
- राजेन्द्र सूरिकृत कामघट कथानक (ख) मतिसागर
कमलपुर नगर का रहने वाला एक बुद्धिमान और विचक्षण मन्त्री। (देखिए-भीमकुमार) (ग) मतिसागर
एक बुद्धिमान और स्वामीभक्त मन्त्री। (देखिए-श्रीपाल) (क) मदन
विश्वपुर नगर का रहने वाला एक श्रेष्ठि पुत्र, जो सदाचारी और धर्मात्मा था। राजकुमार महेन्द्र से उसकी मैत्री थी। उसके आमंत्रण पर एक बार राजकुमार महेन्द्र उसके घर पर गया। मदन की पत्नी चन्द्रवदना ने महेन्द्र का स्वागत किया। महेन्द्र और चन्द्रवदना दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित बन गए। राजकुमार महेन्द्र मैत्री के अर्थों को विस्मृत कर बैठा। उसने एक पुरुष को अपना गलहार देकर उसे मदन की हत्या का कार्य सौंपा पर नगररक्षक की चतुर दृष्टि से वह पुरुष बच न सका। जब वह मदन की हत्या करने को तत्पर था, उसी क्षण नगररक्षक ने उसे बन्दी बना लिया और दूसरे दिन राजा के समक्ष उपस्थित किया। सख्ती से पूछताछ करने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही सत्य उगल दिया। राजा ने अपने पुत्र महेन्द्र को देश-निर्वासन का दण्ड दिया। चन्द्रवदना भी उसके साथ चली गई। जंगल में उन दोनों को तस्करों ने पकड़ लिया और रक्त-व्यापारियों को बेच दिया। रक्त व्यापारियों ने उनके शरीर का रक्त निकाल लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गई । दोनों मरकर नरक में गए और असंख्य काल तक भवभ्रमण करेंगे।
मित्र द्वारा मैत्री में तथा पत्नी द्वारा विश्वास और प्रेम में छले जाने पर मदन का हृदय वैराग्य भाव से पूर्ण बन गया। उसने गृहत्याग कर अनगार वृत्ति को अंगीकार कर लिया। चारित्र की आराधना कर वह स्वर्ग में गया और भवान्तर में मोक्ष प्राप्त करेगा।
-भव भावना, गाथा 440 / जैन कथा रत्न कोष,भाग 6, कथा 6 / गौतम कुलक बालावबोध (ख) मदन ___ कुशस्थल नगर का रहने वाला एक श्रेष्ठी। उसकी दो पत्नियां थीं-चण्डा और प्रचण्डा। अपने नाम के ... जैन चरित्र कोश ..
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